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चिंता से मुक्ति कैसे पाएं!

चिंता से मुक्ति! अर्थात् अपने बुद्धि को उस स्तर पर ले जाना, जहां चिंता हमें ग्रसित न कर सके।  चिंताग्रस्त रहना किसी को भी अच्छा नहीं लगता। पर किसी न किसी वजह से सभी इसके जाल में उलझे रहते हैं। यह जो चिंता है! एक मान्सिक स्थिति है। जीवन में जब असहज स्थितियां उत्पन्न होती हैं, तो मन में एक भाव आता है। यह जो भाव है! इसे चिंता कहा जाता है। इस भाव में भय, संशय, तनाव, घबराहट जैसे अन्य मनोभावों का समावेश होता है।

चिंता से मुक्त होने के उपाय!

हर किसी के जीवन में जब कुछ अनचाहा घटित हो, तो चिंता का आना स्वाभाविक है। परन्तु स्थिति तब गंभीर होने लगती है, जब कोई इसके चपेट में आ जाता है। दीर्घ काल तक अगर कोई चिंताग्रस्त रहने लगे, तो तन-मन पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगता है। चिंता चिता है! यह मन-मस्तिष्क को ग्रसित न कर सके, इसके लिए सचेत रहने की जरूरत है। इस अगन से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए। इसकी अवसाद रुपी ज्वाला बुद्धि-विवेक को जलाकर भस्म कर देती है। 

चिंता का कारण को जानना!

चिंता से भयभीत नहीं होना है, यह जो भाव है, हर किसी को सताती है। अगर इससे मुक्त नहीं हुवा जा सकता है, पर कम तो किया ही जा सकता है। परन्तु इसके लिए यह जानना जरूरी है कि आपकी चिंता का कारण क्या है? पर्याप्त धन उपलब्ध न होना, पद-प्रतिष्ठा में कमी आदि इसके अनेक कारण हो सकते हैं। चिंता का कारण अगर ज्ञात हो, तभी इससे मुक्त होने का प्रयास किया जा सकता है।

धैर्यवान बनें! 

अगर कुछ अनचाहा हो जाए जीवन में अथवा कोई चाहत पुरी न हो सके। तो इन परिस्थितियों में धीरज बनाए रखिए। सबकुछ हमारे नियंत्रण में नहीं होता और समय से पूर्व कुछ नहीं होता। हम जीवन की गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं कर सकते। इसलिए यह मानकर चलें कि जो हुवा वह अच्छे के लिए हुवा होगा। और जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। 

अपमान के भावना का निषेध करें!

अगर कोई आपका अपमान करे तो तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देना चाहिए। अगर किसी  के द्वारा बार बार ऐसा किया जाता हो, तो कारण का पता करें, फिर उसका प्रतिकार अवश्य करना चाहिए। क्योंकि अनावश्यक अपमान सहन करने से आपके मनोबल पर असर पड़ सकता है। या तो इसपर बिल्कुल ध्यान न दें या फिर सशक्त होकर इसका प्रतिकार करें। 

वर्तमान में जीना सीखें!

बीते समय की बातों, घटनाओं को, जो आपको चिंतित करते हों, उन्हें भूल जाना ही उचित है। उन घटनाओं को याद करने से, उन बातों को बोलने, सुनने से मन व्यथित होता है। भूल पाना कठिन हो सकता है, परन्तु ऐसी घटनाओं के संबंध में बिल्कुल चर्चा न करें। वर्तमान में जीना सीखें और कल क्या होगा, इस बात पर भी न जाएं। यह बात हमेशा याद रखें कि होनी -अनहोनी पर आपका कोई नियंत्रण नहीं होता।

खुद पर विश्वास बनाए रखना!

अगर किसी भी बाहरी कारण से मन आहत हो। स्वयं के अथवा किसी और के कार्य-व्यवहार से  मन को ठेस लगे तो इसे गहराई से नहीं लेना चाहिए। इससे भीतर की ऊर्जा का क्षरण होता है। और भीतर कमजोर पड़ जाने से खुद पर संदेह होने लगता है। फिर अपने चारों ओर एक संदेहास्पद स्थिति व्याप्त हो सकता है। इसलिए किसी भी परिस्थिति आत्मविश्वास को बनाए रखें। 

हमेशा संतुष्ट रहने का प्रयत्न करें!

मन में संतोष धारण करने से जीवन सरल हो जाता है। यह एक उत्कृष्ट धारणा है! अपनी जरुरतों को कम करने से चिंता में भी ह्रास होता है। हमें ये चाहिए, हमें वो चाहिए! जो कुछ भी उपलब्ध हो, उसी में संतुष्ट रहना एक तपस्या है। वैसे भी ऐसा एक सच है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। और वह सच है मौत का सच! मरना सभी को है, मरते सभी हैं। ना कोई कुछ लेकर आता है और न कुछ लेकर जाता है। तो फिर इस पाने खोने की चिंता में लगे रहना व्यर्थ है।

मनोगामी बनने से खुद को रोकें!

चिंता का संबंध बुद्धि से है। बुद्धि का मनोगामी होना ही चिंताजनक है। मन का जो स्वभाव है, अपनी कामनाओं को तृप्त करने में लगा रहता है। अपनी विभिन्न प्रकार की लालसाओं को पाने के लिए वह चिंतित रहता है। और नहीं मिलने पर अधिक चिंताग्रस्त हो जाता है। किसी के भी चिंतित होने का मुख्य कारण यही है।

अगर बुद्धि मन के स्वभाव के विपरीत कार्य करने में सक्षम हो, तो चिंता से मुक्ति संभव है। इसके लिए मन में कुछ उत्कृष्ट भावों को धारण करने की जरूरत पड़ती है। 

ईश्वर का सानिध्य महसूस करें!

सामान्य व्यक्ति रिश्तों को, मित्र को, दुश्मन को सबको मानता है। प्रत्यक्ष रूप से जिस किसी से भी उसका संबंध हो, मन-मस्तिष्क में उन्हीं को बसाये रखता है। अपने आसपास जो माहौल वह बनाता है, उसी में जी रहा होता है। लेकिन ईश्वर पर भरोसा नहीं कर पाता, क्योंकि यह दिखता नहीं है। हर कोई यह तो चाहता है कि उसका जीवन सरल हो। लेकिन सरलता का जो मार्ग है, ईश्वर का सानिध्य प्राप्त करने का मार्ग, उस पर नहीं चल पाता। 

ज्ञान के मार्ग पर चलकर ही चिंता से मुक्ति संभव है। बुद्धिमता पूर्ण जीवन जीने का प्रयास कर चिंता को कम किया जा सकता है। परन्तु मन पूर्णतः: चिंतारहित हो, इसके लिए ज्ञान के मार्ग पर चलना पड़ता है। संसार के प्रति आसक्त होकर चिंता से मुक्ति नहीं मिल सकती। इसके लिए भीतर की यात्रा करनी पड़ती है। ज्ञान का संचार हो इसके लिए योग का अभ्यास करना जरूरी है। योगाभ्यास से तन-मन संयमित होता है। निरंतर अभ्यास करने से मन भीतर की ओर प्रवेश करने लगता है। जब मन स्थिर हो जाता है तो ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है।

अगर कोई व्यक्ति निरंतर किसी साधना का अभ्यास करता है तो भीतर के ऊर्जा का विकास होने लगता है। जब कोई भीतर से सबल हो जाता है तो सजग भी हो जाता है। अर्थात् उसके भीतर चेतना का विकास होने लगता है। धीरे धीरे उसका मन कामनाओं से मुक्त होने लगता है और फिर पूर्णतः खाली हो जाता है। फिर किसी प्रकार की चिंता उसे नहीं सताती, यह चिंता से मुक्ति की अवस्था है। ज्ञान की अवस्था है, इस अवस्था को जो प्राप्त कर लेते हैं, उनसे जो कर्म होते हैं, निष्काम होते हैं। 

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