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पलायन का अर्थ — Meaning of Escape

पलायन शब्द का अर्थ क्या है? सामान्यतः एक स्थान अथवा स्थिति से दुसरे स्थान अथवा स्थिति की ओर गमन की क्रिया को पलायन समझा जाता है। इसके व्यक्तिगत, आर्थिक, सामाजिक आदि अनेक कारण  होते हैं। इसके सामुहिक रूप भी होते हैं, प्राकृतिक आपदा एवम् युद्ध जैसी परिस्थितियों अथवा रोजी-रोजगार के तलाश में  सामुहिक पलायन देखने को मिलते हैं।सामान्यतः ऐसी प्रक्रिया में संघर्ष होता है, परिस्थितियों का सामना किया जाता है। अगर संघर्ष का परिणाम सकारात्मक न हो तो इसके गंभीर परिणाम भी सामने आते हैं। सामान्य स्वरुप में भी पलायन एक जटिल प्रक्रिया है, इसके बहूआयामी स्वरुप होते हैं। जैसे प्रतिभा पलायन, जनशक्ति का पलायन, अन्तरप्रांतिय एवम् अंतरर्राष्ट्रीय पलायन इत्यादि।  इसे परिभाषित करना कठिन है।

पलायन शब्द का सामान्य अर्थ समझा जाता है, जीवन के समस्याओं से भागने की प्रवृति। हां यह बात और है कि व्यक्ति अपने अहं को तुष्ट करने के लिए पलायन को त्याग का रूप देने का प्रयास करता है। 

सामान्यतः त्याग का अर्थ भागना नहीं छोड़ना होता है। सामान्य रुप में किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए घर-परिवार से दुर रहना पड़े तो यह त्याग समझा जाता है। जैसे विद्यार्थी का गृहत्यागी होना जरूरी समझा गया है। क्रोध, लोभ, मोह, स्वार्थपरता जैसे दुर्गुणों को छोड़ना त्याग है। पलायन पतनशील होता है, और त्याग उन्नति का आत्मोत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। पलायन में असंतोष होता है, त्याग में संतोष होता है। संतोष क्या है ..! What is satisfaction !

त्याग का वास्तविक रुप होता है परित्याग! अर्थात् उन समस्त विषय-वस्तुओं का त्याग जो आत्म विकास में बाधक हों। उनसे हमेशा के लिए मुक्त हो जाना परित्याग है। त्याग में संघर्ष हो सकता है। विना सोचे-समझे अस्थिर मन से अगर कोई किसी विषय-वस्तु का त्याग करता है, तो बाद उसे पछतावा हो सकता है। परन्तु परित्याग में पछतावा, असंतोष के लिए कोई स्थान नहीं है। परित्याग में इच्छाशक्ति होती है, कामनाओं-वासनाओं का अभाव होता है। इच्छाशक्ति क्या है : What is willpower.

अगर एक सोचे-समझे उद्देश्य के कारण स्थान या स्थिति में परिवर्तन हो, तो उसे पलायन नहीं कहा जा सकता। विशेष परिस्थितियों में जीवन में सुख-शांति की खोज , स्वयं को जानने का प्रयत्न भी ऐसी क्रियाओं में शामिल होता है। प्राचीनकाल में वानप्रस्थ का वर्णन मिलता है। स्थान परिवर्तन के लिए हो अथवा स्थिति में परिवर्तन के लिए हो, यह एक प्रकार का यात्रा ही तो है। इस प्रकिया को कौन किस प्रकार से लेता है, उसके मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है।

स्वयं की यात्रा : journey of self i.e. journey from self to soul.

एक वाकया है जो मैंने पढ़ी है। एक व्यक्ति पर विरक्ति का नशा चढ़ा। रात्रि के दुसरे पहर गये, वह उठा और घर छोड़कर ईश्वर की खोज में चल पड़ा। सोते हुवे स्त्री और बच्चों की ओर उसने घृणा की दृष्टि से देखा, और कहा; यही वो दुष्ट हैं जो मुझे माया जाल में बांध कर रखा था। मां के बगल में सोये बच्चे ने सपने में यह अनर्थ देखा और चौंककर चीख पड़ा। अलसाई आंखों से माता ने अपने पुत्र को कलेजे से चिपका लिया। तभी ईश्वर ने कहा – मुर्ख माया जाल में कर्तव्य के बंधनों में मैंने ही तुझे बांधा था। इस माता को देख, जो रोते बालक को छाती से लगाकर सांत्वना देती है और एक तू है, जो आश्वस्तों को धोखा देकर भाग रहा है।मैं तो कुटुम्बियों के रुप में तेरे घर में मौजूद हूं, फिर मुझे ढ़ुंढ़ने कहां चला! _ स्रोत : अखंड ज्योति

सामान्य से सामान्य शब्द के गर्भ में गहन अर्थ छुपा होता है। पर किन शब्दों का अर्थ कौन किस प्रकार से लेता है, वह उसके समझ पर निर्भर करता है। एक बार किसी ने ओशो से कहा – ध्यान और आत्मलीनता तो एक तरह का पलायन है, जिन्दगी से भागना है!

  ध्यान क्या है जानिए ! Know what is meditation.

इस बात पर ओशो ने जो कहा; इस प्रकार है- पहली बात तो ध्यान पलायन नहीं है, आत्मलीनता पलायन नहीं है। बल्कि जो आत्मा से बचकर और सब तरफ भाग रहा हैं, वे पलायन में हैं। हम अपने से ही बचने के लिए भाग रहे हैं। और मजे की बात यह है कि भागने वालों की भीड़; अगर कोई अपने को जानना चाहता है तो उससे कहते हैं, तुम ज़िन्दगी से भाग रहे हो। जिंदगी अपने अतिरिक्त और कहां से प्रारंभ हो सकती है? 

जीवन का पहला कदम तो आत्मज्ञान ही होगा। मेंरी जिंदगी दुसरे से शुरू नहीं हो सकती! मेंरी जिंदगी मुझसे शुरू होगी। गंगा निकलेगी तो गंगोत्री से! वह किसी और नदी के उदगम से नहीं निकल सकती है। जो लोग कहते हैं कि आत्मज्ञान की दिशा में जानेवाले लोग पलायनवादी है, वे बिल्कुल ही गलत बात कहते हैं।

ओशो

असल में पलायनवादी हम सब हैं, जो आत्मा से बचने के लिए और न मालूम कहां-कहां जा रहे हैं। कोई शराब खोज रहा है कि अपने को भूल जाते। कोई संगीत खोज रहा है कि अपनी याद न आते। कोई सेक्स खोज रहा है; कोई सिनेमा खोज रहा है; कोई क्रिकेट देख रहा है; कोई मित्र खोज रहा है; कोई जुआ खोज रहा है; कोई धन्धा खोज रहा है; कोई राजनीति को खोज रहा है – ताकि अपना पता न लगे। सारी भीड़ भागी हुवी है! इसलिए जो अपनी तरफ लौट रहा है, लगता है पलायन कर रहा है! जिंदगी से भाग रहा है।

स्वयं की यात्रा : journey of self. Part-2

वास्तव में स्वयं से भागना पलायन है। मनुष्य के मन की शांति भौतिकता के कारण भंग नहीं होती, भौतिकता के प्रति आसक्ति के कारण भंग होती है। जब मनुष्य के मन की इच्छाएं पूर्ण नहीं होती, अशांत मन विरक्त हो उठता है। और उसका मन पलायन को उन्मुख हो जाता है। ऐसा कर वह शांति का तलाश करना चाहता है। परन्तु पलायन तो कायरता है, अपने दायित्वों से भागकर कोई शांत कैसे हो सकता है। जब तक मन कामनाओं से मुक्त नहीं होता, उसे शांति मिलती नहीं है। त्यागी पुरुष आसक्ति और विरक्ति दोनों से रहित होता है। कामना का अर्थ क्या है: meaning of desire. त्याग का वास्तविक अर्थ कर्तव्यों का त्याग नहीं कामनाओं का त्याग है। शांति भीतर है, शांति की तलाश बाहर भागने से, पलायन करने से नहीं मिलती। 

सिद्धार्थ का गृहत्याग! युवक वर्द्धमान का घर छोड़कर वन में जाना! पलायन नहीं था और ना ही विरक्त होकर किया गया त्याग था! यह तो स्वयं को खोजने की यात्रा थी। दोनो ही राजपुत्र थे, उनके जीवन में भौतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं थी।  इन घटनाओं के विषय में सोचना साधारण मन के वश की बात नहीं है। इन घटनाओं का परिणाम संसार को तब ज्ञात हुवा, जब सिद्धार्थ भगवान बुद्ध बनकर और वर्द्धमान भगवान महावीर के रुप में संसार के समक्ष प्रस्तुत हुवे।  दायित्वों से पलायन कर, कर्तव्यों से पीछा छुड़ाकर, घर-परिवार का त्याग कर देने मात्र से अगर सुख-शांति प्राप्त होने लगे तो इससे उत्तम और क्या हो सकता है। प्रारब्ध और पुरुषार्थ : destiny and efforts..! विना पुरुषार्थ के आजतक किसी का कोई भला नहीं हुवा है। पुरुषार्थी असाधारण होते हैं और असाधारण की बात ही कुछ और होता है। आवारा मन असाधारण होता है ! A stray mind is extraordinary

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