ठोकर ! सामान्यतः इस शब्द का अर्थ है राह चलते किसी भी प्रकार के अवरोधों से टकरा जाना। ठेस लगना, आघात, चोट आदि इसके समानार्थी शब्द हैं। परन्तु ठोकर केवल पैरों को ही नहीं लगती। चोट केवल तन को ही नहीं लगता, मन को भी लगता है। तन या मन को किसी भी प्रकार की हानि हो तो यह चोट कहलाता है। ठोकर तन को लगे अथवा मन को, दर्द दोनों ही स्थितियों में होता है। परन्तु मन का चोटिल होना कहीं अधिक कष्टकारी होता है। शरीर के चोटिल होने से जो दर्द होता है, उपचार से ठीक हो जाता है। पर मन चोटिल हो जाता है तो दर्द आसानी से पीछा नहीं छोड़ता। जीवन जीने के लिए कर्म करने पड़ते हैं। यह ऐसा मार्ग है, जो कभी सीधा नहीं होता। जीवन-पथ में चलते हुए अनेक विघ्न-बाधाओं से भी गुजरना पड़ता है। इस राह में चलते हुए बहुत कुछ ऐसा भी हो जाता है, जिसपर राही का कोई अंकुश नहीं होता। अनायास कोई दूर्घटना हो जाती है, और राही चोटिल हो जाता है।
प्रस्तुत है इस भाव को व्यक्त करती एवम् जिंदगी से समाधान मांगती स्वरचित कविताएं …
जिंदगी के उदास राहों पर !
जिंदगी के उदास राहों पर
आता नहीं कुछ साफ नजर
राहों में है रोशनी कम
या निगाहों का ये धुंधलापन
हो जाते हैं राहों में उजाले
एक दीए की रोशनी से
पर निगाहों पर होती नहीं
दीये की रोशनी का असर
क्योंकि ये आंखों की नहीं
है ये मन का नजर
खानी पड़ती हैं ठोकरें
जिंदगी की राहों पर
जिंदगी मशवरा तो देती है
ठोकरें खाने की
पर इजाजत देती नहीं
खाकर रुक जाने की
रुक जाते हैं जो खाकर
इन ठोकरों की चोट
छिपा लेते हैं खुद को
धुंधले चादर की ओट
कदम जिनके थमते नही
रूकते नहीं जिनके सफर
सह लेते हैं हर चोट जिन्हें
मंजिल आती हो साफ नजर
जिंदगी की ठोकरों से ही
जीने की समझ भी आता है
उजियारा मन में छा जाता है
जब समझ का दिया सुलगता है
जिंदगी खुद एक सवाल है !
सवाल तो बहुत है
सभी को जिन्दगी से
लेकिन यह जो जिन्दगी है
खुद एक सवाल है
गर पूछता है कोई
तो मिल जाते हैं जबाब
उन तमाम सवालों के
पूछे जाते हैं जो जिन्दगी से
लेकिन मिलता नहीं कभी
जबाब एक सवाल का
गर पूछो जिन्दगी से
कौन हो तुम? ऐ जिन्दगी
आखिर क्यों? मिलता नहीं
जबाब इस सवाल का
फिर खड़ा हो जाता है
एक और सवाल
पीछे इस सवाल के
इतना तो बता ऐ जिन्दगी
कौन है वो? बता सके जो
जबाब इस सवाल का
ऐसा भी नहीं कि
मिला न हो किसी को
जबाब इस सवाल का
जिसने किया मोहब्बत
इस हसीन जिन्दगी से
मिला है उस दीवाने को
जबाब इस सवाल का
किया जो पूरी तबियत से
यह सवाल जिन्दगी से
मिला है उस मस्ताने को
जबाब इस सवाल का
बुद्ध को मिला
कबीर को मिला
जिन्होंने भी जाना
ये राज जिन्दगी का
उन्होंने बताया भी
जबाब इस सवाल का
गर जान न पाया कोई
खता है यह किसकी
जिन्दगी की या फिर
इसे जानने वालों की
जिन्होने दिया है
जबाब इस सवाल का
खता है यह खुद उनकी
जिन्होंने ना ढ़ुंढ़ा कभी
जबाब इस सवाल का
उलझकर रह गये जो
बेतुक सवालों में
मिलेगा उन्हें क्यों?
जबाब इस सवाल का ..!