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जीवन असत्य है ..!

जीवन असत्य है! इस उक्ति का आशय क्या है? अगर जीवन असत्य है तो फिर सत्य क्या है? जन्म लेना एक घटना है, इसके घटित होते ही जीवन की शुरुआत होती है। और मृत्यु भी एक घटना है, जो जन्म के साथ जुड़ा है। मृत्यु जीवन के समापन की घटना है। जन्म और मृत्यु के बीच का जो अंतराल है, यही जीवन है। जन्म लेना जीवन का शुरुआत है, और मृत्यु से जीवन समाप्त हो जाता है। यही जीवन है, जो प्रत्यक्ष घटित होता है, तो फिर असत्य कैसे है?

किसी का जन्म लेना और उसके मृत्यु शैया में जाना दोनों ही प्रत्यक्ष घटना है। जन्म से मृत्यु तक उसके शारीरिक एवम् मानसिक विकास, उसकी भावनाएं, गतिविधियां सब प्रत्यक्ष है। तो फिर जीवन असत्य है! यह कैसे कहा जा सकता है? 

परन्तु ज्ञानीजन कहते हैं कि जीवन असत्य है! इसे सत्य समझना मन का भ्रम है। मनुष्य अपने जीवन काल में इन्द्रियों के द्वारा जो अनुभव करता है, सब भ्रम है। केवल ईश्वर सत्य है। शास्त्र भी यही कहते हैं कि ईश्वर ही सत्य है। जो भ्रम है, छलावा है, वह सत्य नहीं हो सकता। सत्य वो है, जो नश्वर नहीं है। जो शाश्वत है, अविनाशी है, वही सत्य है। सत्यम शिवम सुंदरम! अर्थात् शिव ही सत्य है, शिव ही सुन्दर है। राम कहें, शिव कहें, ब्रम्ह कहें अथवा परमात्मा, सभी संबोधन उसी के लिए है जो सत्य है। 

अब प्रश्न है कि सत्य किसे माना जाए? ज्ञानी कहते हैं कि जीवन असत्य है! लेकिन सत्य प्रतीत होता है। यह जो प्रतीति है मन का भ्रम है, मन की माया है। और मन कहता है कि जो दिखता है, जो प्रत्यक्ष है, वही सत्य है। 

ज्ञानी यह भी कहते हैं कि इस सत्य के कारण ही जीवन है। वह परमात्मा ही है, जो जीवन देनेवाला है। जन्म, मृत्यु एवम् इन दोनों के बीच की जो जीवन अवधि है, कुछ भी मनुष्य के अधीन नहीं है। मनुष्य के मन के लिए यही कुंठा का विषय है। कब कौन जन्म लेगा, कब कौन मृत्यु को प्राप्त होगा, किसके जीवन में कब कौन सी घटना घटित होगी, इसमें उसका कोई वश नहीं है। 

जो कुछ भी मन के अनुसार घटता है, मन यह समझ लेता है कि कर्ता वही है। परन्तु मनुष्य असहाय है, कुदरत के हाथों की कठपुतली है, यह आभास कहीं न कहीं, कभी न कभी हर किसी को होता है। लेकिन फिर भी वह स्वयं को कर्ता समझता है। यह जानते हुए भी कि उसके वश में कुछ भी नहीं है, फिर भी इस जीवन के प्रति उसकी आसक्ति है! यही भ्रम है।

जो कुछ भी उसके वश में नहीं है, जो कुछ भी उसके के इच्छा के विरुद्ध घटित होता है, उसे विधि का विधान कह देता है। विधि का विधान कहे, भाग्य का लेखा कहे अथवा कुछ और कहे, कभी न कभी सत्य की सत्ता को उसे मानता ही पड़ता है। परन्तु मन बहुत चालाक है, वह इसे स्वीकार नहीं करना चाहता। अगर यह जीवन सत्य है! कोई भ्रम नहीं है, तो फिर मनुष्य ईश्वर ईश्वर करता क्यों फिरता है? जब मृत्यु आसपास से होकर गुजरती है तो ‘राम नाम सत्य है’, इस बात को दोहराने का अर्थ क्या है? यही भ्रम है।

एक और प्रचलित उक्ति है; राम नाम सत्य है! इस उक्ति का आशय भी यही है। अर्थात् ईश्वर ही सत्य है, बाकि सब व्यर्थ है, बाकि सब गत है। और गौरतलब यह है कि इसे सांसारिक लोगों के द्वारा ही दोहराया जाता है। जिनके दृष्टिकोण में इन्द्रियजनित द‌श्य एवम् घटनाएं सत्य प्रतीत होती हैं, उन्हीं के द्वारा यह बात कही जाती है। अक्सर जब मृत्यु आसपास से होकर गुजरती है, तो लोग बोल पड़ते हैं कि ‘राम नाम सत्य है।’  मन खुद के विषय में भी अविश्वासी होता है, यही भ्रम है।

ये जो शब्द हैं, बोले जाते हैं, दोहराए जाते हैं, केवल कुछ समय के लिए। जब किसी की सांसें थम जाती हैं, और ऐसा जब आसपास घटित होता है तो मन व्यथीत हो जाता है, कलांत हो जाता है। कलांत मन को कुछ पल के लिए ऐसा महसूस होता है कि यह काया, धन-दौलत, मान-प्रतिष्ठा सब व्यर्थ है। लेकिन जो व्यर्थ है, कुछ समय पश्चात मन उसी व्यर्थ के पीछे लग जाता है। और राम का नाम पीछे छुट जाता है। कुछ समय बाद मन अपने स्वभाव की ओर लौट जाता है, और इसी असत्य के पीछे लग जाता है। यही भ्रम है।

अगर दुनिया में मृत्यु न होती तो परमात्मा का कोई स्मरण न होता, प्रार्थना न होती, आराधना न होती। 

ओशो

ज्ञानीजन कहते हैं कि जीवन जन्म और मृत्यु के बीच की यात्रा है। अर्थात् जीवन के द्वारा कहीं जाना है। जीवन गंतव्य नहीं है, यात्रा है। तो फिर मृत्यु क्या है? ज्ञानी कहते हैं कि मृत्यु गंतव्य नहीं है। वास्तव में जो त्तत्व है जीवन का, उसकी मृत्यु कभी होती ही नहीं है। मृत्यु तो केवल काया की होती है। जो सत्य है, अविनाशी है, उसे ही ईश्वर की संज्ञा दी गई है।

जिसे हम जीवन समझते हैं, असत्य है। और ना ही मृत्यु सत्य है। जिसके कारण जीवन है वह सत्य है, ईश्वर सत्य है। और यह जो जीवन ऊर्जा है, इसी सत्य के द्वारा आरोपित है, निर्मित है। यह जो सत्य है अविनाशी है, इसलिए सत्य से निर्गत ऊर्जा भी अविनाशी है। यह बात समझने की है, इसी बात को समझने के लिए धर्म का प्रादुर्भाव हुवा है, शास्त्रों का निर्माण हुवा है।

जीवन असत्य है! यह नश्वर काया की माया है, भ्रम है। भ्रम इसलिए कि जैसा दिखता है वैसा है नहीं। जो सत्य है, जिसके कारण जीवन है, वो विस्मृत हो जाता है। यह मन की आसक्ति के कारण है, मन की माया है। यही भ्रम है।

जीवन असत्य है अथवा सत्य है! जीवन का सच क्या है? इसे जानना अध्यात्म का विषय है। इसे तर्क से नहीं जाना जा सकता। आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलकर ही इसे जाना जा सकता है। और इसके लिए निरंतर एवम् कठिन साधना की जरूरत होती है। जीवन का उद्देश्य है उस ऊर्जा का जानना है, जिसके कारण जीवन है। यह जो ऊर्जा है, इसे ही आत्मा की संज्ञा दी गई है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जन्म एवम् मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना जीवन का उद्देश्य है। जब तक इस चक्र से मुक्ति नहीं मिलती जन्म से पूर्व मृत्यु एवम् जन्म के पश्चात मृत्यु यह क्रम चलता रहता है। 

जब तक सांसे चलती हैं, तभी तक जीवन है। और सांसों का प्रवाह में हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। हर किसी के जीवन में मृत्यु का घटित होना निश्चित है। जानना महत्वपूर्ण है कि यह जीवन क्यों मिला है? यह जो जीवन है, इसके होने का अर्थ क्या है? मृत्यु एक अवसर है, पुनः जन्म होने का। जीवन यात्रा का जो उद्देश्य है, वर्तमान जीवन काल में अगर पूरी न हो सकी। तो एक और अवसर प्रदान करती है, मृत्यु एक नई जीवन यात्रा की शुरुआत लेकर आती है। मृत्यु अंत नहीं है, केवल काया का अंत होता है। माया का भी अंत नहीं है, नई काया के साथ माया भी पुनः प्रगट हो जाती है। इसी माया के प्रभाव से मुक्त होकर आत्मा का साक्षात्कार करना ही जीवन के होने का अर्थ है। 

मनुष्य ऐसे स्थानों में सुख और आनंद खोज रहा है, जहां वह उन्हें कभी नहीं पा सकता। युगों से हम यह शिक्षा पाते आ रहे हैं कि यह निरर्थक है और व्यर्थ है, यहां हमें सुख नहीं मिल सकता। परन्तु हम सीख नहीं सकते। अपने अनुभव के अतिरिक्त और किसी उपाय से हम सीख नहीं सकते। 

स्वामी विवेकानंद

जीवन असत्य है, यह समझने का विषय है। जीवन का सच क्या है? यह जो सवाल है, अनेकों सवालों को खुद में समेटे हुए है। और साधारण के पास इन सवालों का जबाब नहीं है। ये जो प्रश्न है, खोज का विषय है, अनुभव का विषय है। सदियों से इस प्रश्न का उत्तर खोजा जाता रहा है। जिन्होंने खोजा है, उन्होंने पाया भी है और संसार को बताया भी है। लेकिन सांसारिकता के प्रति आसक्त व्यक्ति को उनकी बातें समझ में नहीं आती। इन प्रश्नों का समाधान खोज का विषय है। जिसने कभी खोजने का प्रयास ही नहीं किया, उसके लिए अनुतरित रह जाता है।

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