‘स्वयं की यात्रा’ का आशय क्या है? यह प्रश्न विचारणीय है! स्वयं की यात्रा का तात्पर्य है स्वयं की समझ की यात्रा! स्वयं को जानने के लिए यात्रा। इन तीन शब्दों पर गौर किजिए! एक शब्द है स्वयं, दुसरा है समझ और तीसरा है यात्रा। ‘स्वयं की समझ की यात्रा’ पर विचार से पूर्व इन दो शब्दों का अर्थ जानना आवश्यक है। सामान्यतः स्वयं का तात्पर्य अपने आप को व्यक्त करने से है। जैसे इस कार्य को मैं कर सकता हूं, मैंने किया है, मैं करूंगा आदि! इस वाक्य में कर्ता भाव है, अर्थात् करने वाला अपने आप को ही व्यक्त कर रहा है। अपने आप की बात करने को आपा समझा जाता है। सम्मान अभिमान और स्वाभिमान ! आपा, निज और खुद पर्यायवाची शब्द हैं स्वयं का! और आपा में अहम् भाव (ego) है, अहंकार है। इस दृष्टिकोण से किसी बात पर स्वयं को व्यक्त करना अहंकार समझा जाता है।
स्वयं शब्द के पर्याय में एक और शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है आत्म। आत्म (self) का संबंध आत्मा से है! आत्मा शब्द का प्रयोग वैदिक दर्शन में मूल विषय-वस्तु के रुप में किया गया है। इसका तात्पर्य मनुष्य में निहित उस त्तत्व से है, जिसके कारण जीवन है। ज्ञानियों ने इसे ज्ञानयुक्त, प्रगतिशील चेतन तत्त्व कहा है।
आत्मा के संबंध में सदगुरु कहते हैं ; यह त्तत्व असिमीत है, यह कोई इकाई नहीं है। इसके लिए एक शब्द का प्रयोग किया गया है, नामकरण किया गया है। आप चाहे इसे आत्मा कहें, सोल (soal) कहें, सेल्फ (self) कहें, आप इसे चाहे जो कहें। जैसे ही आप इसके साथ एक नाम जोड़ देते हैं, यह एक इकाई बन जाता है।
आत्मा को एक और नाम से संबोधित किया जाता है, यह नाम है ‘सुक्ष्म शरीर’। सदगुरु ने इसे ऐसे समझाया है ; योग में कहा जाता है कि हर चीज शरीर है। भौतिक शरीर! शरीर है , मन शरीर है , प्राण शरीर है , आकाशिय त्तत्व शरीर है , हर चीज शरीर की तरह है। यहां तक की आत्मा भी शरीर की तरह है। यह चीजों को देखने-समझने का दृष्टिकोण है। जब हम कहते हैं कि आनंदमय कोष! तो निश्चय ही हम परम तत्त्व की बात कर रहे हैं , लेकिन उसे भी एक शरीर के रूप में। ऐसा इसलिए कि आप इन त्तत्वों को समझ सकें।
दुसरे शब्दों में आप अगर अपने शरीर को पुरी सृष्टि का मॉडल के रूप में लेते हैं तो यह भौतिक शरीर से शुरू होकर मानसिक फिर प्राणिक शरीर तक स्थूल से सूक्ष्म होता चला जाता है। भौतिक शरीर मानसिक शरीर से स्थूल है। प्राणिक शरीर वह ऊर्जा है जो इन सबको चलाती है, और यही है जो आपको जोड़कर रखती है। जब प्राणिक शरीर अथवा सुक्ष्म शरीर भौतिक शरीर से अलग हो जाता है तो भौतिक शरीर निर्जीव हो जाता है।
समझ यानि किसी विषय-वस्तु के वास्तविक अर्थ, रुप को जान लेना। और यात्रा का अर्थ है! सामान्यतः यह एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की क्रिया है। विस्तृत रुप में यह एक स्थिति अथवा अवस्था से दुसरी अवस्था तक जाने की प्रक्रिया है। स्थूल अवस्था से चेतन अवस्था तक पहुंचने की क्रिया है!
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सामान्य रुप में मनुष्य का भौतिक शरीर उसके मानसिक शरीर से संचालित होत्ता है। अत: आंखे जो देखती हैं, वही सत्य प्रतीत होता है। भौतिकवादी विचारक बेकन के अनुसार ‘यह संसार ही सत्य है’ , यही सबकुछ है। भौतिकवादी विचारधारा मानसिक शरीर तक सीमित है। यह बुद्धि के स्तर तक सीमित है, तर्क तक सीमित है। बुद्धि जब ज्ञान के स्तर तक पहुंच जाता है तो तर्क नहीं रहता, दर्शन कहलाता है। और जहां दर्शन का अंत होता है वहां से अध्यात्म की शुरुआत होती है।
आध्यात्मिक विचारधारा के अनुसार यह जगत मिथ्या है। जीवन के विषय में वैदिक दृष्टिकोण है कि हमारा जीवन तभी सार्थक कहा जा सकता है जब हम भौतिक जीवन के आगे जो है, उसे जान सकें।
उपनिषद में कहा गया है कि ‘तेन त्यक्तेन भुजीथा’ , भावार्थ है कि इस भौतिक संसार की रचना ही भोगने के लिए हुवा है, परन्तु भोग में ही लिप्त हो जाना स्वयं को विस्मृत कर देना है। आत्मा के विना शरीर चैतन्य रुप को प्रगट नहीं कर सकता। अतः आत्मा के लिए शरीर का होना अनिवार्य है। शरीर नाशवान है और आत्मा अविनाशी है। वैज्ञानिक भी जो भौतिकवादी हैं, वे भी इस बात को मानते हैं कि ऊर्जा का क्षरण नहीं होता, रुपांतरण होता है। तो फिर इस इस सुक्ष्म शरीर का जो एक ऊर्जा है, इसके विषय में जानने का क्या प्रयत्न नहीं होना चाहिए?
परन्तु सीमित के द्वारा असीमित को जान पाना सरल नहीं है। आत्मा को जान पाना इतना आसान नहीं है। स्वयं के द्वारा दुसरों को जाना जा सकता है। पर स्वयं के द्वारा स्वयं को जानना अत्यंत कठिन है। जिन आंखो से सबकुछ दिखता है, उन आंखों से वह नहीं दिखता जो भीतर है। इस असंभव सा लगने वाला कृत्य को संभव करने की जो विधा है, वह अध्यात्म है। अध्यात्म क्या है ! Know what is spirituality.अध्यात्म के मार्ग में चलने के लिए जो उत्तम क्रिया है, वह ध्यान है। और ध्यान की क्रिया समस्त योग प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है। योग क्या है! जानिए : Know what is yoga ! गीता में उल्लेखित है कि योग स्वयं का स्वयं के माध्यम से स्वयं की यात्रा है। इस प्रकार यह समझा जा सकता है कि स्वयं की यात्रा की पूर्णता आत्मा के अनुभव में है।
श्रीकृष्ण ने गीता में आत्मा को अविनाशी कहा है। संसार में अनेक ज्ञानी पुरुषों का अवतरण हुआ है, जिन्होंने इसका साक्षात्कार किया है। महावीर, बुद्ध, जीसस, नानक, कबीर, रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद आदि सभी ने एक मत से आत्मा को अमर कहा है। आत्मा एक ऊर्जा का रुप है जिसे आत्मज्ञान प्राप्त होने के समय इसका अनुभव किया जा सकता है। ज्ञानियों ने इसे अनुभव करने के मार्ग भी बताये हैं।
स्वयं की यात्रा का अर्थ है स्वयं के विकास के लिए, स्वयं के कल्याण के लिए यात्रा। स्वयं की यात्रा का आशय है अहंकार से ओंकार की यात्रा। शरीर और आत्मा के बीच में जो त्तत्व मौजूद है, वह है अहंकार। प्रयत्नशील व्यक्ति का अहंकार जब मिट जाता है तब उसे ओंकार के अंश का अनुभव होता है। वेदोक्ति है कि ‘ईशावास्यामिदम् सर्व’ ; अर्थात् भौतिक जगत के भीतर स्थित परम ऊर्जा का अनुभव कर लेना ही जीवन है।
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ज्ञानियों का कहना है कि उत्तम कार्यों, उत्तम विचारों का जीवन में उत्तम प्रभाव पड़ता है। आध्यात्मिक विचारक श्री श्री का कहना है कि ‘आध्यात्मिक बातों का अध्ययन कर, उंन्हें बोलकर ईश्वर के अंश का अनुभव किया जा सकता है।’ कवि रहीम कहते हैं कि ‘बांटन वारे को लगे ज्यों में मेहंदी के रंग।’ मेहंदी लगाने वालों के हाथों में मेहंदी का रंग अपना प्रभाव अवश्य डालता है। परन्तु पीसने वाले के हाथ भी मेहंदी के रंग से रंग जाते हैं।
मुक्ति का अर्थ ! Meaning of freedom in hindi
स्वयं पर विश्वास को आधार बनाकर सतत् प्रयत्नशील रहने से सत्य का अनुभव किया जा सकता है। श्री श्री रविशंकर कहते हैं; ‘विश्वास यह समझने में है कि आप जो चाहें प्राप्त कर सकते हैं।
आत्मविश्वास क्या है ! What is confidence.
सत्य का अनुभव किया जाता है और वह तब तक असत्य प्रतीत होता है, जब तक व्यक्ति उससे अनभिज्ञ रहता है। संत कबीर ने कहा है कि ‘मैं कहता आंखन देखी तू कहता कागद लेखी।’ ज्ञानियों ने सत्य के विषय में, आत्मा के विषय में जो कहा है, अपने अनुभव के आधार पर कहा है। परन्तु यह बात भी उतना ही सच है कि ज्ञानियों की उल्टी वाणी लोगों के समझ के बाहर की चीज है। ज्ञानियों के एक-एक शब्द में जीवन को बदलने की क्षमता है, जरूरत इन्हें जानने के लिए प्रयास करने की है। और प्रत्येक को स्वयं की यात्रा स्वयं करनी होती है।
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