सफलता के मंत्र क्या हैं ? अगर किसी कार्य में सफल होना हो, तो इसके लिए उपाय भी करने पड़ते हैं। मंत्र का संबंध विचार या चिंतन से है। किसी भी विषय पर विचार करने के उपरांत जो सकारात्मक तथ्य सामने आता है, वही मंत्र है। मंत्र अनुभव जनित होते हैं, जो हमेशा सकारात्मक परिणाम देते हैं। सफलता के लिए उन मंत्रों पर अमल करना पड़ता है। उन विचारों पर ध्यान केंद्रित करना पड़ता है, जो लक्ष्य को पाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। यही जो उपाय हैं, जो अनुभव जनित हैं, हैं, सफलता के मंत्र हैं। कुछ ऐसे मंत्र हैं, जिन्हें अपनाकर सफल हुआ जा सकता है।
लक्ष्य का निर्धारण: आप क्या करना चाहते हैं, क्या बनना चाहते हैं? आपकी आवश्यकता क्या है अथवा आपको क्या चाहिए? इन बातों पर स्वयं विचार करना जरूरी है। सर्वप्रथम अपने जीवन के लक्ष्यों को स्पष्ट करना बहुत महत्वपूर्ण है।
कार्य की प्रकृति पर विचार: जो कार्य करने का विचार मन में चल रहा हो, उसके प्रकृति पर भी विचार करना जरूरी है। व्यक्ति जो करना चाहता है, उस कार्य का नैतिक, सामाजिक औचित्य पर विचार करने के पश्चात ही, उसे उस कार्य को आरंभ करना चाहिए।
सीमा में रहकर कार्य करना: एक पुरानी कहावत है कि पैर को उतना ही फैलाना चाहिए, जितनी लम्बी चादर हो। जिस कार्य को करने में कर्ता निपुण न हो, उसे नहीं करना ही उचित है। निपुणता प्राप्त करने के पश्चात ही सफलता के लिए प्रयास करना आरंभ करना चाहिए।
कौशल का विकास: जो कार्य किया जाना है, इसका निर्धारण अगर हो गया है। तो फिर उसे करने के लिए आवश्यक गुणों का होना भी जरूरी है। अर्थात् उस कार्य में सफलता के लिए कुशल होना जरूरी है। जो कर्ता पूरी निपुणता के साथ कार्य में संलग्न होता है, उसके सफल होने की संभावना अधिक होती है।
कठिन परिश्रम: सफलता के लिए कड़ी मेहनत करना एक अनिवार्य घटक है। कर्ता को पूरी निष्ठा एवम् लगन के साथ अथक परिश्रम करने की आवश्यकता होती है। जो जितना अधिक परिश्रम करता है, उसके सफल होने की संभावना उतनी ही अधिक होती है।
निरंतर अभ्यास: किसी भी कार्य में सफलता के लिए अपनी योग्यता को विकसित करना अनिवार्य है। और यह निरंतर अभ्यास करने से ही संभव हो सकता है। जितना अधिक अभ्यास किया जाता है, क्षमताएं भी उसी आधार पर विकसित होती हैं।
कठिनाइयों का सामना : सफलता का मार्ग कभी भी आसान नहीं होता। सफल होने के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। कठिनाईयों से भागने के बजाए उनसे निपटने की सीख जरूरी है। यदि कर्ता समस्याओं से निपटने में सक्षम हो, तो वह अपने लक्ष्य के करीब होता है।
गलतियों से सीख: सफलता के मार्ग पर चलते हुए, गलतियां भी हो सकती हैं। जिसके चलते कर्ता को विपरीतता का सामना करना पड़ सकता है। इस स्थिति में गलतियों पर विचार जरुरी है। अपनी गलतियों से सीखना ही अनुभव के रूप में सामने आता है। कर्ता को अपने अनुभवों के साथ चलना, गलतियों को दोहराने से बचना, और कार्य में लगे रहने की जरूरत होती है।
निरंतर सुधार की प्रक्रिया: सफलता के लिए निरंतर सुधार करते रहना बहुत महत्वपूर्ण होता है। काम को और भी बेहतर बनाने के लिए कार्यशैली में सुधार करते रहना चाहिए। कर्ता को अपनी सक्रियता एवम् कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए नए कौशल और ज्ञान का अध्ययन करते रहना भी जरूरी है।
सकारात्मक सोच: सकारात्मक सोच रखना सफलता के लिए बहुत जरूरी है। कर्ता का सोच जितना सकारात्मक होगा, सफल होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। क्योंकि किसी की सोच ही उसे दिशा प्रदान करती है।
तनावमुक्त रहना: कर्ता को अपनी स्वास्थ पर ध्यान रखना और तनावमुक्त रहना चाहिए। क्योंकि इससे सक्रियता और कार्यक्षमता को बढ़ावा मिलता है।
समय का उपयोग: सफलता के लिए कर्ता को अपने समय का सही ढंग से उपयोग करना चाहिए। समय का प्रबंधन कैसे किया जाए, यह सीखना जरूरी है।
प्रेरणादायक व्यक्ति से संपर्क: एक प्रेरणादायक व्यक्ति लक्ष्यों को हासिल करने में आपकी सहायता कर सकता है। सफल लोग सामान्य लोगों से अलग सोचते हैं। आपको ऐसे लोगों से मिलना और नए विचारों को अपनाना होगा। इसलिए ऐसे लोगों के सम्पर्क में रहना महत्वपूर्ण है।
दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास: सफलता के लिए दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास का होना महत्वपूर्ण है। अगर व्यक्ति किसी कार्य को करने के प्रति संकल्पबद्ध न हो, तो कार्य अधुरा रह सकता है। साथ ही कर्ता में आत्मविश्वास का होना जरूरी है। सफलता दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास के साथ निरंतर प्रयास से ही संभव है।
जीवन में ध्यान का होना: अगर दिनचर्या में ध्यान एवम् पूजा, प्रार्थना जैसी ऊर्जावान क्रियाएं शामिल हों, तो मन स्थिर रहता है। और स्थिर मन में धैर्य, संकल्प, आत्मविश्वास एवम् संयम जैसे गुणों का विकास होता है।
उपरोक्त सफलता के मंत्र का पालन करने से सफलता की संभावना बढ़ जाती है। इन सभी उपायों को ध्यान में रखते हुए और उन्हें अपने जीवन में लागू करते हुए, कोई भी व्यक्ति सफलता की दिशा में आगे बढ़ सकता हैं।
सफलता पर महापुरुषों का कथन
कई महापुरुषों ने सफलता के बारे में अपने विचारों को व्यक्त किया हैं। कुछ महापुरुषों के इस विषय पर कहे गए अनमोल वचन हमें निम्नलिखित हैं:
“जीत उस इंसान की होती है जो हार मानने से पहले हार मानता नहीं है।” – Napoleon Hill
“सफलता की सीढ़ियों पर कदम रखने से पहले आपको सफलता की परिभाषा तय कर लेनी चाहिए।” – Zig Ziglar
“सफलता न तो बस संयम में होती है और न तो बस मेहनत में। बल्कि सफलता उस इंसान के हिस्से में आती है, जो संयम और मेहनत दोनों करता है।” – Albert Einstein
“आप अपने जीवन में कुछ भी कर सकते हैं, जो आपको सोचने का लगातार संदेश देता हो।” – Dr. Wayne Dyer
“सफलता की कुंजी न केवल आपके पास होती है, बल्कि आपके जीवन में भी होती है।” – John C. Maxwell
“सफलता का अर्थ होता है आपको उस स्थान तक पहुंचना जहाँ से आप शुरू हुए थे, लेकिन एक बेहतर और उच्चतर स्तर पर।” – Jack Welch
“सफलता उसके लिए होती है जो अपनी व्यक्तिगत विशेषताओं का उपयोग करता है और अपने अस्तित्व की मूल्य बढ़ाता है।” – Benjamin Disraeli
“सफलता वही लोग हासिल करते हैं जो लोगों की जरूरतों को समझते हैं और उन्हें उनके संबंध में खुश करने का उपाय ढूंढते हैं।” – Zig Ziglar
“सफलता का सबसे बड़ा रहस्य होता है आप जो करते हैं, उसे सही तरीके से करना जानते हैं।” – Albert Schweitzer
ये सभी कथन उन मूल तत्वों को संक्षिप्त रूप से समेटते हैं, जो सफलता के लिए जरूरी होते हैं। जैसे संयम, लगन, परिश्रम, निष्ठा, आत्मविश्वास, धैर्य, सहनशीलता, लक्ष्य का निर्धारण और दृढ़ संकल्प आदि। इन सभी महापुरुषों का एक एक वचन सफलता के मंत्र हैं।
अंत में एक जो मूल मंत्र है, वह है कि विफलता जैसी कोई चीज नहीं होती। विफलता सफलता के विपरीत की अवस्था है। जब कर्ता के मनोनुकूल कुछ नहीं होता है, तो वह खुद को असफल समझने लगता है। और निराश हो जाता है, कुछ लोग तो कार्य करना ही छोड़ देते हैं। ऐसी स्थिति अधिकांश शीघ्रता के कारण आती है। कोई अगर दौड़ रहा हो, तो उसके गिरने की संभावना अधिक होती है।
एक और महत्वपूर्ण बात है, जो यह है कि ‘मेंरा क्या होगा, मुझे क्या मिलेगा’ इस तरह के सोच को लेकर कार्य करना निराशा का कारण होता है। केवल अपने कार्य में सही तरीके से संलग्न रहना चाहिए। यह हमेशा याद रखना होता है कि फल पर किसी का कोई अधिकार नहीं है। कर्म करना सबका कर्तव्य मात्र है, अतः कर्म से विमुख होना गलत है। परन्तु कर्म के अनुसार ही फल भी मिलता है, यह बात भी प्रमाणित है।
अतः कोई भी कार्य स्पष्ट एवम् स्थिर मानसिकता के साथ दृढ़संकल्प होकर करना चाहिए। और कोई भी कार्य कामनारहित होकर करना चाहिए। अगर असफल हुवे भी तो उससे सबक लेकर पुन: प्रयास में लग जाना चाहिए। उपरोक्त वर्णित सफलता के मंत्र को जीवन में अपनाकर चलने से सफलता अवश्य प्राप्त होगी।
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