Adhyatmpedia

संघर्ष ही जीवन है ..!

संघर्ष ही जीवन है! क्योंकि विना संघर्ष के कुछ भी हासिल नहीं होता। जीवन में जो कुछ भी प्राप्त करने की चाह होती है, उसके लिए संघर्ष करना पड़ता हैं। संघर्ष ही जीवन है! जीवन है तो संघर्ष है! संघर्ष के विना जीवन नहीं है! ये जो उक्तियां हैं, सभी का आशय समान है। इन प्रचलित उक्तियों में एक ही बात को भिन्न तरीके से कहा गया है। संघर्ष के विना कुछ भी प्राप्त नहीं होता, यह बात बिल्कुल सही है। बात शारिरिक जरुरतों की हो, मान्सिक संतुष्टि की हो अथवा आत्मसुधार की हो, संघर्ष महत्वपूर्ण है। परन्तु यह जो संघर्ष है, इसका अर्थ क्या है? इसे ठीक प्रकार से समझना जरूरी है। 

संघर्ष का अर्थ क्या है जानिए ..!

संघर्ष एक ऐसी क्रिया है, जिसे किसी एक तरीके से परिभाषित नहीं किया जा सकता। यह व्यक्तिक भी है और सामूहिक भी है। किसी एक का अन्य के साथ असहमति अथवा द्वंद संघर्ष का एक रुप है। परन्तु अगर गौर करें तो इसमें केवल दुसरों से असहमति ही नहीं है। दुसरों के हित के लिए किया जानेवाला प्रयास भी संघर्ष है। दुसरों के राह में रोड़े अटकाना और दुसरों के राह के रोड़े हटाना, दोनों ही प्रक्रिया में संघर्ष है।

निर्माण और विध्वंस दोनों ही इसके स्वभाव में निहित हैं। संघर्ष बाह्य यानि बाहर के संसार से होता है और यह आंतरिक भी है। असहमति अथवा द्वंद केवल दुसरों से नहीं खुद से भी होता है। यह सांसारिक दायित्वों का निर्वहन करने का प्रयत्न भी है। और स्वयं में सुधार करने की प्रक्रिया भी है। महत्वपूर्ण यह है कि हमारा जो संघर्ष है, उसका स्वरुप क्या है? 

सामान्य मनुष्य सांसारिक सुख-संपदा को प्राप्त करने का जो प्रयास करता है, वही उसके लिए संघर्ष है। परन्तु वह सबकुछ अगर मिल जाए, जिसके लिए प्रयत्न किया गया हो, फिर भी संघर्ष चलता रहता है। वह सबकुछ अगर मिल जाए, जिसकी कामना की गई हो। जिसे पाने के लिए संघर्ष किया गया हो, तो एक नया रूप संघर्ष का सामने आ जाता है। यह रूप है उसे बनाए रखने का , जिसे पाने के लिए अबतक संघर्ष किया गया था। इसी क्रम में एक और संघर्ष शुरू हो जाता है, दुसरों से आगे रहने का संघर्ष। हमें जो मिला है, वो किसी से कम तो नहीं है। किसी और के पास कहीं अधिक तो नहीं है। मतलब साफ है, यह मन कभी तृप्त नहीं हो पाता। मन भटकता ही रहता है, कुछ और के लिए। कुछ और पाने के लिए, जो मिल गया उसे सहेजकर रखने के लिए, दुसरों से अधिक पाने के लिए। उसकी दौड़ कभी मिटती नहीं, क्योंकि मंजिल कभी मिलती नहीं। 

संघर्ष का एक रूप यह भी है कि इसमें निरंतरता का अभाव है। क्योंकि विचार बदलते रहते हैं, परिस्थितयां बदलती रहती हैं। संघर्ष के निरंतरता में एक और जो बाधक है, वह है कि इसके लिए साधन भी जुटाने पड़ते हैं। साधन के अभाव में संघर्ष में गतिरोध उत्पन्न हो जाता है। यह एक समान रूप से चलनेवाली प्रक्रिया नहीं है। संघर्ष निरंतर एक समान नहीं होता, परन्तु यह चलता रहता है। मनुष्य का सारा जीवन सांसारिक भागदौड़ में बीत जाता है। जब सांसे थम जाती हैं, तो यह दौड़ भी खत्म हो जाता है। सामान्य की दृष्टि में यही जो संघर्ष है, उसका जीवन है। इसलिए कहा जाता है कि संघर्ष ही जीवन है।

संसारी भी कहते हैं कि संघर्ष ही जीवन है! और ज्ञानी भी कहते हैं कि संघर्ष ही जीवन है। पर इन दोनों के कहने का आशय अलग है। मुख्य बात जो है, यह जानना है कि यह संघर्ष आता कहां से है। यह बाहर से आता है या भीतर से आता है। संघर्ष का कारण है मनुष्य का बाहर के संसार के प्रति आकृष्ट होना। वास्तव में जीवन में जो संघर्ष है, मन के कारण है। मन में निहित इच्छा-आकांक्षा एवम् दुसरों से प्रतिस्पर्धा की भावना के कारण संघर्ष भीतर से उत्पन्न होता है। बाहर यह आता नहीं, इसे लाया जाता है। 

अगर मन में कोई इच्छा न हो, किसी से कोई प्रतिस्पर्धा न हो। मन सांसारिक विषयों पर आकृष्ट न हो, तो फिर जीवन में कोई संघर्ष नहीं होगा। परन्तु इसके लिए मन पर नियंत्रण रखना जरूरी है। नियंत्रित मन कामनाओं के पीछे नहीं भागता। किसी से प्रतिस्पर्धा के लिए दौड़ नहीं लगाता है। मन जब स्थिर हो जाता है तो संघर्ष से दुर हो जाता है। परन्तु इस स्थिति को पाने के लिए खुद के साथ संघर्ष करना पड़ता है। मन को नियंत्रित करने के लिए मन से ही संघर्ष करना पड़ता है। यह संघर्ष का उत्तम स्वरुप है, यह ऐसी प्रक्रिया है जो मनुष्य के जीवन को सुखी कर देता है। यह जीवन को संघर्षमुक्त करने का संघर्ष है। इसलिए ज्ञानियों ने कहा है कि संघर्ष ही जीवन है!!

मन को हमेशा कुछ चाहिए होता है। कुछ और, कुछ और की चाह मन को होता रहता है। मन को जो चाहिए, वह है सुख! इसी सुख को खोजने के लिए वह सांसारिक विषयों में आकृष्ट होता है। परन्तु उसे इन वस्तुओं में जो सुख मिलता है, वह क्षणिक होता है। स्थायी सुख मिलता नहीं। क्योंकि संसार में मौजूद कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जो इसे तृप्त कर सके। लेकिन उसे जो चाहिए, वह चीज उसे जबतक नहीं मिलेगा! वह कहता रहेगा, कुछ और, कुछ और। 

मन जब तक सुख की अवस्था को प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक संघर्ष करता रहेगा। सामान्य मनुष्य सांसारिक गतिविधियों में ही सुख की खोज करते रहते हैं। और अतृप्त रहकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। इस तरह उनका सारा जीवन संघर्ष में बीतता है। संसारी के लिए भी संघर्ष ही जीवन है। और ज्ञानी मन को नियंत्रित कर भीतर की यात्रा करने में सफल होते हैं। भीतर जो त्तत्व है, वहां कोई संघर्ष नहीं है, वहां सुख ही सुख है। एक योगी के लिए भी संघर्ष ही जीवन है। पर भोगी सांसारिक विषयों में सुख पाने के लिए संघर्ष करते हैं। और योगी उस त्तत्व का साक्षात्कार करने के लिए संघर्ष करते हैं, जहां सुख ही सुख है। अन्तर यही है कि भोगी का जीवन संघर्ष से मुक्त नहीं हो पाता। पर योगी का संघर्ष उसके जीवन को संघर्षमुक्त कर देता है।

2 thoughts on “संघर्ष ही जीवन है ..!”

  1. Pingback: आत्ममंथन का अर्थ - Adhyatmpedia

  2. Pingback: भगवान महावीर के अनमोल वचन ... - Adhyatmpedia

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *