Adhyatmpedia

सवाल पर सवाल..!

सवाल क्या है?

सवाल पर सवाल! यानि सवाल यह है कि सवाल क्या है? आइए यह जानने का प्रयास करते हैं कि सवाल क्या है? सवाल उर्दू भाषा का एक शब्द है। सवाल का ताल्लुक जानकारी से है। जब किसी विषय पर जानकारी का अभाव होता है, तो उस विषय पर जानने की चाहत भी होती है। और जब यह चाहत भाषा के रूप में व्यक्त हो तो सवाल पैदा होता है।

हिन्दी भाषा में ‘प्रश्न’ और अंग्रेजी में ‘question’ इस शब्द का समानार्थी है। प्रश्न का संबंध जिज्ञासा से है। जिज्ञासा एक मनोभाव है, ऐसा मनोभाव जिसमें जानने की इच्छा निहित होती है। यह किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान अथवा विषय के संबंध में जानकारी प्राप्त करने की इच्छा है। यह जो जानने की इच्छा है, प्रश्न के उपस्थित होने का कारण है। 

सवाल अथवा प्रश्न मन की अभिव्यक्ति है। जब जानने की इच्छा, अर्थात् जिज्ञासा भाषा के रूप में अभिव्यक्त होती है, तो प्रश्न का रुप ले लेती है। प्रश्न का संबंध संदेह से भी है। संदेह मन की दुविधा जनक स्थिति है। जब संदेह के समाधान के लिए उपस्थित मनोभाव भाषा के रूप में अभिव्यक्त हो, तो प्रश्न खड़ा हो जाता है। यह मन की ऐसी अभिव्यक्ति है, जो भाषा के रूप में अभिव्यक्त होती है। 

गहन अर्थ में जिज्ञासा ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा है। और ज्ञान का संबंध सत्य से है। सत्य को जानना ही ज्ञान है। यह जो ज्ञान है, जो वास्तविक है, अर्थात् जो सत्य है। और जिसके प्रति हम अनभिज्ञ रहते हैं, संदेहास्पद स्थिति में बने रहते हैं। इसे जानने की जो इच्छा है, जब प्रबल हो उठती है तो ज्ञान का मार्ग प्रशस्त होता है। जिज्ञासा मार्ग है, ज्ञान के खोज का मार्ग। जब कोई इस मार्ग पर चल पड़ता है, तो दुविधा में होता है। वह जिस चीज के विषय में जानना चाहता है, उसके विषय में अनभिज्ञ रहता है। लेकिन जानने की इच्छा ही उसे इस ओर प्रवृत्त करता है। 

सवाल का संबंध जानने की चाहत से है, संदेह के समाधान से है। लेकिन हम क्या जानना चाहते हैं? यह महत्वपूर्ण है। हर सवाल का समाधान संभव हो सकता है? लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि हम जानना क्या चाहते हैं? मन में जैसी जिज्ञासा होती है, वह उसी ओर अग्रसर होता है। मन के अनुसार ही विचार उत्पन्न होते हैं, प्रश्न खड़े होते हैं। और मन जो प्रश्न खड़े होते हैं, उत्तर भी उसी का खोजा जाता है। प्रश्न है तो उत्तर भी है, ये एक सिक्के के दो पहलू हैं। सवाल इसलिए है कि जबाब क्या है?

जीवन का जो वास्तविक लक्ष्य है, यह जानना है कि सत्य क्या है? यह जो सवाल है, यही महत्वपूर्ण है? इसी में जीवन का सार छुपा है। इसलिए सवाल यह है कि जीवन क्या है? जीवन को समझ पाना बुद्धि का नहीं, ज्ञान का विषय है। यह मन का नहीं आत्मा का विषय है। इसका निदान आध्यात्मिकता में है। 

अब प्रश्न है कि सत्य का ज्ञान क्या है? इसका हल किसी को मिला भी है? अपने प्रयासों से सांसारिक उलझनों को लोग सुलझा लेते हैं। संसार में उपस्थित भौतिक गतिविधियों से संबंधित प्रश्न का उत्तर भी लोगों ने खोजा है। विज्ञान, ज्योतिष आदि शास्तों का उद्भव इसीलिए हुवा है। लेकिन ब्रम्हांड की गतिविधियां संचालित कैसे हो रही हैं, इस वैज्ञानिकों बताया या भी है। लेकिन इन गतिविधियों का संचालन कौन करता है? इस पर विज्ञान मौन है। इस सत्य का समाधान स्वयं के खोज का विषय है। इसका हल मन के भीतर तल में उतरकर खोजा जा सकता है। जिन्होंने ने खोजा है, उन्होंने पाया है, और संसार को बताया भी है। लेकिन चूंकि यह स्वयं के अनुभव का विषय है, अतः उनकी बातों पर संदेह बना रहता है। आध्यात्मिक पुरुष साधारण व्यक्ति के दृष्टि में सवाल बन कर रह जाते हैं?

सवाल यह है कि सुख कहां है? यानि की जीवन में दुख क्यों है? इसका हल सांसारिकता में नहीं है। अध्यात्म के मार्ग पर चलकर ही सुख की अवस्था तक पहुंचा जा सकता है। और गौरतलब है कि यह जो प्रयास है, सुख की तलाश का, यह व्यक्तिगत मामला है।

ऐसा भी नहीं कि मिला न हो किसी को, जबाब इस सवाल का..! जिसने किया मोहब्बत इस हसीन जिन्दगी से, मिला है उस दीवाने को जबाब इस सवाल का..!

खता है यह खुद उनकी, जिन्होंने ना ढ़ुंढ़ा कभी जबाब इस सवाल का..! उलझकर रह गये जो, बेतुक सवालों में मिलेगा उन्हें क्यों? जबाब इस सवाल का ..!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *