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नर हो न निराश करो मन को …

नर हो न निराश करो मन को – मैथिली शरण गुप्त की एक कविता की पंक्ति है। इसमें ‘नर’ एवम् ‘निराश’ दो शब्दों पर ध्यान आकर्षित किया गया है। एक और शब्द ‘मन‘ है, निराश होने का संबंध मन से ही है। मन ही निराश होता है, जब उसकी आश पूरी नहीं होती, तो वह

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चौबे गए छब्बे बनने दुबे बनकर लौटे ।।

चौबे गए छब्बे बनने दुबे बनके लौटे- छब्बे बना जा सकता है, आत्मज्ञान को पाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए पाठक बनना होगा, सीखना होगा, जानना होगा। तभी यह संभव है, वर्ना उन्नति संभव नहीं, दुबे बनकर लौटना पड़ेगा।

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जहां चाह वहां राह ।।

जहां चाह वहां राह – बात सही है। पर जहां चाह नहीं है, वहां भी राह है। एक और राह , जो साधारण मनुष्य को दिखाई नहीं देता। और जिसपर चलकर समस्त दुखों से छुटकारा मिल सकता है …

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मन मैला और तन को धोए।।

मन मैला है, ऐसा मन की कामना के कारण है। शारीरिक सुख और सौंदर्य को पाने और बनाए रखने पर जोर है। ऐसा कामना के कारण ही हो रहा है। पर इस पर ध्यान नहीं है …

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वर्डप्रेस पर ब्लॉग वेबसाइट कैसे बनाएं –

वर्डप्रेस पर ब्लॉग वेबसाइट बनाने के लिए आप वर्डप्रेस के free option का उपयोग कर सकते हैं। और self hosted blog website भी बना सकते हैं। यह एक content management system है।

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एक राधा एक मीरा: दोनों श्याम की दीवानी।।

एक राधा एक मीरा! राधा के प्रेम की महक समस्त संसार में व्याप्त है। और मीरा की भक्ति की धारा समस्त संसार में प्रवाहित हो रहा है …

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