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साधना से सिद्धि

साधना से सिद्धि – इस वाक्यांश में दो शब्दों का प्रयोग हुवा है। एक है ‘साधना’ और दुसरा ‘सिद्धि’। वाक्यांश का आशय है कि साधना के द्वारा ही सिद्धि की प्राप्ति होती है। साधना क्रिया है और सिद्धि कार्य के संपन्न होने की अवस्था है।

पिछले आलेख में साधना के अर्थ और महत्व पर चर्चा की गई। हमने जाना कि वास्तव में यह एक आध्यात्मिक क्रिया है। और साधना को साधना के द्वारा ही सिद्ध किया जा सकता है। साधना आत्मिक विकास के लिए किया जाने वाला निरंतर अभ्यास है।

साधना से सिद्धि का अर्थ !

साधना अगर मार्ग है तो सिद्धि गंतव्य है। सिद्धि साधना के मार्ग का मंजिल है, अंतिम पड़ाव है। जिस प्रकार सागर के तल में मौजूद रत्नों का भंडार सबके लिए सुलभ नहीं होते। ठीक उसी प्रकार मनुष्य के भीतर मौजूद आत्मिक संपदा का ज्ञान सभी नहीं होता है। इन्हें प्राप्त करने के लिए भीतर तह तक जाना पड़ता है। जो प्रयत्न करते हैं वही प्राप्त कर पाते हैं। 

इस आलेख में इसपर विचार करते हैं कि साधना से सिद्धि तक पहुंचने के उपाय क्या हैं! साधना से सिद्धि तक पहुंचने के लिए कुछ पद्धतियां हैं। प्रत्येक पद्धति को कार्यरुप देने के कुछ नियम भी होते हैं। जिनका अनुपालन करना अनिवार्य होता है। पूजा-पाठ, आराधना, उपासना, जप-तप आदि पावन क्रियाएं साधना के ही रुप हैं। 

साधना से सिद्धि तक पहुंचने के लिए एक है योग की पद्धति! शास्त्रों में योग को एक उत्तम साधना की श्रेणी में रखा गया है। योग शरीर और मन को नियंत्रित करने एवम् आंतरिक ऊर्जा को विकसित करने की उत्कृष्ट पद्धति है। योग स्वयं में एक साधना है! और इस साधना से सिद्धि तक पहुंचने के लिए कुछ आयाम हैं। 

साधना के सोपान !

पातंजल योगसूत्र में योग के आठ आयामों का उल्लेख किया गया है। पहला है यम एवम् दुसरा आयाम नियम है। सत्य अहिंसा, अस्तेय, ब्रम्हचर्य एवम् अपरिग्रह यम के अंग हैं। शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय एवम् ईश्वर प्राणीधान नियम के अंग हैं। यम और नियम के साधना से चरित्र का निर्माण होता है। 

तीसरा आयाम है आसन – अर्थात् बैठने का तरीका। इस आयाम में लम्बे समय तक शरीर को एक अवस्था में रखने का अभ्यास किया जाता है। इसका उद्देश्य शरीर को सबल बनाना है। चौथा आयाम है प्राणायाम – प्राण को संयमित करने की क्रिया है। पांचवां है प्रत्याहार – यानि मन को विषयों से मोड़कर भीतर की ओर ले जाने का प्रयास। छठा है धारणा, इस आयाम में मन कों किसी एक स्थान में धारण किया जाता है। ध्यान सातवां आयाम है और आठवां है समाधि।

विस्तृत जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें –

राजयोग क्या है? — What Is Raja Yoga?

साधना से सिद्धि तक जान्ने के लिए हरेक आयाम का निरंतर साधन आवश्यक है। वहीं  इसके लिए समय और स्थान का भी विशेष महत्व है। प्रात:काल यानि ब्रम्ह मुहूर्त का बेला को इसके लिए उपयुक्त माना गया है। 

शरीर को बाहर से शुद्ध कर यानि स्नानादि कर्म से निवृत्त होकर ही साधना का अभ्यास करना चाहिए। और इसके लिए एक निश्चित स्थान का चुनाव भी आवश्यक है। अगर आसपास कोई मंदिर हो, और मंदिर परिसर में बैठकर साधना करने का सुविधा हो तो अति उत्तम होगा। घर के किसी कमरे में बैठकर भी अभ्यास किया जा सकता है। परन्तु उस कमरे का उपयोग और किसी काम के लिए न हो, इसका ध्यान रखना आवश्यक है। 

कमरे में अपने इष्ट का चित्र अथवा मुर्ति रखना उचित है। या फिर मनभावक दृश्य वाले चित्र भी लगागर रखा जा सकता है। कमरे में धुप-दीप प्रज्वलित करना उचित माना गया है। बैठने के स्थान को शुद्ध रखने से वहां का वातावरण सकारात्मक बना रहता है। इससे मन को एकाग्र करने में सहायता मिलती है। अगर कमरे का व्यवस्था न हो तो किसी नदी के तट पर या बाग-बगीचे में बैठकर भी साधना का अभ्यास किया जा सकता है। जहां इच्छा हो, उपयुक्त स्थान का तलाश कर नियमित अभ्यास जरूरी है।

पूजा-आराधना, उपासना, जप-तप , योग आदि किसी भी क्रिया को अगर तन्मयता के साथ किया जा सके! किसी भी पद्धति को जीवन में अपनाकर मन को संयमित किया जा सके! मन के दिशा को मोड़कर उसे भीतर की ओर उन्मुख किया जा सके! तो निश्चित ही सफल हुवा जा सकता है। 

साधना में लगे रहने से दुषित, कलुषित मन को परिष्कृत होने लगता है। और जब मन अपने शुद्ध स्वरुप को प्राप्त कर लेता है, तो आनंद से भर जाता है। यही सिद्ध होने की अवस्था है, और मनुष्य जीवन का उद्देश्य इसी अवस्था को प्राप्त करना है। साधना से सिद्धि – इस तथ्य का तात्पर्य यही है। 

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