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अति भला न बोलना..!

अति का आशय है जरूरत से ज्यादा, आवश्यकता से अधिक। जितना जरुरी है, उससे अधिक अधिक घटित होना अति है। जरुरत से ज्यादा कभी भी, कुछ भी अच्छा नहीं होता। यह बात हरेक कार्य-व्यवहार, घटनाक्रम पर लागु होता है। अति का परिणाम हमेशा दुखदाई होता है।  यह शब्द हमें संयमित जीवन जीने को सचेत करता […]

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एकै साधे सब सधै

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।रहिमन मूलहिं सीचिबो, फूलै फलै अघाय।। उक्त दोहा कवि रहीम का है। दोहे का शाब्दिक अर्थ है- एक कार्य को पूरा करो तो बाकि सभी कार्य पूरे हो जाते हैं। और एक साथ अनेक कार्यों में लगे रहने से कोई भी कार्य सही ढंग से पूरा नहीं हो

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एकाग्रता का अर्थ!

सांसारिक जीवन में भी मन की एकाग्रता महत्वपूर्ण है। परन्तु यह व्यक्तिगत प्रयास और प्रयास की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। जो किसी वांछित चीज को पाने का पुरे मन से प्रयास करते हैं, उसे पा भी लेते हैं।

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व्यक्ति और व्यक्तित्व!

व्यक्ति का शाब्दिक अर्थ है, जो व्यक्त होता हो। जिसके पास व्यक्त होने के लिए बुद्धि, विचार, व्यवहार जैसी कुछ विशेषताएं हों। व्यक्ति से जो व्यक्त होता है, उसी से उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

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जीवन असत्य है ..!

जीवन असत्य है, यह समझने का विषय है। जीवन का सच क्या है? यह जो सवाल है, अनेकों सवालों को खुद में समेटे हुए है। लेकिन साधारण मनुष्य के पास इन सवालों का जबाब नहीं है।

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भट्ट ब्राह्मण कैसे..?

भट्ट ब्राह्मण कैसे? यह जो प्रश्न है, जातिवाचक है, भट्ट शब्द पर है। यह पूछता है कि भट्ट क्या है? ब्राह्मण है या कुछ और? और यह भी पूछता है कि अगर भट्ट ब्राह्मण नहीं है, तो क्या है? इसका जबाव शायद उनके पास भी नहीं है, जो भट्ट को ब्राह्मण नहीं मानते।  आखिर यह

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ऐसी लागी लगन ..!

मीरा की लगन ऐसी ही थी, उनकी मन की लहरें प्रेम के सागर में मिलने को उमड़ पड़ी। आत्मा जब परमात्मा से साक्षात्कार के लिए तड़प उठती है, तो ऐसा ही कुछ घटित होता है। जैसा कि मीरा के जीवन में घटित हुवा था। 

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ब्रम्ह मुहूर्त एवम् संध्याकाल।।

जागृत होने के लिए, ध्यान, साधना के लिए जो उपयुक्त बेला है, ब्रम्ह मुहूर्त है। और ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करने का समय संध्याकाल है।

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जागने का मुहूर्त क्या है?

जीवन को किसी विशिष्ट दिशा की ओर अग्रसर करना हो, तो विशेष प्रक्रियाओं का अभ्यास जरूरी हो जाता है। इसके लिए जागने का मुहूर्त भी विशेष हो जाता है।

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