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ब्रम्ह मुहूर्त एवम् संध्याकाल।।

ब्रम्ह मुहूर्त क्या है? यह जो मुहूर्त है, ब्रम्ह से संलग्न है। ब्रम्ह से है ब्रम्हांड! इस संसार का अस्तित्व जिस ऊर्जा के कारण है, ब्रम्ह है। यह परम ऊर्जा है, अविनाशी है, अनंत सुखदायी है। इसी परम ऊर्जा को ईश्वर, भगवान, विधाता आदि नामों से जाना जाता है। मुहूर्त का अर्थ होता है, वह समय जो किसी विशेष कार्य के लिए निर्धारित है। तो फिर ब्रम्ह मुहूर्त का आशय क्या हो सकता है? ब्रम्ह को पूजने के लिए, वंदन करने के लिए, इस परम ऊर्जा से तादात्म्य स्थापित करने के लिए, जो सर्वाधिक उपयुक्त समय है, ब्रम्ह मुहूर्त है। 

जब होती है, धरा में नीरव शांति,
गगन जब सुधा छलकाती है।
सुर्य की किरणों की छांव में जब,
लालिमा प्रगट होना चाहती है।
कुहू कुहू गाती कोयल की स्वर,
जब वंदन की रागिनी सुनाती है।
जागृत होने की यह पावन बेला,
ब्रम्ह मुहूर्त कहलाती है।

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जागने का मुहूर्त एवम् जागने के तरीकों के विषय में पिछले आलेख में बताया गया है। यह वह समय है, जिसे नींद से जागने के लिए  निर्धारित किया गया है। इस अवधि में जागने का एवम् सही तरीके से जागने का अभ्यास हर किसी को करना चाहिए। इससे शारीरिक एवम् मानसिक ऊर्जा का विकास होता है। और यह भी बताया गया है कि जागने के मुहूर्त का दुसरा अर्थ, जो विशेष है, इसका संबंध जागरूकता से है। जागने का जो विशेष मुहूर्त हैं, ब्रम्ह मुहूर्त है।

रात्रि के अंतिम प्रहर का समय, करीब साढ़े तीन बजे के के आसपास समय को ब्रम्ह मुहूर्त माना गया है। इस समय विशेष का अंतराल तकरीबन आधे घंटे की होती है। 3:40 से 15-20 मिनट पहले एवम् 15-20 मिनट बाद तक के समय को आध्यात्मिक कार्यकलापों के लिए उपयुक्त माना गया है। 

अगर जीवन को कोई विशिष्ठ दिशा देनी हो, तो ब्रम्ह मुहूर्त से पहले ही जग जाना बहुत जरूरी है। ज्ञानियों का कहना है कि इस अवधि में सुर्य की किरणें पृथ्वी पर लम्बवत पड़ने लगती हैं। और मनुष्य के मस्तिष्क पर इन किरणों विशेष प्रभाव पड़ता है। जब ऊर्जा के स्रोत सुर्य की किरणें पृथ्वी पर लम्बवत पड़ने लगती हैं, तो मनुष्य का मस्तिष्क एक विशेष तरीके कार्य करने लगता है। इस अवधि में ईश्वर की उपासना की जाए, तो कुछ विशेष घटित होने की संभावना बनती है। इस अवधि में पूजा, प्रार्थना एवम् ध्यान क्रिया का विशेष महत्व है।

ब्रह्ममुहूर्त एक विशेष समय है, यह विशेष प्रक्रिया का समय है। ध्यान एवम् साधना के द्वारा आध्यात्मिक उन्नति के लिए  महत्वपूर्ण माना जाता है। इस समय विशेष में वातावरण शांत होता है। और प्रकृति अपनी ऊर्जा को सर्वत्र विखेरती है। जिससे निर्दिष्ट क्रियाओं के द्वारा ग्रहण किया जा सकता है। ब्रह्ममुहूर्त में जागने से अनेक विशेष लाभ हो सकते हैं, जैसे कि – शारीरिक एवम् मानसिक ऊर्जा के स्तर वृद्धि,  बुद्धि एवम् मेधा शक्ति का विकास, क्रियाशीलता और उत्साह में वृद्धि, मानसिक शांति और स्थिरता का अनुभव अतः ब्रह्ममुहूर्त को सबसे शुभ समय माना जाता है, जिसमें साधक अपने आंतरिक शक्तियों को प्राप्त करने और अपने जीवन को सार्थक करने की शक्ति अर्जित कर सकते हैं। 

संध्याकाल!

संध्याकाल सुर्योदय एवम् सुर्यास्त से पहले एवम् बाद का समय होता है। प्रत्येक की अवधि करीब आधे घंटे की होती है। यानि सुर्य के उगने एवम् अस्त होने के 15 से 20 मिनट पहले और इतना ही बाद के समय को संधिकाल माना गया है। 

दिन और रात को मिलाकर चौबिस घंटों के बीच चार प्रहर होते हैं। एक प्रहर का दुसरे प्रहर में जाना संक्रमण काल माना गया है। यह जो संधिकाल है, संक्रमण का समय होता है। दोपहर एवम् अर्द्धरात्रि के पहले और बाद का समय भी संधिकाल माना गया है। इस अवधि में मनुष्य का मस्तिष्क या यूं कहें समस्त नाड़ी तंत्र एक खास तरह के संक्रमण से गुजरता है। इसलिए इन अवधियों में मन को शांत और स्थिर रखने का प्रयास करना महत्वपूर्ण है। यह पूजा, प्रार्थना और साधना का समय है। 

संध्या वंदन का महत्व!

संध्या वंदन को संध्योपासन भी कहा जाता है। यह प्रक्रिया ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करने का माध्यम है। यह संसारी के लिए मनोकामना पूर्ति का साधन भी है। इस प्रक्रिया के द्वारा शारीरिक एवम् मानसिक शक्ति का विकास होता है। संध्या वंदन में पूजा, प्रार्थना, भजन-कीर्तन, ध्यान आदि क्रियाएं शामिल हैं। एकांत में बैठकर और मौन रहकर सकारात्मक चिंतन करना भी संध्या वंदन का एक तरीका है। 

भारतीय पौराणिक शास्त्रों में संध्या वंदन के महत्व का उल्लेख किया गया है। ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर और नित्य क्रिया से निवृत्त होकर सामान्य मनुष्य के लिए साधना करना कठिन हो सकता है। परन्तु सुर्योदय एवम् सुर्यास्त के समय उपस्थित संध्याकाल काल में हर किसी को संध्या वंदन अवश्य करना चाहिए। संध्या वंदन से पूर्व शौच, आचमन आदि क्रियाओं से तन-मन का शुद्धिकरण कर लेना चाहिए। और किसी निर्दिष्ट स्थान में अथवा मंदिर में जाकर संध्या वंदन करना चाहिए।

साधारण मनुष्य को कम से कम प्रातः एवम् शाम के समय संध्या वंदन अवश्य ही करना चाहिए। संध्याकाल में स्वयं को संयमित रखने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। क्योंकि अधिकांश लोग जो सांसारिक कार्यों में लिप्त होते हैं, दोपहर को व्यस्त रहते हैं, एवम् अर्द्धरात्रि को गहन निद्रा में होते हैं। अर्द्धरात्रि के समय उपस्थित संध्याकाल में साधारण व्यक्ति को किसी विशेष प्रक्रिया में पड़ना भी अनुचित होता है। 

यह हमेशा ध्यान रहे कि जो व्यक्ति किसी मार्गदर्शक अथवा गुरु के संपर्क में न हो, उसके लिए अर्द्धरात्रि में साधना जैसी कठिन क्रिया करना वर्जित है। केवल किसी आध्यात्मिक प्रक्रिया में दीक्षित लोगों को ही इस अवधि में साधना करना चाहिए। सामान्य व्यक्ति को प्रातः एवम् शायंकालिन संध्याकाल काल में पूजा, प्रार्थना अथवा ध्यान का अभ्यास प्रासंगिक माना गया है। और हर किसी को संध्या वंदन का अभ्यास अवश्य करना चाहिए। जो किसी सिद्ध पुरुष के संपर्क में होते हैं, और अपने जीवन को विशिष्ठ दिशा की ओर ले जाना चाहते हैं। उनके लिए लिए ब्रम्ह मुहूर्त एवम् इन चारों संध्याकाल का विशेष महत्व होता है।

जागने का विशेष मुहूर्त, यानि ब्रम्ह मुहूर्त एवम् संध्याकाल हर किसी के जीवन में महत्वपूर्ण है। एक विद्यार्थी के लिए भी, और कामकाजी एक गृहस्थ के लिए भी। सांसारिकता में लिप्त व्यक्ति के लिए भी इन अवधियों का महत्व है। क्योंकि मन को शांत रखे विना किसी कार्य में सफलता प्राप्त करना कठिन है। अतः समय पर जागना एवम् नित्य क्रिया से निवृत्त होकर संध्या वंदन करना हर किसी के लिए महत्वपूर्ण है। 

भोगी और योगी दोनों के लिए ब्रम्ह मुहूर्त एवम् संध्याकाल का महत्व है। परन्तु योगी के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। जो आध्यात्मिकता में रुचि रखते हों, उनके लिए यह अधिक महत्वपूर है। क्योंकि विना साधना किए कोई आध्यात्मिक नहीं हो सकता। अध्यात्म के मार्ग में चलने के लिए निर्दिष्ट समय का उपयोग नियमित एवम् निरंतर करना अनिवार्य होता है। 

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