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वाणी की प्रकृति!

वाणी की प्रकृति का आशय क्या है? वाणी मुख के बोल हैं, मुख से प्रगट होनेवाले शब्दों से जो ध्वनि उत्पन्न होती है, वाणी की संज्ञा दी गई है। मनुष्य के तन में जो इंद्रियां हैं, वो मन के अनुसार कार्य करती हैं। मन जो चाहता है, जैसा चाहता है, वही करना पसंद करता है। इन्हीं इंद्रियों में से एक है कान, जिसका कार्य ध्वनि का अनुभव करना है। जब मुख से वाणी प्रगट होती है, तो वह वक्ता के मनोभाव से प्रभावित होती है। और श्रोता के मन को प्रभावित करती है। वाणी की प्रकृति मन की प्रकृति के सदृश होती है। 

कटु वाणी और मधुर वाणी,  मुख्यत: यह दो स्वरुप में प्रगट होती है। कटु वाणी, अर्थात् ऐसी वाणी जो सुनने में अप्रिय लगे। कटु का समानार्थी है कड़वा, कर्कशा, अप्रिय आदि। कड़वा यानि जिसका स्वाद अच्छा नहीं लगता है। और अप्रिय का आशय है जो मन को नहीं भाता है। कुछ ऐसे भी शब्द हैं, जो किसी का अपमान करने अथवा व्यंग करने के लिए प्रयुक्त होते हैं। इन शब्दों को अपशब्द की संज्ञा दी गई है। अपशब्द कटु वचन की श्रेणी में आते हैं। कटु वचन दुसरों के मन को व्यथित कर देते हैं। वहीं कुछ ऐसे भी शब्द हैं, जो व्यथित मन को सुकून भी देते हैं। 

शब्द शक्तिशाली होते हैं, क्योंकि शब्दों के साथ मन की शक्ति का समावेश होता है। वाणी की शक्ति किसी व्यक्ति के लिए वरदान भी है और अभिशाप भी है। वाणी की प्रकृति व्यक्ति के मनोभाव पर निर्भर करती है। वाणी अगर मधुर हो तो अच्छा परिणाम देती है। और कड़वी वाणी अनिष्टकारी परिणाम लेकर प्रगट होती है। अतः वाणी पर नियंत्रण बनाए रखना आवश्यक है। चूंकि वाणी व्यक्ति के मनोभाव से प्रभावित होती है। इसलिए वाणी को मधुर बनाए रखने के लिए मन पर कार्य करना जरूरी है।

वाणी पर नियंत्रण जरूरी है!

वाणी की प्रकृति के उत्तम स्वरूप, यानि कि मुख से हमेशा मधुर बोल प्रगट हो, इसके लिए मन की शांति महत्वपूर्ण है। और मन को शांत, नियंत्रित रखने के लिए ध्यान क्रिया का अभ्यास एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। ज्ञानियों ने वाणी की प्रकृति पर सजग रहने पर जोर दिया है। निम्नांकित कथनों से इस बात के महत्व को समझा जा सकता है।

कागा काको धन हरै, कोयल काको देत।
मीठी वाणी बोल के, जग अपनो कर लेत।।

कबीर के उक्त दोहे का आशय है कि कौआ किसी से कुछ नहीं लेता, फिर भी लोग उसे पसंद नहीं करते। और कोयल किसी को कुछ नहीं देता, लेकिन सबका प्रिय बन जाता है। दोनो में जो अंतर है, उनकी वाणी के कारण ही है। मधुर वाणी बोलकर कोयल सबका प्रिय बन जाता है। वहीं कौआ कटु वाणी के कारण अप्रिय हो जाता है। 

मधुर वचन है औषधि, कटुक वचन हैं तीर।
श्रवण द्वार है संतरे, सालै सकल सरीर।।

कबीर ने कहने का आशय है कि मीठी वाणी औषधि के समान होती है। और कटु वाणी तीर के समान चुभती है। इसकी ध्वनि कानों पर पड़ती है, लेकिन समस्त शरीर को आघात पहुंचाती है। 

शबद सम्हारै बोलिए, शबद के हाथ न पांव।
एक शबद औषधि करै, एक करै घाव।।

कबीर ने कहा है कि शब्दों का उच्चारण सोच समझकर करना चाहिए। शब्दों के हाथ-पैर नहीं होते, वाणी पर नियंत्रण वक्ता के हाथ में होता है। शब्द घाव भी देता है, और मरहम भी लगाता है। इसलिए बोलने से पहले शब्दों का चयन महत्वपूर्ण है।

मन कटु वाणी से आहत हो,
भीतर तक छलनी हो जाए।
फिर बाद कहे प्रिय वचनों का,
रह जाता कोई अर्थ नहीं।

कवि दिनकर की उपरोक्त पंक्तियों में वाणी के प्रति सजग रहने की सीख दी गई है। शब्दों का प्रयोग करते समय हमेशा सावधानी बरतना चाहिए। और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि शब्द वाण से जो आघात लगता है, उसके घाव कभी नहीं भरते। कटु वाणी से जो घाव उत्पन्न होता है, उसपर सुकुन देनेवाली वाणी भी मरहम का काम नहीं कर पाती। 

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे आपहूं शीतल होय।।

कबीर ने भी वाणी की प्रकृति के मधुर स्वरुप जीवन में अंगीकार करने की बात कही है। और यह मन पर कार्य करने से ही संभव हो सकता है। ‘मन की आपा’, अर्थात् ‘मैं’ की भावना, अहंकार। जब तक कोई भावनाओं पर नियंत्रण नहीं कर पाता, उसका मन अशांत रहता है। अशांत मन बात बात में उत्तेजित हो जाता है, क्रोधित हो जाता है।  मन भावना प्रधान होता है। जो व्यक्ति भावनाओं पर नियंत्रण रखना सीख जाता है, वह कटु वाणी पर नियंत्रण पा लेता है। 

जहां तक वाणी की प्रकृति की बात है, इस आलेख मे इस तथ्य पर जो विचार किया गया है। इससे यही प्रतीत होता है कि इसकी प्रकृति व्यक्ति के प्रव‌ति पर निर्भर करता है। व्यक्ति के स्वभाव पर निर्भर करता है, और सामान्य व्यक्ति जो भी करता है, मन के भावनाओं से प्रभावित होकर करता है। प्रत्येक व्यक्ति में गुण और अवगुण दोनों का समावेश होता है। परन्तु कोई अपने अवगुणों की बात नहीं करता और न ही सुनना पसंद करता है। अधिकांश को अपनी प्रसंशा अधिक प्रिय लगती है। और जब कोई उनसे उनके अवगुणों पर बात करता है, उन्हें कड़वी लगती है। यह मलीन मानसिकता का परिचायक है। मन की प्रकृति ही चंचल है, अस्थिर है, अहंकारी है। अगर प्रयास किया जाए, तो प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रवति में सुधार कर सकता है।

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