तनाव को शारीरिक एवम् मान्सिक उद्धिग्नता के रुप में समझा जा सकता है। यह एक अवांछित मनोभाव है जो शारिरीक अथवा मानसिक व्यथा के कारण उत्पन्न होता है। भय, क्रोध, शोक आदि इसके उपस्थिति के मानसिक कारक होते हैं। वहीं संक्रमण, दुर्घटना, रोग आदि इसके उपस्थित होने के शारीरिक कारक होते हैं।
मनोवैज्ञानिक इसे रासायनिक कारक के रूप में देखते हैं। इनके अनुसार तनाव शारीरिक क्रिया-कलापों में व्यवधान उत्पन्न करता है। जब कोई अपने आस-पास के घटनाओं से व्यथित होता है, तो उसके शरीर से कुछ रसायन का स्त्राव होता है। ये रसायन रक्त में घुलकर रक्त को विसाक्त कर देते हैं। विसाक्त रक्त के कारण शारीरिक और मानसिक क्रियाओं में व्यवधान उत्पन्न होता है।
हैंस शैले (Hans Salye) ने तनाव को शरीर के किसी आवश्यकता के आधार पर अनिश्चित प्रतिक्रिया के रुप में परिभाषित किया है। उन्होंने इसके दो प्रकार बताये हैं; यूस्ट्रेस (eustress) एवम् डिस्ट्रेस ( distress) । यूस्ट्रेस वांछित तनाव है। मनुष्य को शारीरिक, मान्सिक एवम् सामाजिक हित के लिए कार्य करना होता है। इस प्रकिया में स्वयं को व्यवस्थित करने के लिए वह कुछ इच्छित तनाव को अपना लेता है। हल्कि मात्रा में उपस्थित तनाव से अधिक नुकसान नहीं होता। इसे चुनौती के रूप में भी लिया जा सकता है। इसे बाह्य तनाव समझा जाता है।
डिस्ट्रेस अवांछित मनोभाव है, यह अनियंत्रित हो सकता है। जब यह अनियंत्रित हो जाता है तो नकारात्मक प्रभाव डालता है। यह आंतरिक तनाव है, इसके आगोश में आकर व्यक्ति स्वयं को तनावग्रस्त बना डालता है। इस स्थिति में वह ऐसी चीजों से भयभीत हो जाता है, जिनपर उसका नियंत्रण नहीं होता है।
तनावग्रस्त व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। तनाव के कारण हृदय का स्पंदन बढ़ जाता है। सांस तेजी से चलने लगता है और और उसकी लम्बाई छोटी हो जाती है।थरथराहट, घबराहट, उपापचय क्रिया का विगड़ जाना, बाल झड़ना, बाल सफेद हो जाना आदि शारीरिक लक्षण उभर कर सामने आ जाता है। एकाग्रता में कमी, निर्णय क्षमता का अभाव, आत्मविश्वास में कमी, चिड़चिड़ापन, चिंता, भय आदि अवांछित मनोविकार से व्यक्ति ग्रसित हो जाता है। नशा का अत्यधिक सेवन, नाखुन चबाना, बाल खींचना, मन का कहीं और खो जाना, जरा सी बात पर आक्रामक हो जाना आदि लक्षण उसके व्यवहार में परिलक्षित होने लगता है। व्यवहारगत तनाव का जीवन में ख़तरनाक प्रभाव पड़ता है। और इससे अभिव्यक्ति तथा सामाजिक संबंध प्रभावित होते हैं। लम्बे समय तक तनाव में रहने से मनुष्य का मन अवसादग्रस्त हो जाता है।
तनाव की दवा है ध्यान !
तनाव के कुछ स्रोत अनिवार्य होते हैं। आज के समय में तनाव मनुष्य के लिए एक सामान्य अनुभव बन चूका है। किसी न किसी रूप में यह प्रत्येक के जीवन में उपस्थित होता रहता है। इससे निजात पाने के अनेक उपाय बताए गए हैं। परन्तु उन सभी में स्वयं को परिवर्तित करने की जरूरत होती है। तनाव के परिस्थितियों में बदलाव या फिर उनके प्रति प्रतिक्रिया में बदलाव, इनमें से किसी एक का चयन अनिवार्य हो जाता है। इससे निजात पाने के लिए स्वयं को परिवर्तित करने की जरूरत होती है।
ओशो के शब्दों में तनाव का अर्थ है कि आप कुछ और होना चाहते हैं जो आप नहीं हैं। अपने मन में जावो, अपने मन का विश्लेषण करो, कहीं न कहीं तुमने स्वयं को धोखा दिया है। तुम दुनिया में रहो मगर दुनिया तुम्हारे अन्दर नहीं रहनी चाहिए। खुद में जीवन का कोई अर्थ नहीं, जीवन अर्थ बनाने का अवसर है। ज्ञान हमेंशा मुक्त करता है, जहां से डर खत्म होता है, वहां से जीवन की शुरुआत होती है। डर के आगे जीत है : Victory is beyond fear.
निदा फाजली की ये पंक्तियां हमें तनाव रहित होकर जीने का संदेश देती हैं।
गम हो कि खुशी दोनों कुछ देर के साथी हैं। फिर रस्ता ही रस्ता है न हंसना है न रोना है।
मनुष्य के जीवन में जन्म से मरण तक के यात्रा में तृष्णा, कामना तथा विघ्न उत्पन्न होकर मन में भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं। जिसके कारण जीवन असंतुलित हो जाता है, मन में असंतोष के भाव उत्पन्न हो जाता है। मन की एकाग्रता में कमी तनावग्रस्त होने का एक प्रमुख कारण होता है। ध्यान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा मन को संतुलित किया जा सकता है। ध्यान क्या है जानिए ! Know what is meditation.और तनावमुक्त होकर जीवन को सहज और व्यवस्थित किया जा सकता है।
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