Adhyatmpedia

मन के जीते जीत ..!

मन के जीते जीत ! यह उक्ति मन की शक्ति के महत्व को दर्शाती है। मनुष्य की शक्ति उसके मन पर ही निर्भर करता है। कोई भी मनुष्य समस्त सांसारिक कार्यों को अपने शरीर के द्वारा ही संपन्न करता है। परन्तु उसके शरीर को क्रियान्वित उसका मन ही करता है। जब मन चलता है तो तन भी चलता है। 

मन के हारे हार है मन के जीते जीत !

यह जो मन है, निर्बल नहीं है, बहुत शक्तिशाली है। तभी तो इसमें आशा, उत्साह, धैर्य, साहस आदि सकारात्मक गुण निहित होते हैं। परन्तु यह जो मन है, समस्त कामनाओं का केन्द्र भी यही है। हमारी इन्द्रियां जो कुछ भी करती हैं, करने की इच्छा पहले मन में ही जगती है। तत्पश्चात मन के मते, मन के कहे अनुसार इंद्रियां क्रियाशील होती हैं। 

जब हम कोई कार्य करते हैं, और किसी कारण वह पूरा नहीं हो पाता। या फिर कार्य के संपन्न होने पर भी इच्छित परिणाम नहीं मिलता। तो इस स्थिति में मन निराश हो जाता है‌। यह जो मन है, हमेशा अपनी कामनाओं को पूरा करना चाहता है। और कामनाओं के पूर्ण न होने पर यह निराशा हो जाता है। अगर ऐसा जीवन में बार बार हो तो मन हतोत्साहित होने लगता है। यह जो अवस्था है, मन के हार मान लेने की अवस्था है।

यह अवस्था मन के इच्छित अवस्था का विपरीत अवस्था है। इस अवस्था में मन में निराशा, चिंता, भय, अधीरता जैसे नकारात्मक ऊर्जा का समावेश हो जाता है। नकारात्मकता भी एक ऊर्जा ही है। यह सकारात्मकता के विपरीत है। 

उम्मीद हूं मैं न छोड़ना मुझे
लेकर सहारा उन्नत विचारों का
भीतर किसी कोने में हमेशा
मन रे! सहेजकर रखना मुझे!
गर मिलेगी रोशनी तो
मिलेगी मेंरे जलने से ही
बुझा दोगे अगर तो कैसे
दुर करोगे अंधेरे को कभी
दीया हूं मैं एक अकेला
मन रे! जलाये रखना मुझे!
दर्द का दरिया हो अगर
या हो उदासी की लहर
छलक न पाए आंखों से
आंसुओं का कतरा बनकर
उमड़ते उन आंसुओं को पीकर
एक एक बुंद का आहुति देकर
दीया हूं मैं! एक अकेला
मन रे! जलाये रखना मुझे!
लौ है मुझमें रोशनी का
अगर बुझा दिये तो फिर
हो जावोगे अंधेरे में गुम
दीया हूं मैं! एक अकेला
मन रे! जलाये रखना मुझे!

adhyatmapedia

मन के हारे हार है! यह जो मन है, अत्यंत शक्तिशाली है। परन्तु यह समझना होगा कि आशा और निराशा, दोनों मन की ही शक्तियां हैं।  मन में अगर आशा का संचार हो तो जीत की ओर अग्रसर होता है। और अगर निराशा व्याप्त हो तो हार की ओर अग्रसर होता है। मन में व्याप्त निराशा की भावन तन और मन दोनों को निर्बल बना देती है। 

जीवन में हार और जीत दोनों का स्वाद चखना पड़ सकता है। जो हार से घबरा जाते हैं, वो फिर कभी जीत नहीं पाते। और जो केवल जीतना चाहते हैं, हार से कभी डरते नहीं हैं। ऐसे लोग फिर से प्रयास में लग जाते हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी अपने प्रयत्नों के द्वारा मन को सकारात्मक बनाए रखते हैं। मन में हमेशा दृढ़ता, विश्वास एवम् धैर्य धारण कर रखने की आवश्यकता है। 

जीवन में नित्य प्रति के जो कार्य होते हैं, उनका परिणाम व्यक्ति के मनोबल पर ही निर्भर करता है। मनोकामना अगर पूर्ण न हो तो हार! और पूर्ण हो जाए तो जीत समझा जाता है। जो मन के धनी होते हैं, अनेक विघ्न बाधाओं को पार करते हुवे इच्छित कार्य को पूरा कर लेते हैं। और अभीष्ट परिणाम को प्राप्त करने में सफल भी होते हैं। वैसे लोग कांटो से भरे राह में चलते हुए अपने इच्छित गंतव्य तक पहुंच जाते हैं। मनुष्य की शक्ति उसका मनोबल ही है। सरल रूप से विचार करो तो यही तथ्य सामने आता है।

मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
कहै कबीर हरि पाइये मन की ही परतीत।।

कबीर कहते हैं – सबकुछ मन इस मन की ही प्रतीति है। मन के हार जाने से हार होती है। और मन के जीतने से जीत होती है। मन को अगर जीत लो तो ईश्वर की प्राप्ति होती है। 

मन के जीते जीत ! यह उक्ति कबीर की है। सब मन का खेल है! हार और जीत मन की भावनाएं हैं। सामान्य मनुष्य के दृष्टि में इस उक्ति का जो अर्थ है, कबीर के कहने का अर्थ इसके ठीक उलट है। सामान्य मनुष्य सांसारिकता में ही जय -पराजय को देखता है। सामान्य की दृष्टि में मन की इच्छाओं की प्राप्ति नहीं होना हार, और प्राप्त हो जाना जीत समझा जाता है। लेकिन कबीर के कहने का आशय भिन्न है।

कबीर कहते हैं – मन के जीते जीत ! मन को जीत लो तभी विजय है। अगर मन को नियंत्रण में न ला सके, तो समझो पराजित हो गए। जीवन का जो वास्तविक उद्देश्य है, उसे पाने में विफल हो गए। जीवन का उद्देश्य है, इस जीवन को जानना। मनुष्य के रुप में जन्म होने के कारण को जानना। मन से परे जो त्तत्व है, जो भीतर की ऊर्जा है। तन में जिसके निहित होने से जीवन है। यह जो ऊर्जा है परम ऊर्जा का अंश है। 

मन के जीते जीत ! मनुष्य तन मिला है तो मनोगामी होकर नहीं आत्मज्ञानी होकर जीने के लिए मिला है। मन को जीतना जरूरी है, मन को जीत सको तो ईश्वर मिल जाते हैं। इसके लिए मन जीतना पड़ता है। मन को रुपान्तरित करना पड़ता है। मन को विपरीत दिशा में मोड़ना पड़ता है। क्योंकि मन का लगाव सांसारिक विषयों में होता है। 

मन के हारे हार है! अगर मनोगामी होकर यह तन कार्य करता रहे तो यह जीवन व्यर्थ समझिए। सांसारिक कर्तव्यों का निर्वहन करना जरूरी तो है, पर इसी में लगे रहना मनुष्य का कर्तव्य नहीं है। सांसारिकता में संलग्न रहकर भी आध्यात्मिक हुवा जा सकता है। मन में ज्ञान का, प्रेम का, भक्ति का दीपक जलाकर, मन के दिशा को मोड़ा जा सकता है। जब मन पर जीत मिल जाता है तो वह निर्मल, शांत और स्थिर हो जाता है। और रूपांतरित होकर आत्म तत्त्व को प्राप्त कर लेता है। कबीर के इस दोहे में इसी तथ्य की ओर इशारा किया गया है। 

मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
कहै कबीर हरि पाइये मन की ही परतीत।।

2 thoughts on “मन के जीते जीत ..!”

  1. Pingback: नर हो न निराश करो मन को ... - Adhyatmpedia

  2. Pingback: पूजा का अर्थ ! Meaning of worship in hindi. - Adhyatmpedia

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *