Adhyatmpedia

मैली चादर ओढ़ के कैसे …

मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊं।
हे पावन परमेश्वर मेरे मन ही मन शरमाऊं।।

मैली चादर ओढ़ के कैसे – यह  एक भजन का मुखड़ा हैं। इस भजन को हरि ॐ शरण ने अपना स्वर दिया है। यहां मैली चादर का आशय मलीन मन से है। इस आलेख में इस सारगर्भित भजन पर विचार करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा करता हूं कि इसे पढ़कर पाठक गण लाभान्वित होंगे।

आयताकार निर्मित वस्त्र, जिसे ओढने एवम् बिछाने के लिए उपयोग में लाया जाता है, चादर कहलाता है। अगर यह वस्त्र मैली हो, इस पर दाग लगा हो, धुल-धुसरित हो, तो इसके पूर्व में मैली शब्द लग जाता है। 

सुरक्षा हेतू वस्त्र एवम् चादर ओढ़ने का प्रचलन है। ओढ़ने, बिछाने के लिए साफ चादर एवम् वस्त्रों का ही उपयोग किया जाता है। मैली हो जाने पर इसे धोया जाता है, साफ किया जाता है। क्योंकि चादर अथवा वस्त्र अगर साफ-सुथरा न हो, तो इससे शरीर को हानि हो सकता है। और इसका प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर भी पड़ता है।

सामान्यतः गंदे, मलीन वस्त्र पहनकर कोई किसी के यहां जाना नहीं चाहता। अगर वस्त्र अथवा चादर मैले हों, और किसी को कहीं जाना पड़े तो उसे लज्जा आती है। क्योंकि साफ सुसज्जित वस्त्र व्यक्ति के सम्मान के साथ जुड़ा होता है। परन्तु उपरोक्त पंक्तियों में उल्लेखित ‘मैली चादर’ का आशय कुछ और है। 

‘मैली चादर ओढ़ के कैसे’, यहां मैली चादर का आशय मन की गंदगी है। कामना, वासना, लोभ, मोह, क्रोध, अभिमान आदि मनोविकारों के आवरण से मनुष्य का मन धुमिल हो जाता है। इस पंक्ति में इन्हीं मनोविकारों को व्यक्त किया गया है। मन विकारों के आवरण से आच्छादित है। उसे जाना कहीं और है, भीतर आत्म की ओर, पर बाहर भटक रहा है।

विकारों के आवरण से घिरा मन बहुर्मुखी होता है। बाहर भटकता है मन, सुख की चाह में, कामनाओं की पूर्ति के लिए, वासनाओं की तृप्ति के लिए। पर उसे सुख मिलता नहीं, वह तृप्त होता नहीं। ऐसा भी नहीं कि उसे अपने इस मैलेपन का एहसास नहीं होता है। होता है, तभी तो वह पश्चाताप करता है। क्योंकि भगवत कृपा से सब संभव है।

ज्ञानियों के अनुसार अपने शुद्ध स्वरूप में मन विकारों से रहित होता है। मन का योग जब आत्मा से होता है, निर्मल हो जाता है। इसी आत्मस्वरुप को पाना जीवन का उद्देश्य भी है। मन को सुख चाहिए, और वह सुख बाहर नहीं मिलता। जब तक मन अंतर्मुखी नहीं होता, भीतर आत्म तक की यात्रा नहीं कर सकता। और सुख जो है, वह भीतर है, आत्मत्तत्व में है। 

ना जन्म पर और ना ही मरण पर हमारा नियंत्रण है। जन्म देनेवाला तो विधाता है। हमारे अंदर जो प्राण ऊर्जा है, उसी विधाता का अंश है, जो परम आत्मा है। प्राण ऊर्जा यानि आत्मत्तत्व के आभास होने पर ही परम आत्मा से साक्षात्कार संभव है। और इसके लिए मन का निर्मल होना जरूरी है।

हे पावन परमेश्वर मेरे मन ही मन शरमाऊं- मन पश्चाताप भी करता है, क्योंकि वह जहां लिप्त है, जिन कार्यों में, वहां उसे सुख नहीं मिलता, तृप्ति नहीं मिलती। वह जाना चाहता है, सुख की ओर, तृप्ति की ओर, परम आनंद की ओर। लेकिन लज्जा आती है उसे, क्योंकि चादर मैली हो चूकी है। दीर्घ काल से वह कामना , वासना में लिप्त रहा है। दाग ऐसा लग गया है, जो धोने से भी धुलता नहीं। अथवा धोने के लिए, जो प्रयास की जरूरत है, उससे हो नहीं पाता। 

तुने मुझको जग में भेजा,
निर्मल देकर काया,
आकर के संसार में मैनें,
इसको दाग लगाया,
जनम जनम की मैली चादर,
कैसे दाग छुड़ाऊं।
मैली चादर ओढ़ के कैसे …

हमारा जो मन है, इसका निर्माण हमारे संस्कारों के द्वारा ही होता है। मनुष्य जब जन्म लेता है, निर्विकार होता है। जैसे जैसे वह बड़ा होता है, सांसारिकता के संसर्ग में आता है। और अनेकानेक विचारों के प्रवाह में बहने लगता है। संस्कारों का निर्माण उसके विचारों से ही होता है। और जैसे विचार होते हैं, वैसे ही कर्म उससे होते चले जाते हैं। व्यक्ति वैसा ही बन जाता है, जैसा वह सोचता है।

निर्मल काया तो सबको प्राप्त है, सभी इसपर दाग अपने संस्कारों से लगाते हैं। यह जो निर्मल काया है, आत्मा है, जो परमात्मा का अंश है। जो परम निर्मल है, उसका अंश मैला नहीं हो सकता। मन मैला है, यह संस्कारों से निर्मित मैली चादर ओढ़े हुए है।

और ये जो संस्कार होते हैं, जन्म जन्मांतर से साथ चले आते हैं। पूर्व जन्म के कर्मों का छाप  वर्तमान जीवन पर भी पड़ता है। मन मैला है, और इसमें जो दाग धब्बे लगे हैं, जन्म जन्मांतर के हैं। इन्हें छुड़ाना सरल नहीं होता, अत्यंत कठिन है। और मन जब तक मैली चादर ओढ़े हुए है, परम सुख के मार्ग पर नहीं जा सकता। 

निर्मल वाणी पाकर तुझसे,
नाम तेरा न गाया,
नैन मुंद कर हे परमेश्वर,
कभी न तुझको ध्याया,
मन वीणा की तारें टुटी,
अब क्या राग सुनाऊं।
मैली चादर ओढ़ के कैसे…

काया निर्मल, निर्मल काया से निकलती वाणी निर्मल, पर इसकी वाणी को मन सुनता कहां है। कहते हैं, जो भीतर की आवाज को सुनते हैं, उनका जीवन सकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है। उनकी चादर मैली नहीं होती, दाग-धब्बे लग भी जाएं, तो वो उसे धो देते हैं। उन्हें पश्चाताप की अग्नि में जलना नहीं पड़ता। वे नित्य प्रतिदिन , हर पल नकारात्मक विचारों का हवन करते रहते हैं। और जो अपने आत्मस्वरुप का विस्मरण कर, मन के मते चलते हैं, उनके वाणी भी दुषित हो जाती है।

भीतर जो मन है, जिसे अंतरमन कहा गया है, वास्तव में वह मन नहीं है। आत्म से योग हो गया, तो मन मिट जाता है। केवल आत्मा की वाणी सुनाई पड़ती है। जिनके जीवन में ध्यान नहीं है, भक्ति नहीं है, अंतरमन की वीणा के तार टुट कर विखर जाते हैं। 

तू है अपरम्पार दयालु ,
सारा जगत संभाले,
जैसा भी हूं मैं हूं तेरा,
अपनी शरण लगावे,
छोड़ के तेरा द्वारा ओ दाता
और कहीं ना जाऊं।
मैली चादर ओढ़ के कैसे…

मन भावनाओं से भरा होता है। कामनाओं, वासनाओं से भरा होता है। सांसारिकता में लिप्त होकर सुखी होना चाहता है, तृप्त होना चाहता है। परन्तु वास्तविकता यह है कि सुख आत्मा का विषय है। मैली चादर ओढ़े मन को वास्तविक सुख का आभास नहीं हो पाता, पर पाना चाहता है। 

भक्ति का मार्ग अपेक्षाकृत सरल है। सांसारिक बंधनों से बंधा मनुष्य ध्यान नहीं कर पाता। योग का निरंतर अभ्यास नहीं कर पाता। पर भक्ति तो किया जा सकता है, भजन तो किया जा सकता है। लेकिन भक्ति भी तभी संभव है, जब पश्चाताप क्षणिक न हो। भक्ति तभी फलित होती है, अगर उसमें समर्पण समाहित है। भक्ति का मार्ग सहज है, लेकिन समर्पण का भाव होना जरूरी है। भक्ति के मार्ग पर चलकर मैली चादर को धोया जा सकता है। 

हे प्रभो मेरा जन्म क्यों हुवा मैं नहीं जानता। सांसारिक दायित्वों का निर्वहन करना भी जरूरी है। यह भी ठीक तरह से नहीं हो पा रहा। मोह-माया, चिंता से ग्रसित मन व्यथित हुवा जा रहा है। जीवन का उद्देश्य की मुझे समझ नहीं है। पर सुख की चाहत है, शांति की चाहत है। और ऐसा होना आपकी कृपा के बिना असंभव है। मैं जैसा भी हूं, जो भी हूं, आपका हूं। हे प्रभो मुझपर कृपा करो, मेंरा कल्याण करो। मेंरे मलीन मन को स्वच्छ करने की शक्ति मुझे प्रदान करो। 

यह मायने नहीं रखता कि आपकी भाषा क्या है, शब्दों को व्यक्त करने की शैली क्या है? महत्वपूर्ण यह है कि आपकी भावना क्या है। भगवत कृपा पाने के लिए आप कितना विह्वल हैं। पुरे भाव-भक्ति एवम् श्रद्धा के साथ अगर नित्य कुछ समय प्रार्थना करें, तो आपकी वाणी परमात्मा तक पहुंच सकती है। निरंतर प्रार्थना से आपकी मैंली चादर को धोया जा सकता है। कठिन है, पर असंभव भी नहीं है। 

1 thought on “मैली चादर ओढ़ के कैसे …”

  1. Pingback: चौबे गए छब्बे बनने दुबे बनकर लौटे ।। - Adhyatmpedia

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *