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प्रभाते कर दर्शनम् …. प्रातःकालीन मंत्र।

प्रभाते कर दर्शनम् – यह एक मंत्र का अंश है, जिसमें तीन शब्द हैं। पहला है प्रभात यानि सुबह की बेला, दुसरा है कर यानि हथेली और तीसरा है दर्शन। यहां दर्शन का आशय देखने से है। सुबह की जो बेला है, हम नींद से जगते हैं। जब हम नींद में होते हैं, हमारी पलकें बंद होती हैं, और जब जगते हैं तो ये खुल जाती हैं। आंखों का काम ही देखना है, यह उक्ति हमें नींद से जगते ही सर्वप्रथम अपने हथेलियों को देखने की सीख देती है। अब जरा सोचिए! सुबह नींद से जगते ही हथेलियों को निहारने का तात्पर्य क्या हो सकता है? मन में यह भाव तो आता ही होगा कि ऐसा करने का क्या आशय है? 

हमारा जीवन जीने का जो तरीका है, यह कैसा हो, इसके लिए कुछ नियम बताए गए हैं। हम अपने दिनचर्या को सरल बनाने के लिए छोटी छोटी बातों का कैसे ध्यान रखें, इस बात का उल्लेख भारतीय पौराणिक शास्त्रों में मिलता है। प्रभाते कर दर्शनम् – का जो एक पक्ष है, वह शारीरिक है। नींद से जगते ही किसी दुरस्त वस्तु अथवा रोशनी पर हमारी दृष्टि पड़े, तो आंखों पर इसका गलत प्रभाव पड़ सकता है। हथेलियों पर ध्यान केंद्रित कर कुछ देर तक निहारने से दृष्टि को स्थिरता प्राप्त होती है।

इस क्रिया के पहले या बाद में कुछ देर तक हथेलियों को रगड़ने के बाद इन्हें आंखों पर रखने से अधिक लाभ मिलता है। ऐसा करना आंखों के साथ साथ संपूर्ण शरीर के लिए लाभकारी होता है। हथेलियों को आपस में रगड़ने से शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है। इससे पूरे शरीर में रक्त का संचालन ठीक प्रकार से होने लगता है। और जब हथेलियों को रगड़कर आंखों से स्पर्श कराया जाता है, तो इससे आंखों को आराम मिलता है। और फिर इस क्रिया को नियमित रूप से करने से मस्तिष्क को भी आराम मिलता है।

प्रभाते कर दर्शनम् – अगर सुबह नींद से जगते ही इस क्रिया को निरंतर करने की आदत डाल लें, तो फिर शारीरिक, मानसिक एवम् आध्यात्मिक तीनों प्रकार से लाभान्वित हुवा जा सकता है। हथेलियों के दर्शन का एक भाव यह भी है कि हम स्वंय पर विश्वास करें। अपने आप पर, अपने कर्म पर विश्वास करें। ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ यानि सबकुछ कर्म पर निर्भर है। और हमसे जो कर्म होते हैं, हमारे विचारों पर निर्भर करता है। ऐसा कहा गया है कि हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बनते चले जाते हैं। यह आकर्षण के सिद्धांत का मूल तथ्य है, जो प्रमाणित है। अतः हमारा दिन का आरंभ शुभ विचारों एवम् कर्मों से होना जरूरी है। 

पौराणिक शास्त्रों में यह उल्लेख है कि लक्ष्मी धन-वैभव एवम् सरस्वती विद्या प्रदान करने वाली महाशक्तियां हैं। और भगवान विष्णु को जगत का पालनकर्ता कहा गया है। वास्तव में धर्म का संबंध धारणा से है। धारणा वह है, जिन बातों-विचारों को हम मान्यता देते हैं। मन में धारण किए रहते हैं और उन पर श्रद्धा और विश्वास बनाए रखते हैं। कोई भी उक्ति, मंत्र अथवा श्लोक हमें किसी भी बात को मानने को बाध्य नहीं करता। सबकुछ हमारी मान्यता पर निर्भर करता है, और उसी अनुरूप हमें परिणाम भी प्राप्त होता है। इस मंत्रांश में निहित अर्थ को गहनता से समझने के लिए पुरे मंत्र पर विचार करना जरूरी है।

कराग्रे वसते लक्ष्मी कर मध्ये सरस्वती।
कर मूले तु गोविन्दो प्रभाते कर दर्शनम्।।

शास्त्रोक्त इस मंत्र का शाब्दिक अर्थ है – हथेलियों के अग्र भाग में मां लक्ष्मी विजारती हैं, मध्य में सरस्वती का निवास है और निचले भाग में भगवान विष्णु विराजते हैं। मंत्र के अंतिम अंश में प्रातःकाल सर्वप्रथम हथेलियों के दर्शन की बात कही गई है।

इस मंत्र में कर्म एवम् भक्ति दोनों का समावेश है। भक्तिभाव की बात करें तो इस श्लोक में ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी, विद्या की देवी सरस्वती एवम् सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु की आराधना की गई है। अगर हमारी श्रद्धा-भक्ति इन महाशक्तियों में है, तो नींद से जगते ही प्रार्थना से अधिक सुन्दर कर्म और क्या हो सकता है? जरा सोचिए! 

जीवन में धन, विद्या, जीवनयापन के सामर्थ्य को अर्जित किया जा सके, हथेलियों को देखने का मूल भावना यही है। पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के अगर हम जीवन में इस क्रिया को संलग्न करें, तो यह मंत्र हमारे जीवन में चमत्कारिक प्रभाव डाल सकता है। भक्ति के साथ कर्म की ओर स्वयं को प्रवृत करने के लिए यह एक उत्तम क्रिया है। इस मंत्र का मन ही मन अथवा बोलते हुए अपने हथेलियों को ध्यानपूर्वक निहारने से तन-मन दोनों का विकास होता है। 

इस क्रिया के द्वारा हमारी वृतियां सकारात्मकता की ओर अग्रसर हों जाती हैं। यह जो मंत्र है, स्वयं के हथेलियों में ईश्वरीय शक्ति का वास है, ऐसा विश्वास मन में धारण कर, हमे भक्ति के मार्ग की ओर प्रवृत्त करने में सहायक है। प्रत्येक सुबह की शुरुआत ऐसी क्रिया से हो तो मन में सात्विक भाव उत्पन्न होता है, फलस्वरूप उतम कर्म करने की प्रवृति विकसित होती है। 

प्रभाते कर दर्शनम् – नींद से जगते ही नियमित रूप से इस क्रिया, इस प्रार्थना को करने से आत्मनिर्भर होने की प्रेरणा मिलती है। हर सुबह की शुरुआत अगर प्रार्थना के साथ हो, तो जीवन में इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ना अवश्यंभावी है। हम ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं हमारे जीवन में कर्मों का अभाव न हो। हम परिश्रम में लगे रहें और हमें पराश्रित होकर जीना न पड़े। हमसे ऐसे कर्म हों, जिससे कि हमारे जीवन में धन-संपदा, सुख-संतोष एवम् ज्ञान की प्राप्ति हो सके।

कराग्रे वसते लक्ष्मी कर मध्ये सरस्वती।
कर मूले तु गोविन्दो प्रभाते कर दर्शनम्।।

यह मंत्र विष्णु पुराण का एक श्लोक है। प्रातः जल्दी उठकर इस मंत्र-जाप का अभ्यास करने से जीवनयापन करना सहज हो सकता है। इस मंत्र के जाप के लिए नींद से जगते ही अपने हथेलियों पर ध्यान केंद्रित करें। और यह कल्पना करें कि हथेलियों के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती एवम् मूल में विष्णु विराजते हैं। फिर कुछ देर तक ध्यान मग्न होकर श्रद्धा के साथ मन ही मन अथवा बोलकर मंत्र का जाप करते रहें। यह तन और मन को स्थिर एवम् किसी विषय पर ध्यान को केन्द्रित करने में सहायक है। यह कार्यशीलता को बढ़ावा देता है, आत्म विश्वास में वृद्धि करता है। इस क्रिया को निरंतर एवम् नियमित रूप से करना हर उम्र के व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण है।

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