समस्या क्या है? एक भाव, अवस्था, स्थिति, परिस्थिति या कुछ और या फिर इनमें से कुछ भी नहीं। इसे जिस तरह से लिया जाय, परन्तु यह हर किसी के जीवन में उपस्थित होता रहता है। अब प्रश्न यह है कि हम इसे बुलावा देते हैं अथवा यह जबरन हमारे पीछे पड़ा रहता है। और अगर हमें यह परेशान करता है, तो इससे छुटकारा पाने के उपाय क्या हैं? आइए इस पर चर्चा करने से पूर्व यह जानें कि आखिर यह कौन सी बला है?
सामान्यतः जिस परिस्थितियों से बाहर आने के लिए हमें अथक प्रयास करने होते हैं, उस परिस्थिति विशेष को समस्या समझा जाता है। और इन कठिन परिस्थितियों, जटिल विषयों को सुलझाने के लिए की जाने वाली क्रियात्मक गतिविधियों को समाधान कहा गया है। समस्या का आशय है ऐसी कठिन परिस्थितियां, ऐसे उलझे हुवे विषय जिनका निदान सरलता से नहीं होता। और समाधान का आशय संकट, संशय जैसी जटिल स्थितियों से बाहर निकलना होता है।
सामान्यतः यही समझा जाता है कि उलझन समस्या है एवम् सुलझन समाधान है! प्रश्न समस्या है एवम् उसका हल समाधान है। परन्तु क्या वास्तव में उलझन समस्या है? जिस परिस्थिति से निजात पाना संभव हो, वह समस्या कैसे हो सकता है! समस्या तो उसे समझना चाहिए जिसका कोई समाधान ही न हो।
अब फिर से एक प्रश्न उपस्थित होता है कि जिस स्थिति से बाहर निकलने का कोई संभावना नहीं हो! क्या वह समस्या है? जैसे मृत्यु एक अवश्यंभावी घटना है! मृत्यु एक ऐसी घटना है, जिसे टाला नहीं जा सकता! तो क्या मृत्यु एक समस्या है? जिस घटना को हम अथक प्रयास के वावजूद टाल नहीं सकते, उस पर सोच-विचार करना ही व्यर्थ है ! जिसका जन्म हुवा है, उसका मरण भी निश्चित है, यह विधि का विधान है। जिसका घटित होना निश्चित है, उस विषय पर चिंता ही व्यर्थ है। चिंता तो किसी भी विषय-वस्तु, स्थिति-परिस्थिति, घटना के संबंध में नहीं करना चाहिए। क्योंकि किसी भी विषय पर चिंता करना ही समस्या है।
जीवन एक संभावना है ! चिंतन तो जीवन के विषय में होनी चाहिए। वास्तविकता तो यह है कि जिसे हम समस्या समझते हैं, वह एक संभावना है। यह जो जीवन है, विधाता के द्वारा ही मिलता है। परन्तु इस जीवन को जीना होता है, और जीने के तरीके सीखने पड़ते हैं। जीवन समस्या नहीं एक संभावना है ! इसलिए तो ज्ञानीजन कहते हैं कि ‘जब तक सांस है तब तक आस है।’ यह बात हमें समझ लेनी चाहिए कि जीवन में जो स्थितियां, परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं उनका समाधान भी उपलब्ध रहता है।
किसी के जीवन में जो स्थितियां, परिस्थितियां आती हैं, उसका कारण वह स्वयं होता है। कुछ प्रारब्ध अर्थात् जन्म-जन्मांतर के संचित कर्मों के फल होते हैं। और कुछ उन कर्मो के परिणाम होते हैं जो इस जन्म में उससे हुवे हैं। परन्तु इन परिस्थितियों से निकलने का मार्ग बंद नहीं होता। समाधान के रास्ते मौजूद होते हैं, बस उन्हें देखने और उन राहों पर चलना होता है।
जीवन में सिर्फ हालात होते हैं, चाहे यह एक समस्या बन जाये या समाधान, यह आपके दृष्टिकोण पर निर्भर करता है!
सदगुरु
सदगुरु जग्गी वासुदेव ने इस बात को बहुत ही सहजता से समझाया है। सदगुरु के शब्दों में ; हर समस्या आपको इसिलिए समस्या नजर आती है, क्योकि आप इसे समस्या कहते हैं। वास्तव में जीवन में कोई समस्या नहीं होती, केवल स्थितियां और परिस्थितियां होती हैं। जीवन में हर चीज एक परिस्थिति है, अगर आप इसे समस्या कहेंगे तो यह समस्या बन जायगी। अगर आप इसे संयोग मानेंगे तो वह वैसी बन जायगी। अतः जो भी परिस्थिति सामने हो, उसके प्रति न तो ‘जाने दो’ का भाव रखने की कोशिश करें और न ही उससे स्वयं को दुर करें।
जब आप किसी चीज से पुरी तरह से जुड़ते हैं, तो फिर आप उस परिस्थिति को अच्छी तरह से समझते हैं। जब आप हालात को जानते हैं तो फिर तो फिर आप देखते हैं कि वह परिस्थिति आपके जीवन से क्या कीमत चाह रही है। अगर आप उस हालात में रहते हैं तो उसकी एक कीमत होगी, अगर आप उस हालात से निकलते हैं तो उसकी एक कीमत होगी।
जीवन परिस्थितियों का एक न रुकनेवाला सिलसिला है। अगर आप विकास के रास्ते पर हैं, तो हो सकता है आप लगातार ऐसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हों, जिन्हें संभालना आप नहीं जानते हों। हो सकता है कि ये लगातार चुनौतीपूर्ण हों, लेकिन ये कोई समस्या नहीं है। सही मायने में समस्या वो होगी, जब व्यक्ति के जीवन में कोई परिस्थिति ही न हो। इसका मतलब यह है कि यह हुवा कि उसकी जिन्दगी में एक ठहराव आ गया है। अगर आप लगातार गतिशील विकास की प्रक्रिया में रहना चाहो, तो आपको नित नई परिस्थितियों का सामना करना होगा। जरुरी नहीं कि आपको इन्हें संभालना आता हो। अगर आप इस तरह की तमाम तथाकथित समस्याओं का सामना कर रहे हैं, तो आप एक संभावनाओं से भरा जीवन जी रहे हैं।
परिस्थिति और चुनौती !
सामान्य मनुष्य समस्याओं से क्यों घिरा हुआ है? इसका कारण है वह चुनितियों को स्वीकार नहीं करता। मनुष्य के मन का सहज प्रवृति है कि वह केवल सुख चाहता है। और सुखी होने के जो आवश्यक त्तत्व विवेक, धैर्य, साहस, संतोष इत्यादि उसका कोई संबंध नहीं होता। उसके जीवन में ध्यान नहीं है, योग नहीं है। इन जरुरी त्तत्वों को प्राप्त करने के वह कोई भी कीमत चुकाना नहीं चाहता। उसका समस्त श्रम, ऊर्जा, समय भौतिक संसाधनों को पाने में लग जाता है। फलस्वरूप उसका मन अस्थिर, अशांत रहता है। और अशांत मन समस्याओं का घर होता है।
अनवस्थितकायस्य न जने न वने सुखम्। जनों दहति संसर्गाद् वनं संगविवर्जनात्।।
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जिसका मन अशांत होता है, उस व्यक्ति को कहीं सुख नहीं मिलता। न लोगों के बीच और न ही वन में! ऐसे व्यक्ति को लोगों के बीच ईर्ष्या जलाती है और वन में अकेलापन। अगर सुखी होना है तो मन को नियंत्रण में रखना आवश्यक है। पर मन को नियंत्रित करना सरल नहीं है। इसे एक चुनौती के रूप में लेना होता है। त्याग और तपस्या करने पड़ते हैं, इसके लिए कीमत चुकाना पड़ता है।
मन पर नियंत्रण कैसे करें! how to control the mind.
हम सभी को ज्ञात है कि जिस प्रकार प्रत्येक ताले को खोलने के एक चाभी होती है। ठीक उसी प्रकार हर समस्या का समाधान मौजूद है। जितनी समस्याएं हैं, उससे कहीं अधिक समाधान मौजूद हैं। एक तरफ समस्याओं का ढेर है तो दुसरी तरफ समाधानों का ढेर है। परन्तु एक भी समस्या का समाधान हमें दिखाई नहीं देता। क्योंकि दोनों छोर के बीच कोई सेतु नहीं है। समुचित ज्ञान के अभाव में हमारा जीवन उलझता चला जाता है!
जहां सांसारिक जीवन की बात है, सांसारिक क्रिया-कलापों में भी हम समाधान की खोज नहीं करते। और जो भी समाधान हमारे पास मौजूद हैं, वे घीसे पीटे हैं, पुराने पड़ चूके हैं। समय परिवर्तनशील होता है। बदलते समय के साथ परिस्थितियां भी नये नये रुप में उपस्थित होती हैं। जो कल था वो आज नहीं है और जो आज है वो कल नहीं रहेगा। मानव सभ्यता कभी पाषाण युग में था आज तकनीकी युग में प्रवेश कर चूका है। नयी परिस्थितियां, नयी चूनौतियां प्रस्तुत करती हैं। इनसे निपटने के लिए भी नये तरकीब की जरूरत पड़ती है। समय के अनुसार स्वयं को ढालना पड़ता है। महत्त्वपूर्ण यह है कि हम इन चुनौतियों से निपटने के लिए खुद को किस प्रकार तैयार करते हैं।
उत्तर महत्त्वपूर्ण नहीं होते, महत्त्वपूर्ण हमेंशा विधि होती है।
ओशो
ओशो के शब्दों में; आज की बदली हुवी स्थितियों में जहां ज्ञान का तीव्रता से विस्फोट हो रहा है, वहां हमें उत्तर नये खोजने होंगे। पुराने उत्तर काम नहीं दे सकते। और भी एक मजे की बात है कि कभी हमें पता ही नहीं चलता, क्योंकि प्रश्नों के संबंध में हम कभी गहराई से सोचते ही नहीं कि प्रश्न क्या है। जिनके पास उत्तर हैं वे प्रश्न में खोज बीन करने की दिक्कत में नहीं पड़ते। जैसे कोई बच्चा किताब उलटकर गणित का उत्तर पीछे देख लेता है! फिर वह प्रोसेस, विधि करने की फिक्र नहीं करता, फिर वह उत्तर लिख देता है। लेकिन उत्तर महत्त्वपूर्ण नहीं होते, महत्त्वपूर्ण हमेंशा विधि होती है।
अगर कोई कठिन समस्या उपस्थित हो जाय तो हमारे पास उपाय मौजूद होते हैं। वैसे उपाय जो हमने सुना है, पढ़ा है, पर जाना नहीं है। अपने तरीके से जो हमारे समझ में आता है, उससे निकलने का प्रयास करते हैं। लेकिन हम समस्या के गहराई में जाने की इच्छा नहीं रखते। इस बात को समझना जरूरी है कि आसान तरीकों से कठिन समस्याओं का निदान नहीं हो सकता। समस्याओं के निदान हेतु उसके कारणों पर विचार करना आवश्यक है।
इस बात से असहमत नहीं हुवा जा सकता कि कभी कभी जीवन में ऐसी भी परिस्थितियां आती हैं, जिससे पार पाना असंभव लगने लगता है। ऐसे में अशांत होने लगता है। परन्तु ऐसे समय में भावावेश में लिया गया निर्णय और अधिक परेशानियों में डाल सकता है। ऐसे कठिन समय में धैर्य बनाए रखना उचित होता है। शांत मन और विवेकपूर्ण तरीकों से ही कठिन परिस्थितियों से पार पाया जा सकता है। पानी में जब कीचड़ घुल जाता है तो पानी गंदा हो जाता है। कुछ समय के लिए उसका रुप, रंग, गुण परिवर्तित हो जाता है। ऐसी अवस्था में उसे शांत छोड़ देना चाहिए। आप देखेंगे कुछ समय पश्चात् पानी साफ होने लगता है। उसमें घुला हुवा कीचड़ धीरे-धीरे निचले तल पर जमा होने लगता है। ठीक उसी प्रकार मन जब शांत हो जाता है तो समाधान के रास्ते दिखाई देने लगते हैं।
जीवन को संघर्ष कहा गया है। और विना बौद्धिक क्षमता के हम संघर्ष करने योग्य नहीं बन सकते। योग्य बनने के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है। सुमति है तो सम्पति है : wisdom is your property..!
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अंत में अनुभव से बड़ा कोई शिक्षक नहीं है, अतः सुनिए सबकी पर किजिए अपनी। परन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि बौद्धिक संपदा जिसके भीतर विकसित हो जाता है, वह हर परिस्थिति का सामना करने में समर्थ हो जाता है। वह हर परिस्थिति को समस्या के रूप में नहीं चुनौती के रूप में स्वीकार करता है।