नर हो न निराश करो मन को …
नर हो न निराश करो मन को – मैथिली शरण गुप्त की एक कविता की पंक्ति है। इसमें ‘नर’ एवम् ‘निराश’ दो शब्दों पर ध्यान आकर्षित किया गया है। एक और शब्द ‘मन‘ है, निराश होने का संबंध मन से ही है। मन ही निराश होता है, जब उसकी आश पूरी नहीं होती, तो वह […]
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