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चरित्र का निर्माण जरूरी क्यों है —

चरित्र उन सारे प्रवृतियों का योग है, जो व्यक्ति में होती है। यह व्यक्ति के दृष्टिकोणों और व्यवहार के तरीकों का पूर्ण मिश्रण है।

मनुष्य अपनी इन्द्रियों को जिस तरह से व्यवहार में लाता है, इन सभी क्रियाओं का समष्टि है चरित्र। यह किसी व्यक्ति की विश्वास, मूल्य, सोच-विचार और व्यक्तित्व का मेल होता है। चरित्र को धन और मान से भी उच्च माना गया है।

वृतं यत्नेन संरक्षेद वित्तमेति च याति च।

अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वित्ततस्तु हतो संत:।।

चरित्र की बलपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता जाता रहता है। धन के नष्ट होने पर चरित्र सुरक्षित रहता है, लेकिन चरित्र के नष्ट होने पर सब-कुछ नष्ट हो जाता है।

चरित्र का निर्माण जरूरी है …

चरित्र मन की वह मंशा है जब यह सोचता है कि उसे कोई देख नहीं रहा। जब आपको कोई देख न रहा हो तब आप जैसा आचरण करते हैं, वही आपके सही चरित्र को दर्शाता है। अगर आप लोगों की उपस्थिति में सही आचरण दिखाते हैं तो, यह आपके परिपक्व होने की निशानी है! नाकि चरित्रवान होने की।

चरित्र का आकलन; कार्य और व्यवहार से होता है

जीवन में किये गये कार्यों या आचरणों का स्वरुप, जो किसी की योग्यता का सूचक होता है। और योग्यता से चरित्र का निर्माण होता है। चरित्र की रक्षा किसी भी अन्य धन की रक्षा से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। चरित्रवान वो है, जो अपने उत्तरदायित्वों को समझता है और हर हाल में उसका निर्वहन करता है।

परिस्थिति एक पर चरित्र भिन्न होते हैं

एक पौराणिक कथा है। प्रचीन काल में विद्या अध्ययन के लिए गुरुकुल अर्थात गुरु का आश्रम हुवा करता था। एक महर्षि के आश्रम में कुछ शिष्य शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। एक दिन गुरुदेव ने कहा गुरुदेव ने सभी शिष्यों से कहा कि आप सभी अपने-अपने घरों में जायें और मेंरे लिए कुछ ना कुछ सामग्री लेकर आयें। परन्तु ध्यान रहे जो भी वस्तु आप लेकर आयें, किसी की नजर न पड़े।

गुरु की आज्ञा थी, सभी को उसका पालन करना जरूरी था। सभी शिष्य अपने अपने घरों की ओर चल दिये। मौका देखकर घरवालों से छुपाकर जिन्हें जो मिला वो लेकर सभी आश्रम लौट आये।

सबों ने अपनी-अपनी सामग्री गुरु के समझ रख दिया। परन्तु एक शिष्य जो खाली हाथ लौटा था, चुपचाप खड़ा था। गुरु जी ने उसे आज्ञा की अवहेलना के लिए पहले तो दंडित किया। फिर बाद में उससे कुछ नहीं लेकर आने का कारण पूछा।

उस शिष्य ने कहा; गुरुजी मैं भी कुछ ना कुछ लाना चाहता था। पर आपने कहा था कि तभी कोई वस्तु लाना जब कोई देखे नहीं। मैने बहुत कोशिश की, परन्तु मुझे अवसर नहीं मिला। मैं जब भी किसी वस्तु को उठाता मुझे लगता कि कोई नहीं परन्तु मैं तो देख ही रहा हूं। बस यही कारण रहा कि मैं कुछ नहीं ला सका। मुझे महसुस हुवा कि अगर मैं कुछ भी वस्तु लेकर आया तो आपकी आज्ञा की अवहेलना होगी। गुरुजी उसके समझ और चरित्र से प्रभावित हुवे और उसे गले से लगा लिया।

सफलता के लिए चरित्रवान होना जरूरी है

सफलता पाने का कार्य पड़ाव दर पड़ाव तय किया जाता है। इस कार्य में कई छोटे-बड़े लक्ष्य शामिल होते हैं। सफलता और सुख इन दोनों की परिभाषा प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है। कोई बहुत सारे पैसे कमाने को तो कोई पद प्रतिष्ठा अर्जित करने को सफलता मानता है। संक्षेप में कह सकते हैं कि किसी निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति करना ही सफलता कहलाती है।

सच्ची सफलता पाने के लिए व्यक्ति का चरित्रवान होना आवश्यक है। सच्ची सफलता! अर्थात् एक ऐसे उद्देश्य की प्राप्ति जो, हमारे साथ साथ समाज के लिए कल्याणकारी हो। जिसकी प्राप्ति हमें हर प्रकार की संतुष्टि दे सके। जिसे पाने के बाद किसी अन्य चीज को पाने की इच्छा न रहे। ऐसे लक्ष्य की प्राप्ति ही सफलता कहलाती हैं। 

चरित्रवान होने की विशेषताएं …

चरित्र के विना व्यक्ति का जीवन वैसा ही है जैसे विना रीढ़ की हड्डी के शरीर का होता है। कठिनाइयों को जीतने, वासनाओ का दमन करने और दुखों को सहन करने से चरित्र निर्मल होता है। हमें अपने चरित्र को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। आइए जानते हैं कि एक चरित्रवान व्यक्ति में कौन कौन से गुण होते हैं।

आत्मनियंत्रण

अच्छे चरित्र के व्यक्ति में आत्मनियंत्रण का गुण होता है। उसे अपने विचारों, व्यवहारों, इच्छाओं, भावनाओं आदि पर अधिकार होता है। वह कठोर परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होता।

विश्वसनीयता

अच्छे चरित्र के लोगों में विश्वसनीयता का गुण होता है। और प्रत्येक परिस्थिति में उसका विश्वास किया जा सकता है। चरित्रवान व्यक्ति हमेशा किसी सिद्धांत के आधार पर कार्य करता है। वह किसी क्षणिक विचारों के कारण विचलित नहीं होता।

कार्य में दृढ़ता और कर्म निष्ठा

चरित्रवान जिस कार्य को आरंभ करता है, उसे समाप्त अवश्य करता है। वह न तो उसे अधुरा छोड़ता है और न ही स्थगित करता है। वह प्रत्येक कार्य को पूर्ण परिश्रम और लगन से करता है। कार्य सरस हो या निरस वह उसे करने में किसी प्रकार की ढील नहीं देता।

मनसा वाचा कर्मणा

अच्छे चरित्र के व्यक्ति के मन, वचन और कर्म में छल प्रपंच की छाया भी नहीं होती है।

उत्तरदायित्व की भावना

वह महान कष्ट झेलकर भी अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करता है। चरित्रवान लोग अपनी मानसिक शक्तियों का अधिकतम प्रयोग करते हैं।

चरित्र पर अनुकरणीय विचार

मनुष्य चरित्र का वह वस्त्र है जो विचारों के धागों से बनता है। – जेम्स ऐलन

चरित्र वृक्ष के समान होता है और यश उसकी छाया के समान। अंत: हम किसी बिषय में सोचते हैं वह तो छाया है, वास्तविक वस्तु तो वृक्ष है। – अब्राहम लिंकन

जिस मनुष्य को अपने पर काबु नहीं है, वह दुर्बल चरित्र वाला है। वह उस सरकंडे के समान है जो वायु के झोंको पर झुक जाता है। – कन्फ्युशियस

चरित्र निर्माण का अर्थ है स्वयं को अनुशासित, संगठित और व्यवस्थित करना। – आचार्य वेदांत तीर्थ

श्वांस की क्रिया के समान हमारे चरित्र में एक ऐसी सहज क्षमता होनी चाहिए जिसके बल पर जो कुछ प्राप्य है वह अनायास ग्रहण कर लें और जो त्याज्य है वह बिना क्षोभ के त्याग सकें। – रविन्द्रनाथ टैगोर

चरित्रवान बनो संसार स्वयं तुम पर मुग्ध होगा। फूल खिलने दोगे तो मधुमक्खियों स्वत: ही चली आयेंगी। – रामकृष्ण परमहंस

3 thoughts on “चरित्र का निर्माण जरूरी क्यों है —”

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