साथियों ‘काल करे सो आज कर’ यह उक्ति संत कबीर की है। उनकी इस उक्ति का तात्पर्य है कि जो कल करना चाहते हो आज ही कर लो !और जो आज करना है, उसे अभी कर लो ! इस उक्ति में उन्होंने वर्तमान समय का सदुपयोग करने की सीख दी है।
काल करे सो आज कर आज करे सो अब।
कबीर
पल में परलय होयगा बहुरि करेगा कब।।
कबीर के कहने का भावार्थ है कि पल भर में कुछ भी हो सकता है, पल भर में ये सांसे जो चल रही हैं, रुक सकती हैं। पल भर में यह जीवन नष्ट हो सकता है, फिर करने को क्या रह जाएगा। आने वाले पल का, आने वाले कल का क्या भरोसा! वह आयेगा भी या नहीं, कुछ पता नहीं। काम बहुत है करने को, और यह जीवन अनिश्चितता से भरा हुआ है। कब क्या हो जाय तुम्हें पता नहीं, कल का तुम्हें पता नहीं। इसलिए कल का काम आज और आज का काम अभी करो। जो थोड़ा समय तुम्हारे पास है इस जीवन में, उसका उपयोग कर लो।
जैसा नजरिया वैसा विचार !
ज्ञानीजन तो केवल इशारा करते हैं। कबीर ने भी इशारा कर दिया कि कल पर मत टालो। इस बात को जीसस ने भी कहा है कि कल की मत सोचो! बुद्ध भी कहते हैं कि कल की बात मत करो, कल पर मत टालो! लेकिन साधारण मनुष्य को यह ज्ञात ही नहीं है कि करना क्या है ? ज्ञानियों के कहने का जो तात्पर्य है, वह सामान्य के समझ से बाहर है। यह दृष्टिकोण ( नजरिया ) का फर्क होता है, ज्ञानियों के बातों को समझने के लिए प्रयास की जरूरत होती है।
प्रयास का अर्थ क्या है ! Meaning of effort
सामान्य व्यक्ति से भी पूछो तो वह भी यही कहेगा कि कल का क्या भरोसा! भोगी भी यही कहता है कि कल की बात मत करो, आज जो मिला है उसे भोग लो। एक शराबी से पूछिए तो वह भी यही कहेगा! कल किसने देखा है?
समय के महत्व की जानकारी ! The Importance of Time.
शराबी से पूछो कि करना क्या है तो शायद वह यही कहेगा कि आज पीलों! आज जीलो। कल जो होगा देखा जायेगा। भोगी भी यही कहेगा आज जीलो! खाओ, पीयो और मौज करो।
योगी भी यही कहते हैं कि कल की बात मत करो। और भोगी भी यही कहता है कि कल की बात मत करो। पर एक ही बात को कहने का दृष्टिकोण अलग-अलग है।
ज्ञानी तो केवल इशारा करते हैं। आज अगर बीत गया तो कल अवश्य आयेगा पर फिर से कल के आने की आशा के साथ। यानि अनिश्चितता के साथ, निश्चित क्या है? निश्चित यही है कि एक दिन सांस को रुक जाना है और जब तक सांसे चल रही है तभी तक काम किया जा सकता है।
भोगी कहता है ‘वस्ल की शब है जिक्रे हिज न छेड़’ । मिलन की रात है, अभी बिछड़ने की चर्चा मत करो। कल खाक में मिल जाना है तो मिल जायेंगे! अभी यह बात मत छेड़ो, अभी तो मौज चल रहा है।
ज्ञानी कहते हैं: अंतत: जो होना है वह तो होगा ही, उसे हुवा ही जानना चाहिए। उसकी बात हो अथवा ना हो, वह तो होने ही वाला है। और जो होने ही वाला है, यह जान लो तो संभव है कुछ हो जाय। समय थोड़ा है और काम बहुत है। परन्तु करना क्या है? यह अधिकांश को मालुम ही नहीं है।
खाओ पीयो और मौज करो!
भोगी कहता है आज की सोचो! खाओ, पीयो और मौज करो। परन्तु क्या ‘खाओ, पीओ और मौज करो’ , इतना ही जीवन के लिए पर्याप्त है ? या फ़िर जीवन में और कुछ करना है ? यह भी चिंतन का विषय है। यह समझ लो तो कुछ हो सकता है। यही बात तो कबीर कहते हैं, कबीर के हर बात में गहराई है।
खाना, पीना और मौज करना ज्यादा से ज्यादा कुछ देर के लिए तन को सुख दे सकता है, इंद्रियों को तृप्त कर सकता है। परन्तु वास्तव में इस कार्य में ही जो लगे हैं उनके जीवन में मौज है? उसका मन इस भ्रम में पड़ा रहता है कि वह मौज में है। इसके ठीक विपरीत ज्ञानी इशारा करते हैं कि असली मौज क्या है।
जब तक जीयो सुख से जीयो !
विचार तो भरे पड़े हैं! योगियों के भी और भोगियों के भी। एक प्राचीन भारतीय दर्शन है, जिसे चार्वाक दर्शन कहा जाता है। यह पारलौकिक सत्ता जैसी कोई त्तत्व पर विश्वास नहीं करता। आत्मा, परमात्मा के अवधारणा को यह स्वीकार नहीं करता। इस जीवन दर्शन का सार निम्नांकित पंक्तियों में निहित है।
- यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् श्रृणं कृत्वा घृतम् पीवेत्।
- भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनम् कुत:।
पहली सुक्ति का आशय है: मनुष्य जब तक जीए सुख से जीए, इसके लिए ऋण करके भी घी पीए, अर्थात् सुख भोग के लिए जो भी करना पडे वह करें। दुसरे सुक्त का आशय है कि यह शरीर मृत्यु के पश्चात भस्मीभूत हो जाता है, उसके बाद कुछ भी नहीं बचता! इस बात को समझ कर सुख भोग करो। यह नास्तिक दर्शन आधुनिक भौतिकवादी विचारधारा का पोषण करता है। इसे लोकायत दर्शन भी कहा जाता है। लोकायत का शाब्दिक अर्थ है, जिन विचारों के साथ सामान्य जन चलते हों।
वैसे देखा जाए तो इस संसार में अधिकतर लोग इन्हीं विचारों के साथ चलते हैं। खाओ, पीयो और मौज करो और इसके लिए कुछ भी करो, यही प्रवृति लगभग हर जगह दिखाई देती है। हांलांकि लोग किसी न किसी धार्मिक मत में आस्था रखते हैं। लेकिन उनकी यह धारणा मन के ऊपरी तल में व्याप्त होता है।
काल करे सो आज कर – कबीर जैसे संत पुरुष के इस बात की चर्चा तो सभी करते हैं, पर उसके गहराई में जाकर नहीं सोचते। भौतिक संपदाओं से सुख प्राप्त करना ही लगभग सभी का लक्ष्य है।
आनंद कदम कदम पर है !
ओशो कहते हैं: मैं भी कहता हूं खाओ, पीयो और मौज करो! लेकिन असली मौज की बातें कर रहा हूं। जिसको पीने से कभी प्यास नहीं लगती। वह भोजन करो जिसे करने से आत्मा तृप्त होती है, शरीर ही नहीं।
Osho
कबीर की वाणी ‘काल करे सो आज कर !’ पर प्रकाश डालते हुए ओशो कहते हैं कि करने का अवसर खोजोगे तुम आनंद के लिए तो वह कभी नहीं मिलेगा। अगर तुम आनंदित होना चाहते हो तो हर अवसर अवसर है। हर मौसम मौसम है। हर घड़ी तुम कोई न कोई तरकीब खोज ही ले सकते हो। आज अगर ध्यान में बिताया तो कल ध्यान की संभावना और बढ़ेगी। अगर कल आया तो परमात्मा को धन्यवाद दोगे कि फिर एक दिन मिला कि प्रार्थना करुं, कि ध्यान करुं।
जीवन में लक्ष्य का होना अनिवार्य है!
श्री श्री आनंदमुर्ति सांसारिक जगत में मनुष्य को बिशेष लक्ष्य बनाकर चलने की सीख देते हैं। अगर ऐसा न हो तो चलना व्यर्थ हो जायगा। बुद्धिमान मनुष्य अपना समय, श्रम कुछ भी व्यर्थ नहीं करते। मनुष्य को मानसिक जगत में चलना हो तो उसके सामने कोई स्थूल लक्ष्य नहीं रहना चाहिए। मानसिक जगत में चलते हुवे मनुष्य के जीवन में, मन में एक व्रत का होना अनिवार्य है। और इस व्रत को पुरा करनें की प्रतिबद्धता का होना भी उतना ही जरूरी है। जब तक मनुष्य इस बात का अनुसरण करता है, तब तक मानसिक जगत में प्रगति होती रहती है। पढ़ने वाले विद्यार्थी को हमेशा याद रखना पड़ता है कि हमें परीक्षा में पास होना है।
लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध होना जरूरी है !
जीवन में व्रत नहीं है, प्रतिबद्धता नहीं है तो मानसिक प्रयास व्यर्थ हो जाता है। मानसिक जगत से ऊपर आध्यात्मिक जगत है। आध्यात्मिक जगत में केवल अपने भौतिक जरुरतों के विषय में चिंता करना पर्याप्त नहीं है। यह जीवन क्यों है ? किसलिए है ? हर किसी को इस बिषय पर चिंतन अवश्य करना चाहिए। और समय को व्यर्थ न गंवाते हुए कर्म में प्रवृत होना चाहिए।
श्री श्री आनंदमुर्ति कहते हैं: नैतिकता जीवात्मा को लक्ष्य की ओर धकेलती है और लक्ष्य उसे अपनी ओर अबाध गति से खींचता है। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने प्रयास से, अपने नैतिक बल से अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ें। कर्तव्य क्या है जानिए ! Know what is Duty.
इसलिए कबीर की यह अमृत वाणी – काल करे सो आज कर, को समझना होगा। अनिश्चितताओं से भरा छोटी सी जिंदगी में बहुतेरे कार्य करने हैं। विना प्रतिबद्धता के, विना व्रत के, टाल-मटोल के विचारों के साथ जीना! जीवन को व्यर्थ कर लेना है। जब जो करना था किया नहीं, समय जो मिला वह तो व्यर्थ चला गया। समय रहते सब काम कर लेना चाहिए। वर्ना समय हाथ से निकल जायगा और पछताने के सिवा और कुछ भी नहीं बचेगा।
जगत के हित के साथ मोक्ष की प्राप्ति जीवन का लक्ष्य है !
ज्ञानियों कहते हैं: ‘आत्मनोमोक्षार्थ जगत हिताय च !’ अर्थात् इस जीवन का लक्ष्य संसार के कल्याण के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति है। भौतिकवादी कहते हैं यह संसार ही सबकुछ है। किसको क्या करना है! कौन भोग की दिशा का यात्री बनना चाहता है। और कौन योग के मार्ग पर चलना चाहता है। यह सबकुछ कर्ता के स्वयं के समझ पर निर्भर करता है। लेकिन करना बहुत कुछ है, करने वालों के लिए। कबीर तो केवल इस बात की ओर इशारा कर गये हैं।
काल करे सो आज कर आज करे सो अब।
कबीर
पल में परलय होयगा बहुरि करेगा कब।।