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जुगनू पर कविता : poem on firefly.

जुगनू की रोशनी से

जुगनू की रोशनी से
घोर अंधेरी रात की
कालिमा तो नहीं मिटती
पर इस टिमटिमाती
रोशनी को गर देखें
तो उजाले की होने की
आस भी नहीं मिटती

उड़ते फिरते हैं वो
घोर अंधेरी रातों में
जिधर भी वो विचरत्ते हैं
पल भर के लिए ही सही
पर मिटा देते हैं
आसपास की कालिमा को
और कराते हैं ये एहसास
कि उजाला अभी मिटा नहीं
और कभी मिटेगा नहीं

जैसे ढ़लती है रात
और फिर दिन आता है
वैसे ही जाता है दुख
और सुख आता है

अंधेरी रात की हो
या हो मन की निराशा
गर दुख है तो सुख आवेगा
मन में हो यह आशा

दुख तो सुख की छाया है
जैसे उजियारे का अंधियारा
दुख गर मन की कालिमा है
तो सुख है उसका उजियारा

जहां होता नहीं उजाला
होता है अंधेरा मौजूद वहां
उजाले में भी कभी
टिमटिमाते हैं जुगनू कहां

होती है सबके मन में
सुख पाने की चाह
और चाहते हैं सभी
मन के अंधेरे से
निकलने की राह

इसलिए तो भाता है
उनका रोशनी सबको
और सुकुन मिलता है
उस रोशनी से मन को

जुगनू प्रतीक है उस दीये की
जिसमें उजाला छिपा है
और आशा की वह किरण
उस दीये की रोशनी में है

जो मन में हो निराशा
तो घोर अंधेरी रात में
टिमटिमाती जुगनू को
निहारा किजिए

और उससे जो मिलता है
मन को सुकून
आशा के उस किरण को
मन में बसाए रखिए

कुछ भी शाश्वत नहीं इस जग में
जो आज है वो कल न रहेगा
खेल है यह नियति का
चक्र यह घुमता रहेगा

जो आज दुख है जीवन में
तो दुख पर रोना क्यों है
और जो सुख है तो
दुख के आने की चिंता क्यों है

जीने के लिए है यह जीवन
उजाले में भी मचलते रहिये
और अंधेरे में भी टिमटिमाते रहिये
जुगनू की तरह विचरते रहिये !

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