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आंखों के आंसु — Tears In Eyes

हजारों तरह के ये होते हैं आंसु , अगर दिल में गम हो तो रोते हैं आंसु। खुशी में भी आंखें भिगोते हैं आंसु ..! इन्हें जान सकता नहीं ये जमाना ! 

उपरोक्त पंक्तियों में आंसुओं की प्रकृति पर भाव व्यक्त किया गया है। उक्त पंक्तियां गीतकार आनंद वक्शी के एक गीत के अंश हैं। हम सभी को यह मालुम है कि आंसु आंखों से निकलने वाला एक तरल पदार्थ है। और आंखो के नम होने के अनेक कारण होते हैं।

शरीर एवम् दुखी मन की पीड़ा का होना, तेज हवा के झोंकों का दबाव आंखो पर पड़ना, आंखो में तिनका अथवा धुल का चले जाना आदि कारणों से आंखों में आंसु निकल पड़ते हैं। भावनात्मक रूप से यह समझा जाता है कि मन जब दुखी होता है, तो आंखो में आंसु भलक पड़ते हैं। 

परन्तु यह देखा गया है कि ये आंसु सिर्फ दुख अथवा गम में ही नहीं सुख में, खुशी में भी निकलते हैं। उदाहरण के लिए क्रिकेट, फुटबॉल आदि खेलों में खिलाड़ियों की जीत-हार होती रहती है। इन खेलों में जीतने पर भी और हारने पर भी खिलाड़ीयों को रोते देखा जा सकता है। दर्शकों को भी जीत और हार दोनों में रोते हुवे देखा गया है।

आखिर दुख में निकलने वाले आंसु खुशी में भी क्यों निकलते हैं ? ऐसा क्या होता है कि भावुकता में कोई व्यक्ति आंसु बहाने लगता है ? आंसुओं के संबंध में  विज्ञान ज्यादा कुछ नहीं कहता और भावनात्मक रूप में इसपर विशुद्ध रुप से कुछ कहा नहीं गया है। जब कोई भावुकतावश आंसु बहा रहा होता है, तो इसे रोना समझा जाता है। इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि रोना अथवा आंसु बहाना एक क्रिया है जो अपने आप होता है।

Emotional roller coaster’ की लेखिका ‘Claudia Hemond’ के अनुसार “हांलांकि हम सभी रोते हैं, लेकिन इसमें प्रयोगशाला में अध्ययन बहुत कम हुवा है।”

प्रोफेसर ट्रिंबल ने अपने एक पुस्तक में उल्लेक किया है ; “डार्विन ने कहा था कि भावुकता के आंसु सिर्फ इंसान ही बहाते हैं। फिर भी किसी ने इस बात का खंडन नहीं किया। वास्तव में रोने की क्रिया की प्रयोगशाला में जांच नहीं की जा सकती।” भावुक होने पर आने वाले आंसु अब तक पहेली बने हुवे हैं।

विज्ञान के अनुसार किसी प्रकार का बाहरी दबाब जब आंखो पर पड़ता है, तो अश्रु तंतुओं से आंसुओं का स्राव होता है। आंसु आंखो को नम करके शुष्क होने से बचाता है एवम् इन्हें स्वच्छ रखने में सहायता करता है।

मनोवैज्ञानिक विचारधारा के अनुसार आंसुओं का संबंध मान्सिक अवस्था यानि खुशी एवम् गम से है। खुशी हो या गम ये आंसु भावनाओं के अतिरिक्त दबाब के कारण अश्रु तंतुओं के अनियंत्रित होने पर निकलते हैं। इन आंसुओं पर व्यक्ति का नियंत्रण नहीं होता। अधिक भावुक होने पर चेहरे की कोशिकाओं में जो दबाब पड़ता है, उससे अश्रु तंतुओं पर भी असर पड़ता है। खुशी और गम दोनों का संबंध भावनाओं की अभिव्यक्ति से जुड़ा हुआ है। जब कोई दुखी होता है या खुश होता है, तो चेहरे की कोशिकाएं अनियंत्रित हो जाती हैं और अश्रु तंतुओं पर से मस्तिष्क का नियंत्रण हट जाता है। 

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि उलझन इस बात का है कि कोई किस चीज को देखकर दुखी होता है, यह प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से भिन्न-भिन्न होता है। Claudia Hemond के अनुसार “ये भिन्न-भिन्न संस्कृति के हिसाब से भिन्न-भिन्न हो सकता है। 

प्रोफेसर ट्रिंबल कहते हैं ” अगर आप मुझसे पुछें कि रोने का सार्वभौमिक कारण क्या है, तो मैं कहूंगा सबसे पहला है संगीत। उन्होंने कहा है कि ” मैने इस पर अन्तरराष्ट्रीय सर्वेक्षण किया है। लेक्चर के दौरान जब मैं कहता कि संगीत सुनकर कितने लोग रोते हैं, तो 90% लोग हाथ उठा देते हैं।”

रोबर्ट प्रोलाइन कहते हैं  ” उलझन इस बात से है कि आंसुओं को पैदा नहीं किया जा सकता। आप रोने का भाव तो दर्शा सकते हैं, लेकिन आंसु पैदा नहीं कर सकते।”

सोवियत निर्देशक स्टैन लास्की ने कहा है कि एक अभिनेता को रोने के लिए अपनी किसी दुख भरी याद का सहारा लेना पड़ता है। वो यह सोचकर नहीं रो सकता कि हमें इस दृश्य पर रोना है। उसे उस डायलोग में अपनी भावनाओं को जोड़ना पड़ता है। एक्टर जितनी सफलता से ये कर पाता है, उसके लिए रोना उतना आसान होता है।

कुछ का मानना यह भी है कि रोने से मन का बोझ हल्का होता है। बहुत से लोग तो रोने का आनंद भी लेते हैं। कई लोग तो रोने के लिए बार-बार ऐसी फिल्में देखते हैं, जिसे देखकर वे खुलकर आंसु बहा सकें।

ज्ञानियों ने आंसुओं की महिमा को विविध प्रकार से व्यक्त किया है।

विचारक पोल्टेयर कहते हैं ; “आंसु दुख की मुक भाषा है।” 

कवयित्री महादेवी वर्मा ने तो आंसुओं को आंखो का श्रृंगार कहा है, “अश्रु हैं नयनों के श्रंगार।” 

सुमित्रानंदन पंत ने कहा है: “यह सच आंसु ही से घुलकर होता मानव का मुख पावन” , अर्थात् यह आंसु ही है जो मनुष्य के मुख मंडल को धो डालता है और उसे शुद्ध कर देता है।

मैथिलीशरण गुप्तजी ने आंसुओं की महिमा का वर्णन इस प्रकार से किया है : “शोक के समान हम हर्ष में भी रोते हैं, अश्रु तीर्थ में ही सुख दुख एक होते हैं।”

वहीं अज्ञेय की अभिव्यक्ति कुछ इस तरह है : “आंसु से भरने पर आंखे और चमकने लगती हैं, सुरभित हो उठता समीर जब कलियां झड़ने लगती हैं।”

वहीं रहीम कवि कहते हैं कि आंसु आंखों से बहकर मन के दुख को प्रगट करते हैं। यह बात भी सही है कि जिसे घर से निकाल दिया जाय वह घर की बात बाहर कर ही देता है।

रहीमन अंसुवा नयन डरि जिय दुख प्रगट करेगी। जाहि निकारो गेह ते कस न भेद कही होई।।

जय शंकर प्रसाद का कहना है; आंसुओं को बहने दो, रोको मत और इनसे डरो मत! आंखो के जो अश्रु द्वार हैं, मन की आंखो को धोता है, गन्दगी को साफ कर देता है।

डरो न इतना धुल धुसरित होगा नहीं तुम्हारा द्वार। धो डाला है इनको प्रियवर इन आंखों के आंसु द्वार।।

ज्ञानियों का कहना है कि आंसु एक अमूल्य चीज है सुख-दुख, कृतज्ञता, सहानुभूति, पश्चाताप के आंसुओ से ही जीवन का बाग फलता फूलता है। जो मनुष्य आंसुओं के मर्म को समझता है, वह दुसरों को दर्द के आंसु बहाने के कभी विवश नहीं करता। हां ईश्वर कभी कभी अपने संतानो के आंखो को आंसुओं से भर देते हैं। वह इसिलिए कि हम प्रकृति और उनके नियमों को समझ सकें। 

हांलांकि किसी न किसी कारण से हर कोई रोता है। लेकिन कौन किसलिए रोता है वह तो रोने वाला ही बता सकता है। कोई शारीरिक कष्ट में रोता-चिल्लाता है तो कोई मान्सिक पीड़ा में आंसु बहाता है। कोई गम में रोता है, तो कोई खुशी में रोता है। कोई कुछ पा लेने से रोता है तो कोई कुछ खो जाने से रोता है। कोई मिलन में रोता है तो कोई जुदाई में रोता है। कोई बेवफाई में रोता है, तो कोई प्रेम में, दीवानगी में रोता है। 

कोई प्रकृति के द्वारा दंडित करने पर आंसु बहाता है, तो कोई प्रकृति के रहस्य को जान लेने पर भाव विह्वल होकर रोता है। वास्तव में जो प्रकृति के रहस्य को जान लेता है, वह दिवाना होता है। इसलिए तो कहते हैं कि ‘हज़ारों तरह के ये होते हैं आंसु’ , लेकिन एक दिवाना का आंसु बहाने का अर्थ निराला होता है।

हजारों तरह के ये होते हैं आंसु, अगर दिल में गम हो तो रोते हैं आंसु। खुशी में भी आंखें भिगोते हैं आंसु , इन्हें जान सकता नहीं ये जमाना ! मैं खुश हूं मेंरे आंसुओं पे न जाना, मैं तो दिवाना, दिवाना, दिवाना !

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