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शराब चीज ही ऐसी है!

शायरों ने अपने कृतियों में शराब और साकी का खुब जिक्र किया है। शराब चीज ही ऐसी है! शराब जिसे मदिरा, सुरा, मधु, दारु आदि अनेक नामों से जाना जाता है, यह एक मादक पेय पदार्थ है। 

शराब के भी अनेक रंग हैं साकी ! कोई पीता है आबाद होकर कोई पीता है बरबाद होकर।

अज्ञात

साकी वह है जो पीने के लिए शराब का पात्र (जाम, प्याला) भर देता हो। शराबखाना यानि जहां शराब पीलायी जाती हो, इसके लिए मयकदा, मैखाना, मधुशाला आदि शब्द प्रयुक्त होते हैं। आम लोगों द्वारा मौज-मस्ती करने अथवा गम दुर करने के लिए इसे पीने का प्रचलन है।

शराब चीज ही ऐसी है न छोड़ी जाए..!
हर एक सय को जहां में बदलते देखा है मगर
ये वैसी की वैसी है न छोड़ी जाए।
यही तो टुटे दिलों का इलाज है अंजुम
मैं कया कहूं तुझे कैसी है न छोड़ी जाए।

_सरदार अंजुम

यह समझा जाता है कि शराब हर गम को नशे में मिटा देती है। गौरतलब यह है कि शराब को लेकर जो चर्चा होती है, इसका कारण शराब है अथवा इसे पीने-पिलाने वाले लोग, यह भी एक चर्चा का विषय है।

जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या वो जगह बता दे जहां पर खुदा न हो।

गालिब

प्रसिद्ध शायर मिर्जा गालिब का शराब से मोहब्बत भी खुब चर्चा में रही है। ऐसा कहा जाता है कि उनका घर एक मस्जिद के आस-पास था। इस कारण लोग उनके पीने को लेकर टोका-टोकी किया करते थे। सामान्यतः ऐसा समझा जाता है कि उक्त शायरी उन्होंने इसी संदर्भ में लिखा था। परन्तु क्या यह बात उन्होंने लोगों की प्रतिक्रिया में लिखी होगी? अगर ऐसा नहीं है तो उनके कहने का कोई तो तात्पर्य रहा होगा?

उक्त शायरी में एक शब्द का प्रयोग हुवा है ‘जाहिद’ जो एक उर्दू शब्द है। ऐसा व्यक्ति जो सांसारिक प्रपंचों से दुर हो, उसे जाहिद समझा जाता है। धार्मिक, संयमी, वैरागी, त्यागी, फकीर आदि इसके समानार्थी शब्द समझे जाते हैं। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो उन्हें टोका-टोकी करने वाले जाहिद तो नहीं ही रहे होंगे। फिर यह बात उन्होंने किससे कही ? खुद से अथवा दुनिया वालों से ?

अध्ययन के अनुसार उनके संबंध में जो जानकारी है, वह तो एक फक्कड़ शायर थे। वास्तव में उनकी दिवानगी शराब में नहीं, शायरी में थी। शराब तो उनके लिए मन को एकाग्र करने का एक साधन मात्र था। सांसारिक प्रपंचों से उन्हें कोई मतलब न था। वैसे ऐसे फक्कड़ो का कुछ कहना ही दुनियादारी में रमें लोगों के लिए कोई इशारा होता है। पर लोगों को उनकी बात समझ में आती कहां है!

खुद अपनी मस्ती है जिसने मचाई है हलचल, नशा शराब में होती तो नाचती बोतल।

अज्ञात

परन्तु किसी भी वस्तु की उपयोगिता भोगी के लिए अलग और योगी के लिए अलग हो जाता है। फक्कड़ों, फकीरों ने शराब शब्द का इस्तेमाल आनंद के प्रतीक के तौर पर किया है। फकीरों की मस्ती और आम लोगों की मस्ती के मायने अलग हैं। 

तेरी आंखों के जो प्याले हैं मेंरी अंधेरी रातों के उजाले हैं, पीता हूं जाम पर जाम तेरे नाम का हम तो शराबी बेशराब वाले हैं।

अज्ञात

संत-फकीर वास्तविक मस्ती की बात करते हैं। पीनी है तो वैसी पीओ जिसमें मस्ती ही मस्ती है। मोहब्बत का शराब! इल्म का शराब और ऐसी जो शराब है जिंदगी को आबाद कर देता है। 

फकीर समझाते हैं कि असली मस्ती करो! सही मायने में मस्ती जो है, वह तो खुद को खुदा से जोड़कर ही मिलेगा। असली शराब है तो उसी के पास है, जिसके पीने से हमेशा के लिए गम मिट जाता है।

आज इतनी पीला दे साकी के मैकदा डुब जाए, तैरती फिरे शराब में कश्ती फकीर की ।

अज्ञात

इसलिए तो फकीरों ने खुदा का नाम ही शराब रख दिया है। वे जब जब शराब की बात करते हैं मानो खुदा की बात करते हैं। ‘मीर तकी मीर’ एक ऐसे ही फक्कड हुवे, जिनके लफ्जों में यह दर्शन छुपा हुवा है।

हम पीते हैं मजे के लिए बेवजह बदनाम गम है, पुरी बोतल पीकर देखो फिर दुनिया क्या जन्नत से कम है।

मीर

उमर खय्याम एक फारसी फकीर थे। गणित, ज्योतिष, दर्शन के भी अच्छे जानकार थे। उनकी चार पंक्तियों वाली शायरी रुबाइयां के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनसे प्रभावित होकर हरिवंश राय ‘बच्चन’ ने ‘खय्याम की मधुशाला’ लिखी है। 

प्रखर दार्शनिक ओशो ने कहा है: “उमर खय्याम जहां जहां शराब की बात करता है, वह समाधि की बात कर रहा है। उम्र खय्याम सूफी फकीर है, पहूंचा हुवा संत हैं। वह मधुशाला (मैखाने, मयकदा) की बात कर रहा है, वह परमात्मा की मंदिर की बात कर रहा है। और जहां वह मधुबाला (साकी) की बात कर रहा है, वह परमात्मा की बात कर रहा है। परमात्मा डाल रहा है सुराही पर सुराही और यह सारा जगत उसकी मधुशाला है।”

प्राण प्रिये ढालो मदिरा जो कर दे मेरे सब दुख दूर
बीते पर क्यों खेद करुं मैं क्यों समझुं कल होगा क्रुर।
कल किसने देखा है जग में मत गाना प्रिय कल के गीत
आज जीला दो हो सकता है कल तक जीवन जाए बीत।

खय्याम की मधुशाला

ओशो कहते हैं: “उमर खय्याम ने एक बड़ी मीठी बात कही है। उमर खय्याम ने कहा है कि हे मौलवी-पंडितो! तुम कहते हो स्वर्ग में शराब के चश्में(झरने) बह रहे हैं। और यहां तुम पीने नहीं देते, अभ्यास न होगा तो चश्मों का क्या करेंगे। बात बड़े अर्थ की है! यहां अभ्यास तो कर लेने दो। यहां तो प्याले, कुल्हड़ से ही पीने को मिलती है, अभ्यास तो हो जाए। नहीं तो अचानक जरा सोचो तुम! जिंदगी भर तो तुम शराबखाने गये नहीं और एकदम से फिर स्वर्ग पहूंचे, और वहां शराब के झरने बह रहे हैं। तुम पीओगे ? पी न सकोगे। तुम निंदा से भर जावोगे, कहोगे पाप है।

यह बात अर्थपूर्ण है। यह बात शराब के संबंध में नहीं है। यह बात जीवन का आनंद के संबंध में है। खय्याम तो एक सूफी फकीर है। उसे शराब से क्या लेना-देना। वह नाहक बदनाम हो गया है, क्योंकि शराब की उसने बड़ी चर्चा की है। शराब तो सिर्फ प्रतीक है मस्ती का। वह ठीक कह रहा है, अगर मस्त यहां न हुवे तो वहां कैसे मस्ती करोगे ? यहां न नाचे तो स्वर्ग में पहुंच कर नाचोगे ? इधर कभी गाये नहीं तो स्वर्ग में पहुंच कर गावोगे तो बड़ी बेसुरी आवाज निकलेगी। और लोग कहेंगे की स्वर्ग की शांति में विघ्न न डालो। तुम अपना पुराना अभ्यास यहां भी जारी रखो, बैठ जाओ किसी झाड़ के नीचे उदास।”

और अब जो कुछ भी है शेष
भोग वह सकते हम स्वछंद
राख में मिल जाने से पूर्व
न क्यों कर लें जी भर आनंद।
गड़ेंगे जब हम होकर राख
राख में फिरतब कहां बसंत
कहां स्वरकार, सुरा, संगीत
कहां इस सुनेपन का अंत।

_हरिवंश राय बच्चन

इंसान जितना मोहब्बत अंगुर की बेटी से करता है, अगर उससे कर सके जिसने अंगुर को ही बनाया है तो फिर गम किस बात का। यह जो शराब है, जो भौतिक त्तत्वों से बना है, पीनेवाले को कुछ क्षण के लिए मदहोश कर सकता है। नदियां बह रही हैं, झरने बह रहे हैं, इस दुनिया में भी। परन्तु आंखो को वही दिखता है जो प्रत्यक्ष है। 

ज्ञानीजन कहते हैं कि जिस मस्तमौला ने इस दुनिया को बनाया है, वह कण कण में व्याप्त है। जीवात्मा , (रुह ‘ soal) के रूप में प्रत्येक के भीतर वही उपस्थित है। इसे महसूस करने के लिए अन्तर्दृष्टि की जरूरत होती है।

रह गई जग में अंगड़ाइयां लेके शराब! हमसे मांगी न गयी उनसे पिलायी न गयी।

अज्ञात्

कभी ध्यान किया नहीं, कभी मंदिर गया नहीं, तो वह कैसे दिखेगा। अचानक से मस्ती कहां से चली आएगी। अभ्यास जरुरी है! ध्यान का, पूजा का, इबादत का, प्रार्थना का, बंदगी का अभ्यास करना जरूरी है। निरंतर अभ्यास से भीतर ज्ञान का रस उत्पन्न होता है। यही असली शराब है, जिसके नशे में जिंदगी आबाद होती है। यही बात फकीर समझाते हैं, पीने का अभ्यास करो, पीयो और मौज करो। वर्ना समय निकल जायगा हाथ से, और फिर पछताने के सिवा कुछ नहीं बचेगा। 

मैं प्रेम दा प्याला पी आया, एक पल में सदियां जी आया ! सारी मधुशाला पी आया, एक पल में सदियां जी आया..! मैं पी आया, मैं पी आया, मैं पी आया…

आनंद वक्शी

संसार में ऐसे अनेक ज्ञानी, योगी, संत, फकीर का अवतरण हुवा है।जिन्होंने असली शराब को पी लिया और अपना जीवन जी लिया। उन्होंने इस मधुरस का पान कर यह जान लिया कि जीवन का असली मस्ती क्या है और किस चीज में है। उनका पुरा जीवन उत्सव हो गया। जीवन का आनंद कैसे उठाएं ! Jeevan ka anand kaise uthayen.

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