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जागने का मुहूर्त क्या है?

जागने का मुहूर्त! यह वाक्यांश दो शब्दों से मिलकर बना है। मुहूर्त का अर्थ होता है, किसी कार्य को करने का सही समय। और जागना एक क्रिया है, सामान्यता सोकर उठने को जागना कहा जाता है। इस प्रकार जागने का जो सही समय होता है, इसी समय विशेष को जागने का मुहूर्त कहा जाता है। 

ज्ञानियों ने जीवनशैली कैसी होनी चाहिए, इसका विस्तार से उल्लेख किया गया है।  कब सोना है, कितनी देर तक सोना है, कब जागना है, कब खाना है, कैसे और कितना खाना है। जीवन की छोटी छोटी गतिविधियों के लिए भी नियम बनाए गए हैं। हां इनमें देश-काल के आधार पर थोड़ा बहुत अंतर देखने को मिलता जरूर है। परन्तु यह ध्यान रहे कि जीवन जीना एक कला है। हां नियमित जीवनशैली को अपनाना कठिन जरूर है। जैसे तैसे जीना आसान प्रतीत होता है। परन्तु बाद में अनियमित दिनचर्या का परिणाम कष्टप्रद हो जाता है।

काल की गति का आकलन कोई साधारण पुरुष तो नहीं कर सकता। समय की गति का आकलन और किस समय में कौन सा कार्य किया जाए, इसका निर्धारण ज्ञानियों के द्वारा ही की गई है।

नींद के आगोश में जाना और फिर जागना जीवन का एक निरंतर प्रक्रिया है। और ज्ञानियों द्वारा जागने के लिए भी निश्चित समय और नियम का निर्धारण किया गया है। इसलिए जागने का मुहूर्त क्या है? नींद खुलने के पश्चात सर्वप्रथम क्या करना चाहिए? इन बातों को हल्केपन से लेना किसी के लिए भी हानिकारक हो सकता है।

सोकर उठने के सही तरीके:

सामान्यतः यह मान्यता प्रचलित है कि प्रातः काल, यानि सुर्योदय से पूर्व विस्तर का त्याग कर देना चाहिए। हर किसी को सुरज के उगने से पहले ही जाग जाने का अभ्यास अवश्य करना चाहिए। और जागने के कुछ तरीके बताए गए हैं, जिनका पालन करना चाहिए। इससे जीवन में सकारात्मक बदलाव आता है। जागने के कुछ तरीके हैं, जो निम्नांकित हैं।

जागने के पश्चात प्रसन्न मुद्रा में आना: नींद की अवस्था में हम एक तरह से मुर्छित अवस्था में होते हैं। और इस अवस्था से जागृत अवस्था में वापस आना भी हमारे वश में नहीं होता। जब हम जागते हैं, तो इसका मतलब है कि अभी हम जीवित हैं। तो जीवित होने की खुशी भी चेहरे पर झलकना जरुरी है। अतः नींद खुलने के पश्चात स्वयं को शांत रखें एवम् उनका आभार व्यक्त करें जिनकी कृपा से आप जीवित हैं।

जागने के तुरंत बाद आंखें न खोलें: नींद से जागते ही हड़बड़ाहट में आंखे नहीं खोलनी चाहिए। अचानक आंखों में तेज रोशनी पड़ने से आंखो को नुक़सान हो सकता है। कुछ देर आंखो को बंद रखें और मन ही मन सकारात्मक चिंतन करते रहें।

हथेलियों को आपस में रगड़ना: नींद खुलने पर भी आंखों को बंद रखना और हथेलियों को आपस में रगड़ना लाभकारी है। हथेलियों में अनेक नसों का अंतिम छोर होता है। इनको आपस में रगड़ने से रक्तवाहिकाओं में रक्त का संचार ठीक ढंग से होने लगता है। बाहरी शरीर क्रियाशील हो, इससे पहले शरीर के भीतरी अंगों एवम् मस्तिष्क का सक्रिय होना जरूरी है। 

हथेलियों का दर्शन: कहा गया है कि अपना हाथ जगन्नाथ। अतः आंख खोलते ही सबसे पहले अपनी हथेलियों को निहारें। दिन में ही दिनचर्या संपन्न करना होता है। और जो भी प्राप्त होता है, कार्यों और विचारों के अनुसार ही प्राप्त होता है। इसलिए सकारात्मक भाव के साथ सबसे पहले अपने हथेलियों को देखें और फिर अन्य गतिविधियों में लग जाएं।

अलार्म का प्रयोग करने से बचना: प्रातः काल उठने के लिए अलार्म का उपयोग करना अनुचित माना गया है। नींद खुलने के समय किस प्रकार की ध्वनि आपके कानों पर पड़ती है, यह महत्वपूर्ण है। अगर एलार्म लगाना ही हो, तो किसी मंत्र, भजन अथवा मधुर संगीत का लगाकर रखना यथेष्ठ होता है। 

सही दिशा से उठना: अगर उठने की दिशा सही हो तो दशा में भी सुधार होता है। यह मान्यता है कि जागने पर हमेशा दाएं करवट लेकर उठना चाहिए। इसका संबंध पेट एवम् हृदय की गतिविधियों से है। अक्सर लोग बाएं करवट लेकर सोते हैं, और सुषुप्तावस्था में शरीर की गतिविधियां मंद होती हैं। जागने पर अचानक गतिविधियों में वृद्धि हो जाती है। अतः दायीं ओर से उठना उचित माना गया है।

धरती को नमन: पैर धरती पर पड़े इससे पूर्व धरती को हाथों से स्पर्श करें। मन ही मन या बोलकर धरती का नमन करें। इसके पीछे धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक कारण भी छुपा है। सीधे पैर को धरती पर रखने से शरीर का तापमान असंतुलित हो सकता है, साथ ही चुम्बकीय शक्ति का प्रभाव गलत पड़ सकता है। 

विस्तर को ठीक करना और जल ग्रहण करना: फिर विस्तर को ठीक करें। यह आपके व्यवस्थित दिनचर्या के शुरुआत को दर्शाता है। खाली पेट सबसे पहले पानी पीना उचित माना गया है। अगर पानी गुनगुना हो तो और भी अच्छा होता है। यह क्रिया आंतो की सफाई में सहायक होता है, और अन्य प्रकार से भी शरीर के लिए लाभदायक है।

नित्य क्रिया में लग जाना: नित्य क्रिया का आशय तन और मन दोनों का की शुद्धता से है। इसमें स्नानादि कर्म के पश्चात पूजा-प्रार्थना संलग्न है। इसके पश्चात ही आवश्यकतानुसार आहार ग्रहण करना चाहिए। उसके बाद ही अन्य गतिविधियों में लगने से तन और मन दोनों ठीक प्रकार से कार्य करता है।

जागने का मुहूर्त को जानना, जागने के तरीकों का अनुपालन करना हर किसी के लिए महत्वपूर्ण है। एक विद्यार्थी के लिए भी, और एक कामकाजी गृहस्थ के लिए भी। क्योंकि विना खुद को अनुशासित एवम् स्फूर्त रखे किसी कार्य में सफलता प्राप्त करना कठिन हो जाता है। अतः समय पर जागना, सही तरीके से जागना  एवम् नित्य क्रिया से निवृत्त होने के पश्चात ही अन्य गतिविधियों में लगने की आदत, हर किसी के लिए लाभकारी है।

गहनता से विचार करें तो जागने की जो क्रिया है, इसका संबंध जागरूकता से है। जागने का एक अर्थ है, नींद का खुलना, सोकर उठना, विस्तर का त्याग करना आदि। और दुसरा जो अर्थ है, वह है जीवन के प्रति सजग होना। अगर जीवन को किसी विशिष्ट दिशा की ओर अग्रसर करना हो, तो विशेष प्रक्रियाओं का अभ्यास जरूरी हो जाता है। इसके लिए जागने का मुहूर्त भी विशेष हो जाता है। इसके लिए ब्रम्ह मुहूर्त, संध्याकाल एवम् संधिकाल जैसे कुछ विशेष मुहूर्त होते हैं। इन मुहूर्तों में की जाने वाली उत्तम क्रियाओं का परिणाम भी विशिष्ठ होते हैं। जीवन को विशिष्ठ दिशा की ओर अग्रसर कर सार्थक करने के लिए इन मुहूर्तों का विशेष महत्व है। इस विषय में आगे के आलेखों में जानकारी दी जाएगी।

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