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अनुराग का अर्थ

अनुराग मूलत: संस्कृत भाषा का एक शब्द है। यह राग में अनु उपसर्ग लगाकर बना है। राग का अर्थ होता है लगाव, आसक्ति। जो कुछ भी ऐसा हो, जिसमें मनुष्य की चाहत जु़ड़ी हो राग कहलाती है। राग का संबंध मन से है, यह एक मनोभाव है। राग में सुख और दुख दोनों का समावेश है। जिस चीज से मन को राग होता है, वही उसके दुखी होने का कारण भी होता है। फिर भी उसे सुख की संभावना राग में ही दिखाई पड़ती है। उसे जिस किसी वस्तु की आकांक्षा होती है, वह  प्राप्त हो जाए तो सुख मिलता है। और अगर इच्छित वस्तु न मिले तो दुख होता है। 

साधारण मनुष्य सांसारिक गतिविधियों में ही लगा रहता है। किसी को धन की चाह होती है तो कोई किसी और चीजों के प्रति आकृष्ट होता है। लेकिन इस संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो किसी को स्थायी सुख दे सके। फिर भी कुछ समय के लिए, जिन चीजों से उसका लगाव होता है, मिल जाने पर सुख मिलता है। यह जानते हुवे भी कि लगाव दुख का कारण है, फिर भी क्षणिक सुख को पाने में लोग लगे रहते हैं।

एक और शब्द है विराग, जो राग में वि उपसर्ग लगाकर बना है। विराग का आशय विलगाव से है, विरक्ति से है। मन का स्वभाव ही ऐसा है कि किसी भी चीज से उसे या तो लगाव होता है या विलगाव होता है। मन या तो किसी पर आसक्त होता हैं या विरक्त हो जाता है। ऐसा भी होता है कि किसी एक ही विषय-वस्तु के प्रति कभी वह आसक्त तो कभी विरक्त हो जाता है। 

दुख राग से उत्पन्न होता है, भोगवादी लोग सुख भी वहीं से खोजते हैं। वे गुलाब में मौजूद कांटो के कारण फूल को नहीं छोड़ पाते। कांटों की चुभन से बचने का उपाय करते हैं या फिर चुभने पर सहन कर लेते हैं। परन्तु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो कांटों के कारण फूल को भी नहीं छूते। वे अपने भय को त्याग के रूप में दिखाते का आडंबर करते हैं। उन्हें कांटो से भय होता है, इसलिए फूल को भी छूने से डरते हैं। उनके मन में कांटों के लिए भी और फूल के लिए भी विराग उत्पन्न हो जाता है। 

रागी और विरागी में एक समानता है, वो यह है कि दोनों मानते हैं कि सांसारिकता में सुख भी है और दुख भी है। दोनों ही यह मानते हैं कि राग में सुख और दुख दोनों का समावेश है। जैसे गुलाब के पौधे में फूल भी हैं और कांटे भी हैं। परन्तु असमानता व्यवहार में है, एक फूलों के कारण कांटों का चयन करता है। और दुसरा कांटों के कारण फूलों का त्याग कर देता है।

सामान्य मनुष्य के मन का यह जो विराग है, यह त्याग नहीं है। इस विराग में, भय का समावेश है। इस विराग में कहीं न कहीं लालसा छुपी होती है। विरागी सांसारिकता को केवल दुख का कारण मान लेता है, जिस कारण वह विरक्त हो जाता है। लेकिन उसके मन की कामना नहीं मिटती।  

अनुराग का अर्थ क्या है जानिए!

अनुराग लगाव और विलगाव के मध्य का भाव है। आसक्ति और विरक्ति के बीच की स्थिति है। अनुरागी को न कांटों से भय है और न फूलों की चाहत है। अनुराग भय से मुक्त है, कामना से रहित है। अनुराग का आशय प्रेम की गहन भावना से है। जहां न खोने का दुख है और न पाने का सुख, यह सुख और दुख से परे का भाव है। इस शब्द का प्रयोग प्रेम के इसी गहन भाव को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। 

इस संसार के प्रति जिनके मन में राग है, वह रागी है। जो इस संसार में जब तक जीवित है, सुख भोग करना चाहता है, वह भोगी है। संसार में उपलब्ध कोई भी वस्तु ऐसी नहीं जो किसी को स्थायी सुख दे सके। इसलिए भोगी अपने जीवन में सुख कम और दुख ज्यादा उठाता है। भोगी नश्वर पर आसक्त रहता है, परन्तु वह उनसे तो बेहतर हैं जो भोग से भाग खड़े होते हैं। जो दुख के भय से सांसारिकता से भाग खड़े होते हैं। 

जो रागी है, वह विरागी से बेहतर है। पलायन से संघर्ष हमेशा बेहतर है। माना कि रागी का मार्ग गलत है, परन्तु उसकी यात्रा जारी है। सुधार की संभावना भी उन्हीं में होती हैं, जो गलत करते हैं। जो कुछ करते ही नहीं, करना ही नहीं चाहते, वे सुधर भी नहीं सकते। जो मार्ग में नहीं चलते उन्हें कभी मंजिल मिलेगी कैसे? 

अनुरागी भी यह मानता है कि जीवन में सुख भी है और दुख भी है। लेकिन वह दुख से कभी घबराता नहीं और क्षणिक सुख के पीछे भागता भी नहीं। अनुराग का संबंध धन और तन से नहीं है, मन से भी नहीं है। धन पदार्थ है और तन भी तो पदार्थ है, क्षणभंगुर है, नश्वर है। और यह जो मन है, पल-पल बदलता रहता है। ‌अनुराग का विषय शाश्वत है, जो कभी नष्ट नहीं होता। महत्वपूर्ण यह है कि राग किससे है, राग का विषय क्या है? 

जिसने गलत से राग लगा रखा है, वो तो गलत दिशा में जाएगा ही। परन्तु अगर कभी उसने यह समझ लिया कि वह गलत है, वह दिशा बदल भी सकता है। जिसे आज नश्वर से राग है, लगाव है, प्यार है! यह ज्ञान के अभाव के कारण है। अगर कोई घटना घट गई ऐसी, कोई मिल गया ऐसा, जो उसे समझा गया कि सही क्या है। हो सकता है कि वह ज्ञान की दिशा में चला जाए। संभव है कि उसके मन का राग अनुराग परिवर्तित हो जाए। 

इसलिए तो ज्ञानियों ने अपने चिंतन के धारा को बदलो! सोच की दिशा को बदलो। नश्वर से राग लगाकर देख लिया, अब शाश्वत से राग लगाने की सोचो। अगर निरंतर प्रयास करते रहे तो एक दिन वह समय आएगा। जब मन में राग से परे अनुराग का प्रादुर्भाव होगा। ऐसा भाव जिसमें परमात्मा के प्रति अटूट श्रद्धा हो, जिसमें भक्ति का समावेश हो। राग अगर शाश्वत से है, परमात्मा से है, तो अनुराग है। जिसने राग लगा लिया परमात्मा से, वह सुख और दुख से बाहर हो जाता है। 

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