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खाली दिमाग शैतान का घर …

‘खाली दिमाग’ का तात्पर्य है मस्तिष्क का विचार शुन्य हो जाना। परन्तु यह जो दिमाग है, क्या कभी खाली हो सकता है ? दिमाग कभी खाली नहीं होता! मनुष्य के मस्तिष्क में हमेशा कुछ न कुछ चलता रहता है। तो फिर खाली दिमाग का तात्पर्य क्या है ? 

एक लोकोक्ति है कि ‘खाली दिमाग शैतान का घर’ होता है। ‘शैतान का घर’ यानि अनिष्ट करने वाले विचारों का घर। यानि अच्छा हो या बुरा, विचार तो रहेंगे ही। यह खाली कैसे हो सकता है! इस दिमाग में हमेशा कुछ ना कुछ चलते रहता है। कोई प्रश्न और उस प्रश्न को हल करने का विचार, किसी कार्य को क्रियान्वित करने का विचार या किसी कार्य का नहीं होने की चिंता आदि! वास्तव में खाली दिमाग का आशय है, सकारात्मक सोच का अभाव। जब उत्तम विचारों का ह्रास हो जाता है तो यह दिमाग गन्दे विचारों से भर जाता है। इसलिए यह कहा गया है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है।

शारीरिक रूप से स्वस्थ होना तो हर किसी के लिए जरुरी है। परन्तु एक स्वस्थ दिमाग का होना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक स्वस्थ दिमाग में ही स्वस्थ विचारों का संचार होता है। स्वस्थ दिमाग में ही चिंतन की प्रवृति होती है। इसलिए व्यक्ति को चाहिए कि मस्तिष्क में सकारात्मक विचारों को स्थान देने का प्रयास करे।

सारा दिन के भाग-दौड़ के पश्चात, रात को सोने से पूर्व क्या आपने कभी चिंतन किया है? उस वक्त आपके पास केवल एक ही चीज होती है वह है आपके मस्तिष्क का वह जगह, जहां आप रहते हैं। यह समय दिनभर की गतिविधियों का आकलन और अगले सुबह के लिए योजना बनाने का है। और जरा सोचिए कि अगर आप वहां सकारात्मक नहीं रहेंगे तो क्या होगा ?

दिमागी रूप से स्वस्थ रहना महत्त्वपूर्ण है, मस्तिष्क के जगह को सकारात्मक विचारों से भरना आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं हो तो नकारात्मक विचार उस जगह पर अपना अधिकार जमा लेगा। फिर यह स्थान सकारात्मक विचारों से रिक्त हो जाएगा। और यह न केवल उस रात को बल्कि उसके बाद के दिनों को भी बर्बाद कर देगा।  खाली दिमाग का वास्तविक अर्थ यही है!!

आज के समय में लोग इतने सारे कार्यकलापों में व्यस्त हो गए हैं कि मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देते। और इस भाग-दौड़ की थकान से रोगग्रस्त हो जाते हैं। इस स्थिति में मनोचिकित्सकों की सलाह लेने से भी डरते हैं। उन्हें इस बात का भय होता है कि लोग उन्हें पागल न समझ लें। समाज का रुढ़ीवादी सोच उन्हें ऐसा करने से रोकता है।

किसी भी व्यक्ति के अवसादग्रस्त होने का प्रमुख कारण उसका मानसिक स्वास्थ ही होता है। जरुरत इस बात का है कि हम दिमागी हालात को समझें और मस्तिष्क को सकारात्मक विचारों से समृद्ध करने का प्रयास करें। मस्तिष्क को स्वच्छ और स्वस्थ रखना हमेशा उत्तम होता है। और इसका प्रयास निरंतर और नियमबद्ध होकर पूरे विश्वास के साथ करना अनिवार्य है।  मानसिक स्थिति की उत्तमता को किसी भी चीज से ऊपर रखने का प्रयास यथेष्ठ है। 

एक उक्ति जिसने मुझे प्रेरित किया है। और हमेशा तनाव से बाहर निकलने में जिसने मेंरी सहायता की है – “दिन समाज का और रात अपने बाप का” !! यह जो उक्ति है, मेंरे परम श्रद्धेय स्वामी तपेश्वरानंद ने मुझसे कही थी। उनकी ये शब्द कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करते हैं। 

मन की रिक्तता !

मस्तिष्क का संबंध मन से है। परन्तु मन की रिक्तता का अर्थ भिन्न है। ज्ञानियों की मानें तो मन एक प्रतीति है। विचार होते हैं, मन नहीं होता! हम जो चाहते हैं, जो सोचते हैं, इस प्रक्रिया की जो प्रतीति होती है, यही मन है। हमारे विचारों से ही हमारे मन का निर्माण होता है। हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण होता है। 

ज्ञानीजन इसके दो सतह, दो तल की बात करते हैं। एक ऊपर का और दुसरा सतह है भीतर गहराई में। और यह जो विचारों का आना-जाना चलता रहता है, यह मन के ऊपरी सतह का विषय है। यह जो तल है ऊपर का, सारे विचारों का प्रवाह यहीं पर होता है। यही मस्तिस्क का बिषय है। भीतर तो कुछ भी नहीं है, रिक्त है, खाली है, शांति है, स्थिरता है। ज्ञानी इसी रिक्तता की बात करते हैं। 

मन को कुछ चाहिए! कुछ ना कुछ चलता रहता है हमेंशा इसके सतह पर। और इच्छाओं  से भरा हुआ मन अशांत होता है, अस्थिर होता है। मन की शांति के लिए जरूरी है, विचारों से रिक्त हो जाना। इसके लिए मन पर नियंत्रण करना जरूरी है। और इसे नियंत्रित करने का जो उपाय है, इसे जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

परन्तु सामान्य व्यक्ति के लिए इसे समझ पाना कठिन है। ज्ञानी जहां खालीपन की बात करते हैं, वहीं सामान्य व्यक्ति व्यस्तता की बात करते हैं। जीवन है तो जीने के लिए साधनों की उपलब्धता भी जरूरी है। प्रत्येक को पारिवारिक, सामाजिक आदि अनेक दायित्वों का निर्वहन भी करना पड़ता है। और इसके लिए वह अपने दिमागी कौशल को विकसित करता है। इन्हीं कार्यों में लगे रहना ही सामान्य की दृष्टि में व्यस्तता है।

मन पर विचार जरूरी है !

लोग इसी व्यस्तता की बात करते हैं। उन्हें लत लग गई है इसकी। और अगर बाधा उत्पन्न हो जाए तो घबरा जाते हैं। कोई खाली नहीं होना चाहता, इस व्यस्तता से। इसलिए घबराता है, और कहता है ‘खाली दिमाग शैतान का’ आदि आदि। पर इतना तो अवश्य समझ लेना चाहिए कि सकारात्मक विचारों को धारण करने का प्रयास ही व्यस्तता है। नकारात्मक विचारों के प्रभाव में आना ही खाली दिमाग का परिचायक है। और अगर इतना भी समझ लिया तो फिर सारे सांसारिक दायित्वों का निर्वहन करने में वह समर्थ हो सकता है।

‘मन की रिक्तता’ की बात सामान्य के समझ से परे है। सामान्य व्यक्ति को ‘मन की रिक्तता’ का वास्तविक अर्थ भले ही समझ में न आता हो। पर विचारों का जो लहर उमड़ रहा है उसके मन में उसे नियंत्रित करने का प्रयास अवश्य होना चाहिए।

मन पर नियंत्रण कैसे करें! how to control the mind.

प्रक्रिया पर भरोसा करें !! 

मन को नियंत्रित करने की प्रक्रिया पर विश्वास का होना महत्त्वपूर्ण है। मन की रिक्तता का आभास तब होता है जब कोई मन के भीतर की यात्रा करता है। ध्यान एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके विषय में बातें तो सभी करते हैं, लेकिन इसे अपनाते नहीं। आज के उठा-पटक के इस दौर में इसे भूला दिया गया है। अगर इस प्रक्रिया पर भरोसा हो, और नियमित रुप से इसका अभ्यास हो। तो मन के गहराई में उतरा जा सकता है।

ध्यान क्या है जानिए ! Know what is meditation.

ध्यान की क्रिया से जो सतह है उथल-पुथल की, जहां सारा उपद्रव है विचारों का, उसे नियंत्रित किया जा सकता है। और निरंतर प्रयास से यह संभव भी हो जाता है। जैसे-जैसे विचारों पर नियंत्रण होता जाता है, वैसे-वैसे निचले सतह के गहराई की शांति की प्रतीति का होना आरंभ होने लगता है। और जब मन के भीतर की यात्रा पूर्ण हो जाती है तो वह विचारों से रिक्त हो जाता है। मष्तिष्क की बुद्धि से परे ज्ञान के स्तर को प्राप्त कर लेता है। 

मन को कुछ चाहिए!

और उसे जो चाहिए, यह सांसारिकता उसे नहीं दे सकती। किसी को नहीं मिला, जो उलझा रहा विचारों में। पुरे संसार पर विजय प्राप्त करने वाला सिकंदर को भी नहीं मिला! वह कुछ जो मन को चाहिए। मन को जो चाहिए, वह तो भीतर मौजूद है। जिन्होंने ढ़ूढ़ा बाहर बाहर, उसे मिला ही नहीं। 

सबकुछ है वहां, जहां मन नहीं है। यह मन केवल एक प्रतीति है, हम इसके अधीन होकर चल रहे हैं, इसलिए यह हमसे ऊपर हो गया है। मन एक अवरोध है, भीतर की यात्रा का। ध्यान क्रिया से सारे अवरोधों को तोड़ा जा सकता है। उस अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है जहां मन नहीं है। मन की रिक्तता का वास्तविक तात्पर्य है, विचारों से मुक्त हो जाना, ज्ञान को उपलब्ध हो जाना!! और यह जो अवस्था है,  खाली दिमाग का नहीं है। जब मन रिक्त हो जाता है तो मस्तिष्क में आनंद के तरंगो का प्रवाह होने लगता है। 

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