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इच्छा की शक्ति क्या है ..!

इच्छा की शक्ति क्या है ? इसका सरल उत्तर है कि वह शक्ति जो हमें कर्म की ओर अग्रसर करती है। इच्छा अगर बलवती हो, प्रबल हो तो इसके पूर्ण होने संभावना भी प्रबल होती है। इच्छा अर्थात् मन में कुछ पाने का भाव उत्पन्न होना।

इच्छा की शक्ति क्या है जानिए !

अब जरा सोचिए! वैसी इच्छा जिसे पाने का प्रयास न हो तो वह कभी पूरी हो सकती है? प्रयत्न विहीन इच्छा अगर पूरी हो जाए तो इसे चमत्कार ही मानना होगा। इच्छा अगर प्रबल न हो तो वह शक्ति विहीन होती है। शक्ति यानि बल, ताकत, ऊर्जा! इच्छित को प्राप्त करने के लिए मन में बल का होना अनिवार्य है। मन को अगर कुछ चाहिए, तो पाने का प्रयास भी होना चाहिए। प्रयत्न तो करना ही होगा! यूं हीं अनमने ढंग से नहीं, प्रयत्न में जोर लगाना होगा। संकल्प का भाव मन में धारण कर, पुरे लगन के साथ कठिन परिश्रम करना होगा। और यह जो मन है बिना संकल्पशक्ति के निश्चयात्मक नहीं हो सकता।

संकल्प से सफलता मिलती है!

इच्छा की शक्ति असंभव को भी संभव कर सकती है। इच्छाओं के अनुरूप कर्म अगर हो तो परिणाम भी अवश्य ही मिलते हैं। इच्छा की शक्ति अगर प्रबल हो तो व्यक्ति अवरोधों के बावजूद लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो सकता है। असाधारण से लगने वाली इच्छाओं को प्राप्त करने के लिए प्रयास भी असाधारण करने पड़ते हैं। जगत में असाधारण उपलब्धियों के उदाहरण भरे पड़े हैं। 

थॉमस अल्वा एडीसन! जिन्होंने बिजली के बल्ब का आविष्कार किया। अपने इस उपलब्धि से पूर्व उन्हें हजारो बार असफलता के दंश झेलना पड़ा था।

भौतिकशास्त्री गैलिलियो को आसमान में टिमटिमाते तारों को नजदीक से देखने की इच्छा हुवी। दुरबीन का आविष्कार कर उन्होंने अपने इस इच्छा को फलीभूत पर दिखाया। उनका यह आविष्कार खगोलशास्त्रियों के लिए वरदान साबित हुवा।

खोजकर्ताओं में से एक, जिन्होंने युरोप से भारत आने के लिए जलमार्ग को खोज निकाला। यह वास्कोडिगामा की इच्छा की शक्ति का एक सुंदर उदाहरण है।

कहते हैं कि न्युटन सेव के एक पेड़ के नीचे बैठे हुवे थे। उस पेड़ से एक सेव टुटकर उनके सर के ऊपर जा गिरा। इस घटना ने उनकी इच्छा की शक्ति को जगा दिया। उनके मन में यह जानने की इच्छा प्रबल हो उठी कि सेव पेड़ से नीचे क्यों गिरा ? उन्होंने इसका कारण ढुंढना शुरू किया और परिणाम स्वरुप गुरत्वाकर्षण का नियम का प्रतिपादन हो गया।

चांद की सतह पर जाने की कल्पना तो अनेकों ने की होगी। परन्तु सर्वप्रथम नील आर्मस्ट्रांग ने इसे साकार कर दिखाया। केवल एक बार नहीं, तीन बार उन्होंने चांद के सतह तक जाने में सफल हुवे। पहली बार चांद पर पहुंचने पर उन्होंने कहा था कि ये मनुष्य के लिए छोटा सा कदम है!! उनके इस कथन से इस तथ्य को बल मिलता है कि इच्छा की शक्ति से सबकुछ संभव है।

मनुष्य का मस्तिष्क असीम संभावनाओं से भरा हुआ है। इस संसार में कोई भी ऐसी वस्तु मनुष्य के लिए अप्राप्य नहीं है। परन्तु यह इस बात पर निर्भर करता है कि इन्हें पाने के लिए कोई कितना संकल्पित हैं।

महत्त्वपूर्ण यह है कि आपको क्या चाहिए! और आपको जो चाहिए, संकल्प की शक्ति की मात्रा जितनी होगी, उसी मात्रा में आपमें प्रयत्न की शक्ति होगी। और जो प्रयत्नशील होते हैं, अपने इच्छाओं को पूर्ण करने में सफल भी होते हैं।

दार्शनिक दृष्टि में इच्छा की शक्ति का अर्थ!

गहराई से अगर विचार करें तो क्या इच्छा की शक्ति मनुष्य के जीवन को सुखी कर सकता है? अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए संकल्पित होकर भी कोई संतुष्ट नहीं हो सकता। मन तो मन है, इसे इच्छाधारी की संज्ञा दी गई है। मन में इच्छाओं का आना स्वाभाविक है। परन्तु मन की सभी इच्छाएं कभी किसी की पूरी नहीं हो सकती। इच्छा की शक्ति के द्वारा मनुष्य वह सबकुछ प्राप्त कर सकता है, जिसके लिए वह संकल्पित होकर कार्य करता है।

आम धारणा यही हैं कि सफलता के लिए संकल्प का होना जरूरी है। हर कोई सफल होना चाहता है, और इसलिए विभिन्न उद्देश्यों को लेकर कार्य करता है। इस धन-दौलत, पद-प्रतिष्ठा, कला-कौशल आदि अर्जित कर शक्तिशाली होना चाहता है। किसी न किसी रूप में शक्ति प्राप्त करना ही मनुष्य का उद्देश्य है। परन्तु इच्छा की शक्ति के द्वारा मनुष्य खुद के इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं कर पाता।

मन रे! चिंता तो तेरे आदत में है
पर चिंतन भी तेरे जरूरत मेंं है
त्याग दो अपने इस आदत को
खोजो रे मन सुख का आधार
सुख-चैन से है जीना या
रहना है तुझको बेचैन
सबकुछ है तुम्हीं पर निर्भर
मन रे! खोलो अपने नैन !

मन पर कविता
संकल्प या समर्पण !

इच्छा की शक्ति ही वह शक्ति है जो साधारण मनुष्य को विभिन्न कर्मों में प्रवृत करता है। परन्तु इसके उलट इच्छाओं का त्याग करने की इच्छाशक्ति जबतक उसके भीतर जागृत नहीं होती वह असाधारण नहीं हो सकता। मनुष्य के सामने दो ही विकल्प हैं ; संकल्प का या फिर समर्पण का। जो संकल्प के मार्ग पर चलता है, वह मनोगामी होता है। और जो समर्पण के मार्ग पर चलता है वह आत्मदर्शी हो जाता है। अपने इच्छा की शक्ति के द्वारा मनुष्य महान बनना चाहता है। परन्तु महानता तो मनुष्य के छिपी हुई रहती है। मनोगामी मनुष्य इस भीतर के शक्ति से अनभिज्ञ रहता है। मनुष्य शारिरीक एवम् मानसिक रुप से चाहे जितना शक्तिशाली हो जाए, आत्मशक्ति को जागृत किए बिना वह सुखी नहीं हो सकता। 

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