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सोच को बदलो — Change The Way You Think

सोच क्या है ? सोच एक मनोभाव है! और सोचना एक क्रिया। यह किसी विषय पर विचार करने की प्रवृत्ति है। महत्त्वपूर्ण यह है कि हम सोचते क्या हैं ?  किसी विषय-वस्तु पर हमारा विचार करने का भाव कैसा है ? क्योंकि हम जैसा सोचते हैं वैसा ही करते हैं। महत्त्वपूर्ण है सोच की दिशा का चयन करना। इस सोच की भी दो अवस्थाएं होती हैं, एक नकारात्मक और दुसरा सकारात्मक। एक चिंता की स्थिति है, इसमें दुख, निराशा, हताशा, घबराहट आदि भावों का समावेश होता है। दुसरा चिंतन की स्थिति है, यह उन्नति का भाव है। इसमें सुख, शांति, प्रसन्नता का भाव है। 

एक प्रचलित वाक्य है ,सोच को बदलो! सितारे बदल जायेंगे। सर्वप्रथम किसने कहा या किसने लिखा, ये तो मुझे मालूम नहीं। परन्तु जिसने भी कहा बहुत सुन्दर तरीके से कहा है। और हम सभी को इसके आशय को गहनता से समझने की जरूरत है।

सोच को बदलो सितारे बदल जायेंगे
निगाहों को बदलो नजारे बदल जायेंगे।
कश्तियां बदलने की जरूरत नहीं
दिशाओं को बदलो किनारे बदल जायेंगे।।

जिस सोच के कारण कष्ट है, परेशानी है, उस सोच से खुद को अलग करने में समझदारी है। अगर कर सको तो परेशानियों से पार पाना सरल हो जाता है। आसपास जो दिख रहा है, अगर वो अच्छा नहीं है। तो जरुरत है देखने के अपने नजरिये को बदलने की। नजरिये में अगर बदलाव हो तो नजारा भी बदल जाता है।

एक नदी के दो किनारों की तरह, इस सोच के भी दो किनारे हैं। जो जिस किनारे पर होता है, उसकी स्थिति वैसी ही होती है। सोचने की प्रक्रिया में हम कभी कभी खुद को मंझधार में भी पाते हैं। यह दुविधा की स्थिति है! कुछ  समस्याओं को सुलझाना कठिन हो जाता है। ऐसी स्थिति में सोच की दिशा को बदल देना ही उचित होता है। 

यह जीवन एक कश्ती के समान है, चयन महत्त्वपूर्ण है! हम किस दिशा की ओर जाना चाहते हैं। हमारी सोच की दिशा क्या है! यह सकारात्मक है या नकारात्मक, यह जानना महत्वपूर्ण है। कश्तियां बदलने की जरूरत नहीं पड़ती, दिशाओं को बदल देने से कश्ती को किनारा मिल जाता है। एक कुशल नाविक ही अपने नैया को पार लगा पाता है।

सोच को बदलो! सोच की दिशा को बदलने से खुद को तो लाभ होता ही है, आसपास के लोग भी लाभान्वित होते हैं। इसके प्रभाव से सामूहिक परिस्थितियां भी बदल जाती हैं। इस बात की सीख इस प्रसंग से मिलती है। रावण को श्री ब्रम्हा का वरदान मिल गया तो वह ऊर्जावान हो गया। परन्तु अपनी शक्ति का दुरूपयोग करने लगा। उसने इतना तांडव मचाया कि ऋषि-मुनि, मनुष्य सभी भयभीत हो गए। यह देख नारद मुनि ने सोचा कि रावण का सोच समस्त मानव जाति के अस्तित्व पर संकट पैदा कर सकता है। क्यों न इसके सोच की दिशा ही बदल दी जाय। 

एक दिन नारद मुनि रावण के पास गये और उससे कहा; तुम्हें श्री ब्रम्हा का वरदान मिला है, यह बहुत बडी उपलब्धि है। अब तो तुम्हें विश्वविजय के अभियान में लग जाना चाहिए। यह सुनते ही रावण की महात्वाकांक्षा जग गयी! उसने कहा; यह कैसे संभव है? नारद जी ने समझाया; तुम अपनी शक्ति का गलत उपयोग कर रहे हो। अरे मनुष्य तो खुद समस्याओं से घिरे हुवे हैं। उनके मन में तो ऐसे ही जहर भरा हुवा है। तुम्हें उन्हें वश में करना चाहिए जो सुख और ऐश्वर्य के स्वामी हैं। इन्द्र, वरुण, कुबेर, यमराज जैसे देव, जिनके पास अमृत है, उनसे युद्ध करो। ऐसा करने पर तुम विश्वविजेता हो सकते हो! 

बुद्धमता से परिपूर्ण नारद मुनि की बाते रावण के समझ में आ गई। और वह मनुष्यों को छोड़ देवताओं के पीछे लग गया! किसी ने नारद मुनि से पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया? नारद जी ने कहा: रावण अपनी ऊर्जा का गलत उपयोग ही करेगा, क्योंकि वह एक राक्षस है! परन्तु मुझे मनुष्यों को बचाना था, इसिलिए मैंने उसकी सोच की दिशा को दुसरी ओर मोड़ दिया!!

मन-मस्तिष्क में छाया हुवा कुविचारों का अंधेरा, घनी-काली रात के अंधेरे से भी अधिक काली होती है। परन्तु उजाले की उम्मीद ही अंधेरे के घबराहट को मिटा सकती है। वैसे भी सितारों को चमकने के लिए घनी अंधेरी रात की जरूरत होती है। और घनी अंधेरी रात के बाद ही सुनहरा सुबह आता है। अतः इन विचारों से मुक्त रहने का प्रयास होना चाहिए। और जहां तक संभव हो दुसरों को भी इसके लिए प्रेरित करते रहना चाहिए। 

जीवन में समस्याओं का आना-जाना लगा रहता है। यही जीवन है! जो हुवा, जो हो रहा है, सब अच्छे के लिए हो रहा है! इस सोच को मन में धारण करना ही उचित है। गहनता से विचार करें तो सभी के साथ यह नियम लागु होता है कि सभी अपनी-अपनी सोच से ही अपने संसार का निर्माण करते हैं।

सामान्यतः यह देखा जाता है कि अधिकांश लोग नकारात्मक विचारों के प्रभाव में आ जाते हैं। नकारात्मक सोचना मनुष्य के स्वभाव में होता है। यह विन बुलाये मेंहमान के तरह मन में प्रवेश कर जाता है। वहीं सकारात्मक विचारों को बुलावा देना पड़ता है। सकारात्मक सोच के लिए अभ्यास करना पड़ता है। मन में सोच के अच्छे भावों को धारण करने के लिए प्रयास करना पड़ता है। 

मन में अच्छी सोच को बनाये रखने के लिए ओशो के द्वारा एक उपाय बताई गई है। ओशो के अनुसार “सुबह उठते ही पहली कल्पना करो कि तुम बहुत प्रसन्न हो। विस्तर से प्रसन्नचित उठो! आभा-मंडित, प्फु, आशा-पूर्ण ; जैसे कुछ समग्र अनंत बहुमूल्य होने जा रहा हो। अपने विस्तर से बहुत आशा-पूर्ण चित से, कुछ ऐसे भाव से कि आज का दिन सामान्य दिन नहीं होगा, कि आज कुछ अनुठा, कुछ अद्वितीय तुम्हारी प्रतिक्षा में है, वह तुम्हारे करीब है। इसे दिन-भर, बार-बार स्मरण रखने की कोशिश करो। सात दिनों के भीतर तुम पावोगे कि तुम्हारा पूरा वर्तुल, पूरा ढंग, पूरी तरंगें बदल गई हैं। 

जब रात को सोने लगो तो कल्पना करो कि तुम दिव्य के हाथों में जा रहे हो! जैसे जैसे अस्तित्व तुम्हें सहारा दे रहा हो, तुम उसकी गोद में सोने जा रहे हो। बस एक बात पर निरंतर ध्यान रखना है कि नींद आने तक तुम्हें कल्पना करते जाना है, ताकि कल्पना नींद में प्रवेश कर जाए, वे दोनों एक दूसरे में घुल-मिल जाएं।”

ज्ञानीजन इस बात को कहते आये हैं कि हर किसी को जीवन में अच्छी सोच, अच्छे विचारों के साथ चलने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि सकारात्मक होना नकारात्मक होने से कहीं अधिक बेहतर है। नकारात्मक सोच के साथ हम अच्छे कार्य नहीं कर सकते। अगर अच्छा करना चाहते हैं तो हमें सकारात्मक सोच को मन में धारण करना ही होगा। अगर ऐसा कर पाने में सफल हो गये तो धीरे-धीरे सब अच्छा होने लगता है।

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