Adhyatmpedia

जहां चाह वहां राह ।।

जहां चाह वहां राह – इस उक्ति का आशय है कि जहां चाहत होती है, वहां पाने के राह भी मौजूद होते हैं। परन्तु यह जो पाने की राह है, इसे खोजना पड़ता है, और उस पर चलना भी पड़ता है। क्योंकि बिना प्रयत्न किए किसी को भी, कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। 

इस उक्ति में ‘चाह’ का आशय निश्चयात्मक है, निश्चय के संदर्भ में है, जो एक निर्धारित गंतव्य तक पहुंचने की चाहत है। वह  ‘राह’ जिस पर चलकर गंतव्य की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है, ‘चाह’ की संगिनी है। यहां ‘चाह’ से आशय वैसी इच्छा नहीं है, जो बलवती नहीं है। जिस इच्छा को पूरा करने का प्रयत्न ही नहीं हो, वैसी इच्छा कभी पूरी होती भी नहीं है। अगर ‘चाह’ ऐसी हो, जिसे पूरा करने का दृढ़ निश्चय हो, तो वह अवश्य पूरी हो सकती है। इच्छा की शक्ति को जगाकर ही इच्छित गंतव्य तक जाने की राह को खोजा जा सकता है। और फिर अपने प्रयासों के द्वारा उस राह पर चलकर गंतव्य तक जाया जा सकता है। 

जहां चाह वहां राह – यह उक्ति हमें बताती है कि अगर कोई वास्तव में सफलता की चाहत रखता है, तो कभी न कभी उसे सफलता अवश्य मिलती है। अगर कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़संकल्प हो, तो वह सफलता के मार्ग को खोज ही लेता है। और कोई भी राह उसके लिए कठिन नहीं होता। वह राह पर आनेवाले बाधाओं का सामना कर गंतव्य तक जाने में सफल हो जाता है। 

यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि अगर कुछ पाने की इच्छा हो, तो उस कुछ को पाने का उपाय भी अवश्य होता है। इस उक्ति में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। यह प्रेरणादाई उक्ति हर किसी के लिए उपयोगी है। हर वर्ग, हर क्षेत्र के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

जब कोई असफलता के दौर से गुजर रहा हो, तो वह निराश हो जाता है। असफलता उसे भयभीत करने लगती है, और वह तनावग्रस्त हो जाता है। अगर लम्बी अवधि तक ऐसी स्थिति बनी रही, तो वह अवसादग्रस्त भी हो सकता है। ऐसी परिस्थिति में यह उक्ति एक वरदान की तरह है। यह विपरीत परिस्थितियों का सामना करने और सफलता के लिए प्रयासरत रहने के लिए एक प्रभावी मंत्र है।

परन्तु किसी भी प्रेरक उक्ति अथवा मंत्र का हमारे जीवन पर प्रभाव तभी पड़ सकता है, जब हम इस पर अमल करते हैं। और अमल तभी हो सकता है, जब हम इनमें निहित अर्थ को भली भांति समझते हों।  सबकुछ समझ के स्तर पर निर्भर करता है, और किसी भी तथ्य को समझने के लिए उसपर विचार जरुरी है।

जहां चाह है वहां राह है !

यह जो उक्ति है, जहां चाह वहां राह – अर्थात् अगर चाह है तो राह भी है। बिल्कुल है! परन्तु तलाश तो करनी होगी। उस राह का, जो चाहनेवाले की चाहत से जुड़ी हो। इसलिए महत्वपूर्ण यह है कि चाहनेवालों की चाहत क्या है? क्योंकि जिसकी जैसी चाहत होगी, वह उसे ही पूरा करने का प्रयत्न करेगा। वह उन्हीं चीजों को पाने को सोचता रहेगा और पाने का प्रयत्न भी करता रहेगा। 

महत्वपूर्ण यह है कि चाहत का स्वरूप क्या है? सामान्यतः यही देखा जाता है कि मनुष्य की चाहत का जो स्वरूप है, वह भौतिक सुख पर आधारित होता है। भौतिक वस्तुओं को पाने की के लिए कौशल अर्जित करना और इन्हें प्राप्त करने की चेष्टा में ही सामान्य मनुष्य का जीवन बीत जाता है। 

मनुष्य जिन विचारों के साथ चलता है, जिन चीजों को पाना चाहता है, उसका उद्देश्य केवल सुख पाना होता है। सामान्य मनुष्य की चाहत केवल सुख पाना होता है, और उसकी सारी गतिविधियां इसी पर आधारित होती हैं। यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि जिस चीज के प्रति वह आकर्षित होगा, उसे ही पाने की चेष्टा करेगा। 

यह आकर्षण का सिद्धांत है, जो कहता है कि जो जैसा सोचता है, वही करता है और वैसा ही बन जाता है। इसलिए महत्वपूर्ण यह है कि चाहनेवालों की चाहत क्या है? और अगर यह पानी का बुलबुला नहीं है, तो पाने का मार्ग भी दिख ही जाता है। और इच्छाशक्ति के धनी लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने में सफल भी हो जाते हैं। 

अगर उसे वांछित परिणाम मिल भी जाए, तब भी वह संतुष्ट नहीं होता। उसमें संग्रह करने की, इकट्ठा करने की प्रवृत्ति आ जाती है। मनुष्य की जो इच्छाएं होती हैं, अगर अगर पूरी हो भी जाएं, तब भी उसकी दौड़ नहीं थमती। उसे वांछित परिणाम मिल भी जाए, तब भी वह संतुष्ट नहीं होता। उसमें संग्रह करने की, इकट्ठा करने की प्रवृत्ति आ जाती है। 

ओशो के शब्दों में “मनुष्य के जीवन में चाहे वह ज्ञान का संग्रह करता हो, चाहे धन का संग्रह करता हो, चाहे यश का संग्रह करता हो, एक बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी है कि मनुष्य जीवन भर संग्रह करता है, इकट्ठा करता है।”

मनुष्य संघर्ष करता है, सारा जीवन धन-सम्पदा, कौशल, यश -मान आदि कमाने और बचाने में ही लगा रहता है। आखिर ऐसा क्यों होता है? इस बात को समझना जरूरी है। ऐसा होने का जो मुख्य कारण है, वह है महत्व की आकांक्षा। दुसरों से आगे निकलने की चाहत इसके जड़ में है। यह जो मानसिकता है, इसका कारण अज्ञानता है। अज्ञानता यानि ज्ञान का अभाव। और ज्ञानरहित कार्यों के द्वारा कोई भी सुखी नहीं हो सकता। 

ओशो के कथनानुसार “मनुष्य संग्रह क्यों करता है? क्यों यह प्रगाढ़ वेग है भीतर कि मैं संग्रह करुं? संग्रह करुं क्यों? अगर इसे न समझा जा सके, तो जीवन में कोई आधारभूत परिवर्तन संभव नहीं है।”

जहां चाह वहां राह – बात सही है, परन्तु इसमें निहित अर्थ को गहनता से समझना जरूरी है। चाहे कुछ भी कर लो, चीजों को इकट्ठा कर लो, कौशल अर्जित कर लो, पर सुख न मिलेगा। जिसे सामान्य मनुष्य सुख समझता है, वह तो क्षणिक है। लेकिन इसकी चाह कभी कम होती नहीं है। इसे पाने के लिए राह की तलाश चलती रहती है, पर वास्तव में गंतव्य तक पहुंचना कठिन हो जाता है। 

जहां चाह है वहां राह है। पर यह जो राह है ज्ञान के पथ पर नहीं ले जा सकता। साधारण मनुष्यों के बीच कोई फर्क नहीं होता। उनकी इच्छाएं समान होती हैं, उनकी वासनाएं समान होती है। हर कोई भौतिकता में ही लिप्त रहता है। दुसरों से अधिक महत्वपूर्ण होने की मंशा सबमें निहित होती है।

हमाम के भीतर सभी नंगे होते हैं। और अपने इस नंगेपन को दिखाने की हिम्मत भी सबमें नहीं होती। इसलिए सभ्य होने का प्रदर्शन अधिक होता है। अपनी भावनाओं, विचारों को  प्रदर्शित करने का ठंग सबमें अलग अलग हो सकता है, स्वरूप समान होता है। अंधकार का रंग एक ही होता है। रात की कालिमा सब जगह एक जैसी होती है। ठीक उसी प्रकार अज्ञानता का रंग होता है। अज्ञानता की प्रकृति कलुषित होता है, जो सबमें समान रूप में मौजूद होता है। 

प्रकाश रंगहीन है, ठीक वैसे ही ज्ञान भी रंगहीन है। और यह जो ज्ञान है, सबमें समान रूप से मौजूद होता है। हां जिस प्रकार प्रकाश के सतरंग जो छुपे होते हैं, दिखाई नहीं पड़ते, पर प्रकाश में निहित होते हैं। ठीक उसी प्रकार उत्साह, साहस, दया, श्रद्धा, आत्मविश्वास, प्रेम और शांति जैसे सद्भावना के रंग भी ज्ञान में निहित होते हैं। जब ज्ञान का प्रकाश प्रस्फुटित होता है, तो ऐ सभी सद्भाव प्रगट हो जाते हैं। 

ज्ञान आत्मा का विषय है, ज्ञान और बुद्धि में, कौशल में भिन्नता है। बुद्धि मन का विषय है, और मन इच्छाओं से भरा होता है। इसलिए बुद्धि का प्रयोग हमेशा इच्छाओं को पूरा करने में ही होता है। सारा कौशल अर्जित इसलिए अर्जित करने का प्रयास किया जाता है, ताकि अपनी इच्छाओं को पूर्ण किया जा सके। और इच्छा की प्रकृति ही ऐसी है कि कभी पूरी नहीं होती। होती है, कुछ देर के लिए, कुछ समय के लिए। यह रुप बदल बदल कर फिर से सामने खड़ी हो जाती है। बुद्धि का प्रयोग कर जो सुख अर्जित किया जाता है, अस्थायी होता है, क्षणिक होता है। 

जहां चाह वहां राह – सांसारिक दृष्टिकोण से बात बिल्कुल सही है। बुद्धि का अपना दृष्टिकोण है, इसमें तोल-मोल है, गणित है। यह सांसारिकता में लिप्त होकर रहती है।यह पक्षपाती है, मन जो कहता है, बुद्धि वही करती है। ज्ञान रंगहीन है, एक भी कलुषित विचार का रंग इसे धुमिल नहीं कर सकती। क्योंकि यह आत्मा का विषय है, जो परमात्मा का अंश है। परन्तु मन की कामना, महत्व की आकांक्षा के काले बादल इसे ढंके हुवे रहते हैं। अगर इन बादलों को पिघलाने का प्रयास हो, तो ये बिखर सकती हैं, बरस सकती हैं। और ज्ञान का प्रकाश प्रस्फुटित हो सकता है। जब ज्ञान का प्रकाश प्रस्फुटित होता है, तो सारे कलेश, सारे आडंबर मिट जाते हैं। कोई चाह नहीं रहती, क्योंकि मन ही मिट जाता है। 

जहां चाह वहां राह – सामान्य के यह बात सही है। परन्तु ज्ञानी के लिए अर्थहीन है। संसारी मनुष्य में चाहत होती है, ज्ञानी में कोई चाहत नहीं होती है। जहां चाह है वहां पश्चाताप है, दुख है। जहां चाह ही नहीं है वहां दुख के लिए कोई जगह नहीं है। वहां केवल सुख है, वैसा सुख जो स्थायी है, इसे ही आनंद कहा गया है। 

सिकन्दर को कौन नहीं जानता। अपनी चाहतों को पूरा करने के लिए उसने क्या किया, यह सभी जानते हैं। उसके महत्व की आकांक्षा के किस्से संसार भर में प्रसिद्ध हैं। परन्तु सारे विश्व में अपना परचम लहराने वाला सिकंदर को अंत में अपने कृत्य पर पछतावा हुवा। यह बात भी सभी जानते हैं, क्योंकि अंत समय में उसने स्वयं अपनी पश्चाताप की भावना को व्यक्त किया था। 

परन्तु बुद्ध को कभी पश्चाताप हुवा हो, इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता। हां बुद्ध के आनंदमय स्वरूप की चर्चा सब जगह होती है। जिनके जीवन में कोई चाह नहीं रही, कोई कामना, वासना का अस्तित्व नहीं रहा, उनके जीवन में दुख भी नहीं ठहर सकता। जीवन के शुरुआत में उनकी जो चाह थी, वह सुख भोग की नहीं थी। जीवन में दुख क्यों है? इसका कारण जानने की चाह उन्हें विचलित कर देती थी। आखिरकार उन्होंने अपनी इस चाह को पूर्ण करने की राह को खोज ही लिया। और उस राह पर चलकर उस अवस्था को प्राप्त कर लिया, जहां दुख का कोई अस्तित्व नहीं है।

ओशो के शब्दों में “प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर असीम संभावना लिए है- बहुत बड़ा वृक्ष जो विकसित हो सकता है। लेकिन महत्वाकांक्षा उसे विकसित नहीं होने देती, दौड़ उसे विकसित होने नहीं देती। जो सब भांति रुकता है, उस विकास को उपलब्ध होता है।” 

बुद्ध ने यह कभी नहीं कहा कि संसार का त्याग कर दो। लेकिन सांसारिकता में ही लिप्त रहो, इससे बचने की बात उन्होंने अवश्य कहीं। कामना रहित होकर सांसारिक दायित्वों को निभाया जा सकता है, इस बात का संदेश उन्होंने संसार को दिया। उन्होंने मध्यमार्ग का दर्शन संसार के समक्ष प्रस्तुत किया। 

श्रीमद्भागवत गीता का मुख्य संदेश भी यही है कि हमसे जो कर्म हों, कामना से रहित हों। श्रीकृष्ण ने यही समझाया है कि कर्म करो, कर्म में लगे रहो, पर फल की आकांक्षा मत रखो। 

चाह गई चिंता मिटी मनवा बेपरवाह।
जिसे कछु नहिं चाहिए वो शाहन के शाह।।

कबीर के अनुसार भी समस्त दुखों का जो जड़ है, आकांक्षा ही है। यह जो चाह है, इच्छा है, सुख को पाने की, यही दुखी होने का मूल कारण है। जो कामना रहित है, उसे किसी बात का दुख नहीं होता, कोई पछतावा नहीं होता। जिसे कुछ नहीं चाहिए, जिसकी चाहत की दौड़ थम जाए, वह तो राजाओं का राजा है।

ओशो के शब्दों में “अगर कुछ पाना है तो रुक जाएं, अगर कहीं पहुंचना है तो ठहर जाएं। ठहर जाना, रुक जाना थिर हो जाना, भीतर सारी चीजों का नया उद्घाटन, नया आविर्भाव शुरू हो जाता है। अगर यह हो सके … यह हो सकता है। अगर यह एक व्यक्ति के जीवन में भी कभी हुवा है, तो हरेक के जीवन में हो सकता है। तो मैं आशा करता हूं कि यह हो सकता है, यह होगा। उस दिशा में थोड़ी आंखे खोलनी जरुरी है।”

इन सभी कथनों, उपदेशों का एक ही ध्येय है, और वह है इस बात पर प्रकाश डालना कि सांसारिक होते हुवे भी आध्यात्मिक हुवा जा सकता है। जीवन में अगर कोई संयम हो, ध्यान हो तो भीतर ज्ञान का प्रकाश प्रस्फुटित हो सकता है। 

जहां चाह है वहां राह है, यह बात सही है। परन्तु जहां चाह नहीं है, वहां भी राह है। जीवन में अगर कोई चाह न हो, तो एक और राह दिखाई पड़ सकता है। यह जो राह है, सामान्य को दिखाई नहीं देता, क्योंकि उसके मन में चाह होती है। ऐसी राह जिसपर चलकर समस्त दुखों से छुटकारा मिल सकता है। और जीवन को सरल और सहज बनाया जा सकता है। और इस राह की खोज वही कर सकता है, इस पर केवल वही चल सकता है, जिसमें कोई चाह न हो। अतः जहां चाह वहां राह – उस उक्ति में निहित गहन अर्थ को समझना जरूरी है। क्योंकि सबकुछ समझ के स्तर पर ही निर्भर करता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *