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ईर्ष्या या बैर !!

ईर्ष्या या बैर मन के भाव हैं। ईर्ष्या में जलन का भाव है, और बैर में शत्रुता का भाव है। दोनों ही नकारात्मक भाव हैं, परन्तु भिन्न भिन्न स्वरुप में परिलक्षित होते हैं। वस्तुत: ईर्ष्या का ही परिवर्तित रुप बैर है। जब किसी किसी की उन्नति देख मन आहत हो, तो यह भाव ईर्ष्या है। …

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वाणी की प्रकृति!

वाणी की प्रकृति का आशय क्या है? वाणी मुख के बोल हैं, मुख से प्रगट होनेवाले शब्दों से जो ध्वनि उत्पन्न होती है, वाणी की संज्ञा दी गई है। मनुष्य के तन में जो इंद्रियां हैं, वो मन के अनुसार कार्य करती हैं। मन जो चाहता है, जैसा चाहता है, वही करना पसंद करता है। …

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एकांत और अकेलापन!

एकांत और अकेलापन एक दुसरे जुड़े हुवे शब्द हैं। एकांत एक स्थिति है, और अकेलापन एक भाव है। एकांत ‘एक’ और ‘अंत’ दो शब्दों का मेल है। अंत का आशय है नष्ट होना, विलुप्त होना, समाप्त हो जाना। तो फिर इस युग्म शब्द का अर्थ क्या है? क्या एकांत का आशय एक का अंत होना …

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देख-भाल का अर्थ क्या है?

सामान्यतः देख-भाल का आशय किसी का ख्याल रखना समझा जाता है। देख एक क्रियात्मक शब्द है। देख का आशय किसी को देखने, निहारने की क्रिया से है। एक शब्द है संभाल, जिसका अर्थ है सहेज कर रखना। संभाल में भाल शब्द जुड़ा हुआ है, भाल के साथ सम उपसर्ग लगा हुवा है। सम का आशय …

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ज्ञानी भुगते ज्ञान से ।।

देह धरे का दंड है, सब काहु को होय।ज्ञानी भुगते ज्ञान से, अज्ञानी भुगते रोय।‌। कबीर के उक्त दोहे का शाब्दिक अर्थ है कि देह धारण करने का दंड हर किसी को भोगना पड़ता है। परन्तु ज्ञानी इसे ज्ञान से भोगते हैं और अज्ञानी रोते-चिल्लाते हुवे भोगते हैं।  देह धरे का आशय जन्म लेने से …

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अति भला न बोलना..!

अति का आशय है जरूरत से ज्यादा, आवश्यकता से अधिक। जितना जरुरी है, उससे अधिक अधिक घटित होना अति है। जरुरत से ज्यादा कभी भी, कुछ भी अच्छा नहीं होता। यह बात हरेक कार्य-व्यवहार, घटनाक्रम पर लागु होता है। अति का परिणाम हमेशा दुखदाई होता है।  यह शब्द हमें संयमित जीवन जीने को सचेत करता …

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एकै साधे सब सधै

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।रहिमन मूलहिं सीचिबो, फूलै फलै अघाय।। उक्त दोहा कवि रहीम का है। दोहे का शाब्दिक अर्थ है- एक कार्य को पूरा करो तो बाकि सभी कार्य पूरे हो जाते हैं। और एक साथ अनेक कार्यों में लगे रहने से कोई भी कार्य सही ढंग से पूरा नहीं हो …

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एकाग्रता का अर्थ!

सांसारिक जीवन में भी मन की एकाग्रता महत्वपूर्ण है। परन्तु यह व्यक्तिगत प्रयास और प्रयास की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। जो किसी वांछित चीज को पाने का पुरे मन से प्रयास करते हैं, उसे पा भी लेते हैं।

व्यक्ति और व्यक्तित्व!

व्यक्ति का शाब्दिक अर्थ है, जो व्यक्त होता हो। जिसके पास व्यक्त होने के लिए बुद्धि, विचार, व्यवहार जैसी कुछ विशेषताएं हों। व्यक्ति से जो व्यक्त होता है, उसी से उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

जीवन असत्य है ..!

जीवन असत्य है, यह समझने का विषय है। जीवन का सच क्या है? यह जो सवाल है, अनेकों सवालों को खुद में समेटे हुए है। लेकिन साधारण मनुष्य के पास इन सवालों का जबाब नहीं है।

ध्येय का अर्थ !!

ध्येय वह है जो ध्यान के योग्य है। अब प्रश्न यह उठता है कि ध्यान के योग्य कौन सा विषय है? इसे जानना स्वयं में ध्येय है, अर्थात् ध्यान के योग्य है।