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अष्टांगयोग क्या है जानिए

अष्टांगयोग क्या है? इस प्रश्न का समाधान चंद शब्दों अथवा वाक्यों में नहीं किया जा सकता। यह साधना का विषय है, इसके मार्ग पर चलकर ही इस विषय पर समुचित जानकारी प्राप्त की जा सकती है। शब्द की विवेचना करें तो अष्टांग का आशय हुवा है आठ अंगो वाला। और योग का आशय दो अथवा दो से अधिक त्तत्वों को एक दुसरे से जोड़ना अथवा मिलाना। इस प्रकार अष्टांगयोग का अर्थ है, आठ अंगो वाला योग।

अष्टांगयोग का अर्थ क्या है जानिए ..!

अध्यात्म के संदर्भ में योग मन को आत्मा से जोड़ने की साधना है। तन और मन की निर्मलता तथा स्थिरता के लिए यह एक उत्कृष्ट प्रकिया है। तन-मन जब स्थिर हो जाता है, तभी आत्माभिमुख हो पाता है। शास्त्रों में हठयोग, कर्मयोग, राजयोग, ज्ञानयोग एवम् भक्तियोग आदि योग के प्रकार बताए गए हैं। अष्टांगयोग का ही दूसरा नाम राजयोग है, जो कि सभी प्रकार के योगों का राजा कहलाता है। इसकी साधना आठ आयामों में पूर्ण करने का विधान है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि, अष्टांगयोग के आठ अंग हैं।

‘योगसूत्र’ जो महर्षि पतंजलि द्वारा रचित है, इस शास्त्र में अष्टांगयोग का वर्णन मिलता है। १९वीं शताब्दी में इस विषय में स्वामी विवेकानंद के द्वारा दिए गए व्याख्यानों को संकलित किया गया है। ‘राजयोग’ नामक इस पुस्तक में अष्टांगयोग पर प्रकाश डाला गया है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार को बहिरंग साधना और धारणा, ध्यान और समाधि को अंतरंग साधना कहा जाता है। बहिरंग साधना के द्वारा तन और मन अनुशासित हो जाता है। अंतरंग साधना मन को स्थिर रखने और इसे अपने शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करती है। बहिरंग साधना में निपुणता प्राप्त करने के पश्चात ही अंतरंग साधना का निर्दिष्ट फल प्राप्त होता है। 

यम और नियम ..!

यम और नियम तन-मन संयमित एवम् पवित्र करने की विधा है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रम्हचर्य एवम् अपरिग्रह ये यम के अवयव हैं। और शौच, संतोष, तपस्या, स्वाध्याय एवम् ईश्वरप्राणिधान ये नियम के अवयव हैं। इनका अभ्यास करके शारिरीक और मानसिक रूप से स्वयं को संयमित एवम् विकसित किया जाता है।

अहिंसा – अपने मन, वचन और कर्म से किसी को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं देना अहिंसा है। 

सत्य – सत्य से आशय है, कभी झुठ का सहारा नहीं लेना, मिथ्याचरण से परहेज करना।

अस्तेय – अस्तेय का अर्थ है, चोरी नहीं करना। 

ब्रह्मचर्यं – मन, वचन और कर्म से वासना का त्याग करना ब्रम्हचर्य है।

अपरिग्रह – मन, वचन और कर्म से अनावश्यक वस्तुओं व विचारों को किसी से ग्रहण न करने तथा संग्रह नहीं करने का अभ्यास अपरिग्रह है।

शौच – स्नानादि दैनिक क्रियाओं से शरीर को बाहर से शुद्ध रखने एवम् भीतर शुद्ध भाव को ग्रहण करने का अभ्यास शौच है।

संतोष – अधिक प्राप्त करने की इच्छा का अभाव एवम् जो भी उपलब्ध है, उसी से खुश रहना संतोष है। 

स्वाध्याय – शास्त्रों का अध्ययन और मनन स्वाध्याय कहलाता है। 

तप – तन और मन से सभी प्रकार के विषम परिस्थितियों को सहन करने शक्ति अर्जित करने का प्रयत्न।

ईश्वरप्रणिधान – ईश्वर की उपासना एवम् ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव विकसित करने का अभ्यास।

आसन – आसन सुखपूर्वक एक खास अवस्था में बैठकर शरीर को स्थिर रखने का अभ्यास है।

प्राणायाम – प्राणायाम श्वास-प्रश्वास की गति को नियंत्रित करने की प्रक्रिया है। 

प्रत्याहार – प्रत्याहार के द्वारा मन को बाहरी विषयों से हटाने का प्रयत्न किया जाता है।

धारणा, ध्यान और समाधि –

धारणा किसी एक स्थान पर अथवा पर मन को मन में धारण करने का अभ्यास है। ध्यान मन को एकाग्र करने की साधना है। ध्यान जब सिद्ध हो जाता है, आत्मा का साक्षात्कार हो जाता है। यह शांत, स्थिन एवम् शुद्ध मन का आत्मा में समाहित हो जाने की अवस्था है। इस अवस्था को समाधि कहते हैं, यह ध्यान की उत्कृष्ट अवस्था है। इस अवस्था तक पहुंचना ही अष्टांगयोग योग का उद्देश्य है।

योग का महत्व..!

अस्थिर एवम् अशांत मन को नियंत्रित करने के लिए योग एक उत्कृष्ट प्रकिया है। योग साधना में जिन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, उनसे शरीर स्वस्थ, दृढ एवम् मन स्थिर हो जाता है। योग साधना से अनिद्रा, व्यग्रता एवम् चिंता से मुक्ति मिलती है। गहन अर्थों में योग के द्वारा आध्यात्मिक विकास होता है। मन को बाहर संसार के गतिविधियों निर्लिप्त रहने की आदत से छुटकारा मिल जाता है। और अंतर्मुखी होकर आत्मज्ञान प्राप्त करने हेतु प्रवृत हो जाता है।

जब मन स्थिर होता है, तब सत्य को मौन की शुद्धता में सुनने का मौका मिलता है।

महर्षि अरविंद

अष्टांगयोग क्या है? इस आलेख में इस विषय पर संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास मात्र है। शास्त्रों का ठीक प्रकार से अध्ययन कर अष्टांगयोग के बिषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त किया जा सकता है। किसी भी विषय में प्रत्येक के विचार एवम् अनुभव भिन्न भिन्न हो सकते हैं। परन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए योगाभ्यास महत्वपूर्ण है। हां इतना अवश्य ध्यान रखें कि साधना का मार्ग कभी सरल नहीं होता। अष्टांगयोग के सभी आयामों क़ो सिद्ध करना भी अत्यंत कठिन है, परन्तु ये असाध्य नहीं हैं। कुशल मार्गदर्शन और दृढता के साथ प्रयत्न करते हुए सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। अगर प्रतिबद्धता के साथ साधना की जाए तो जीवन सफल हो सकता है। अन्ततः ज्ञान की प्राप्ति ही जीवन का उद्देश्य है, जिसे योगाभ्यास के द्वारा पूर्ण किया जा सकता है।

2 thoughts on “अष्टांगयोग क्या है जानिए”

    1. उत्साहित करने हेतु धन्यवाद। भविष्य में आपका मार्गदर्शन महत्वपूर्ण होगा।

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