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धैर्य रखना जरूरी क्यों है —

धैर्य रखना जरूरी क्यों है? यह जानने से पहले यह विचार करना होगा कि धैर्य क्या है? एक सोच, एक विचार या एक अवधारणा! आइए जानने का प्रयास करते हैं कि धैर्य क्या है? धैर्य पर विचार जरूरी है! धैर्य या धीरज का आशय है कि जहां हम हैं, जिस स्थिति में हैं, अगर वह मनोनुकूल ना भी हो तो हम  बैचेन न हों। वहां से बाहर निकलने की तत्परता तो हो, परन्तु शीघ्रता न हो। कठिन समय को इस मंशा के साथ व्यतित करना कि समय आने पर सब ठीक हो जाएगा। या फिर जो कुछ भी छिपा हुआ है, एक दिन स्वत: हमारे समक्ष उपस्थित हो जाएगा। प्रतीक्षा करनेवाला व्यक्ति ही धैर्यवान होता है। 

धैर्य मन का वह गुण है जिसके होने से मनुष्य विपत्ति के समय भी विचलित नहीं होता है। धैर्य कठिन परिस्थितियों में भी व्यक्ति की सहनशक्ति की अवस्था है। ऐसी अवस्था जो व्यक्ति के मन को क्रोध अथवा खीझ जैसी अवगुणों के प्रभाव से बचाती है। यह नकारात्मकता के पहले की अवस्था है जो मनुष्य के सहनशक्ति के स्तर को दर्शाता है। दीर्घकालीन समस्याओं से घिरे होने के कारण व्यक्ति को जो कष्ट, दबाव या तनाव का सामना करना पड़ता है। इन विषम परिस्थितियों से बाहर निकलने के लिए धैर्य की जरूरत होती है। यह गुण मनुष्य को मानसिक रूप से मजबूत बनाता है।

धैर्य रखना जरूरी है:

धैर्य रखना जरूरी है! क्योंकि यह ऐसा सवारी है, जिसपर सवार होकर शान्त भाव से सवारी किजिए, तो यह आपको कभी भी गिरने नहीं देगा। यह सवाल को कभी कोई नुकसान नहीं होने देगा। आपकी महत्वाकांक्षाओं एवम् संसार में उपलब्ध हर भौतिक संसाधनों से आपको चोट पहुंच सकती है। किन्तु धैर्य की सवारी आपको कभी चोट नहीं पहुंचा सकती। धैर्य की सवारी करते करते आपमें विवेक जागृत होता है और विवेक योजना का सृजन करता है। फिर समयांतराल में योजना कार्य में प्रवृत हो जाता है। योजनाबद्ध तरीके से किया गया कार्यों का परिणाम हमेशा सकारात्मक है। यह ऐसा फल है, जिसका स्वाद कड़वा होता है लेकिन अत्यंत लाभकारी है।

धैर्य ही ऐसी शक्ति है, जो मानव के आत्मा को सबल बनाता है। किसी कार्य के प्रारंभ से लेकर प्रतिफल प्राप्त होने तक धीरज रखना महत्वपूर्ण हो जाता है।  जो धैर्यवान होते हैं, उन्हें वह सबकुछ हासिल होता है जिसके लिए वह प्रयासरत होते हैं। अतः मनुष्य के जीवन में धैर्य का होना जरूरी है।

धैर्यवान होना एक विशेषता है:

धैर्य को धारण किये रहना सरल नहीं है, पर धैर्यवान को अनेक प्रकार से इसका लाभ होता है। धैर्यवान होना एक विशेषता है और इसे विकसित होना चाहिए। हम जो अपना आंतरिक संतुलन खोते हैं वो इसलिए खोते हैं, क्योंकि हमारा मन भटक जाता है। यह एक अवधारणा है, इसे धारण करना चाहिए। जब हमारा मन धैर्य के नींव पर टिक जाता है तो फिर उसका अभाव मिट जाता है।

धैर्यवान होने का अर्थ सरलता के साथ कार्य करना और परिणाम आने का इंतजार करना है। उतावलापन का आशय जल्द से जल्द परिणाम पाने की कोशिश करना है। प्रत्येक मनुष्य को धैर्य के साथ ही किसी भी काम को पूरा करना चाहिए। किसी भी काम में जल्दबाजी करना त्रुटिपूर्ण होता है। जल्दबाजी के चक्कर में नुकसान उठाना पड़ सकता है। अतः किसी भी काम को करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

धैर्यशीलता का आशय हर परिस्थिति में समभाव बनाये रखना होता है। धैर्यवान वह होता है, जिसके मन में स्थिरता हो, गंभीरता का भाव हो! धैर्य का उत्कृष्ट रूप हमें समन्दर में दिखता है। अथाह जलराशि वाले सागर का बहाव इतना धीमा होता है कि देखनेवाले को पता ही नहीं चलता। जबकि उतावलापन यानि अधीरता उथली नदियों के बहाव की भांति है।

धैर्यवान होने का अर्थ सरलता के साथ कदम उठाना और परिणाम का प्रतिक्षा करना है। ज़िन्दगी के किताब में धैर्य का कवर होना बहुत जरूरी है, क्योंकि वही हर पन्ने को बांधकर रखता है। धैर्य रखना बहुत कठिन है, परन्तु अभ्यास से सब सरल हो जाता है, इसे कभी टुटने मत दें। हर असफलता में कुछ अच्छाई छिपी होती है, जो तत्काल समझ में नहीं आती। समय बीतने के साथ वह प्रत्यक्ष हो जाता है।

कबीरा धीरज के धरे हाथी मन भर खाये।
टुक एक के कारने स्वान घरै घर जाय।।

संत कबीरदास कहते हैं; हाथी स्थिर होकर, धीरे-धीरे अपना भोजन करता है और मन भर कर खाता है। जबकि कुत्ते को एक-एक टुकड़ा के कारण घर घर जाना पड़ता है। अपने लालच और चंचलता के कारण उसे दर दर भटकना पड़ता है, फिर भी उसका मन नहीं भरता। 

सबकुछ समय के अनुकूल होता है:

समय अपने गति से चलता है! हम समय को अपने अनुसार नहीं चला सकते। भाग्य अर्थात् प्रारब्ध! जिसे हम जन्म के साथ लेकर इस संसार में आते हैं। किसको क्या मिला है और क्या मिलेगा ये किस्मत की बात है।

विकास की प्रत्येक प्रक्रिया एक निश्चित समय लेती है। किसी भी कार्य को सम्पन्न होने में वक्त लगता है। उतावला होकर, अधीर होकर कोई काम नहीं करना चाहिए। गीदड़ के जल्दबाजी के कारण कभी बेर नहीं पकते। बीज को अंकुरित होने, पेड़ के रुप में विकसित होने और फिर उसमें फल लगने में वक्त लगता है। बीज एक दिन में पेड़ नहीं हो सकता है।

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जानकारों ने धैर्य के महत्व को अच्छी तरह से समझा था। उन्होंने प्रकृति के इस सिद्धांत से अपने जीवन के सिद्धांत को निकाला है। उनका कहना है कि जो कुछ भी होता है, वह समय के अनुकूल ही होता है। अतः हमें शान्त भाव से अपना काम करना चाहिए और धैर्यपूर्वक परिणाम का इंतजार करना चाहिए।

धीरे धीरे रे मना धीरे सबकुछ होय।
माली सींचै सौ घड़ा ऋतु आये फल होय।।

संत कबीर कहते हैं, कि सब काम धीरे-धीरे और समय आने पर ही संपन्न होता है। माली के सौ घड़ा पानी से सींचने पर भी फल ऋतु के आने पर ही लगते हैं।

कारज धीरे होत है काहे होत अधीर।
समय आय तरूवर फलै कौतुक सींचौ नीर।।

कवि वृन्द ने इसे अपने तरीके से समझाया है; समय आने पर ही पेड़ में फल फूल लगते हैं। अतिरिक्त प्रयास करना निरर्थक होता है। ‌‌‌पेड़ की जड़ो को अधीर होकर चाहे जितना भी सींचो, पेड़ समय आने पर ही फल देता है। 

एक कुशल माली की तरह धैर्यवान बनिए!

एक कुशल माली होने का भी अलग आनंद है, हर कोई बागवान बनना चाहता है। बाग में सुन्दर, सुगंधित फूलों के पौधे हों, स्वादिष्ट फलों के वृक्ष हों, यह सोचना गलत नहीं है। परन्तु वास्तव में ऐसा ही हो इसके लिए एक कुशल माली बनना पड़ेगा। कुशल माली से हमारा तात्पर्य उस माली से है जो अपने कार्य को पुरे लगन एवम् धैर्यपूर्वक करता हो। अपने कर्त्तव्य के प्रति जवाबदार भी हो और सहज भी। बीज रुपान्तरित होकर वृक्ष बनता है और उसमें फल फूल लगते हैं, इसी में उसकी सार्थकता है।  पर इस पुरी प्रक्रिया में माली का कोई वश नहीं चलता, उसका सिर्फ योगदान होता है। माली का कर्त्तव्य है; अपने कर्म को करते रहना और विना अधीर हुुुवे फल-फूल लगने का इंतजार करना ।

धैर्य की परीक्षा  प्रतिकुल परिस्थितियों में होती है!

कई बार ऐसा भी होता है कि माली बीज बोता है, पर बीज अंकुरित नहीं हो पाता। अगर अंकुरित हुआ भी तो पेड़ के रुप में विकसित नहीं हो पाता। अगर वृक्ष बन भी गया तो उसमें फल-फूल नहीं आते। जीवन में कई बार ऐसा होता है, कि हमें किसी कार्य विशेष का अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाता है। 

कई बार ऐसा होता है, कि सबकुछ करने के बाद भी अगर सफ़लता ना मिले तो मन निराश हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में हम असहज होने लगते हैं। और हमारा धैर्य टुटने लगता है। सफलता के लिए धैर्य रखना जितना जरूरी है, असफलता के बाद  उसे अधिक धैर्य रखने की जरूरत है। जैसे सोना अग्नि में चमकता है, वैसे ही धैर्यवान विपत्ति में दमकता है। हर असफलता में कुछ अच्छाई छिपी होती है, वो तुरंत नहीं दिखती। धैर्य रखने से समय उसे अवश्य दिखाता है।

समस्या कोई भी हो, धैर्यपूर्वक ही उसका समाधान किया जा सकता है। यह सहनशीलता की ऐसी अवस्था है, जो व्यक्ति के कार्य-व्यवहार को नियंत्रण में रखता है। यह धैर्य ही है, जो व्यक्ति को नकारात्मकता से रक्षण करता है। कठिन समय में यह विश्वास दिलाता है कि आनेवाला कल बेहतर हो सकता है। प्रस्तुत है अनुभवी व्यक्तियों की कही धैर्य पर विचार, जो सबके लिए लाभप्रद हो सकता है।

धैर्य पर महापुरुषों के विचार:

धैर्य सफलता का एक प्रमुख घटक है। _ बिल गेट्स

धैर्य रखिये आसान बनने से पूर्व सभी चीजें कठिन होती हैं। _ शेख सादी

हमारे असली आशिष हमें दर्द और निराशा के रूप में दिखते हैं, लेकिन हमें धैर्य रखना चाहिए, कुछ समय पश्चात् उन आशिषों का सही परिणाम दिखने लगता है। हम उन्हें अच्छे रूप में देख सकते हैं। _ जॉसेफ एडीसन

अगर दुनिया में केवल खुशी होती तो हम कभी बहादुर होना और धैर्य के साथ रहना नहीं सीख पाते। _ हेलेन केलर

सभी महान उपलब्धियों के लिए धैर्य की जरूरत होती है। _ माया एन्जेलो

धैर्य और समय दो शक्तिशाली योद्धा हैं। _ टॉलस्टोय

जिसके पास धैर्य है, वह जो चाहे वह पा सकता है। _ बेंजामिन फ्रैंकलिन

ऐसे लोगों को खोजना आसान है, जो मरने के लिए तैयार हो, बजाए उनके जो धैर्य के साथ दर्द सहने के लिए तैयार हों। _ जुलियस सीजर

धीरज सारे सुखों और शक्तियों का मूल है। _ जॉन रसकिन

धैर्य हर समस्या का हल है। _ प्लेटो

धैर्य और भाग्य हर चीजों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। _ एमर्सन

धैर्य कड़वा है लेकिन उसका फल मीठा है। _ अरस्तु

एक धैर्यवान व्यक्ति सामान्य परिस्थितियों में अपना धीरज नहीं खोता है। _ चाणक्य

“विकार हेतो सति विक्रियंते येषां न चेतांसि तं एव धीरा:।”

वास्तव में वही व्यक्ति धैर्यवान है, जिसका मन विकार उत्पन्न करनेवाली परिस्थिति में भी विकरीत नहीं होता। _ कालीदास

बहुत गयी थोड़ी रही व्याकुल मन मत होय।धीरज सबका मीत है करी कमायी न खोय।।

संत कबीर के उक्त दोहे का भावार्थ है कि संचित धन अगर खो भी गया, तो हताश नहीं होना चाहिए। अगर बहुत कुछ खो गया हो, थोड़ा ही बचा रहे, तो व्याकुल होने की जरूरत नहीं है। इस परिस्थिति में व्याकुल ना होकर यह सोचना कि यह कठिन समय एक दिन अवश्य निकल जायगा।  जो बचा है, उसे बचाने रखने का धैर्यपूर्वक प्रयास करना चाहिए। कठिन परिस्थितियों में धैर्य ही हमारा सबसे बड़ा मित्र है।

रहिमन चुप ही बैठिये, देख दिनन का फेर।जब निकै दिन आइहैं, बनत बात नहीं बेर।।

रहीम कवि के इस दोहे का भावार्थ है ; जीवन में सुख और दुख का आना-जाना लगा रहता है। अगर खराब दौर से गुजरना पड़े तो चुप बैठना ही उचित है। धीरज धारण कर मनुष्य संकट से पार पा जाता है। खराब समय भी गुजर जाता है और जो बिगड़ गया है वह सुधर भी सकता है। यदि संकट की स्थिति में वह व्याकुल हो गया, तो अच्छे समय आने तक वह पुर्ण रुप से हताश हो सकता है। अतः मन में धैर्य धारण करना और सही समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। लक्ष्य की प्राप्ति तक प्रतीक्षा करने का सामर्थ्य अगर न हो सभी प्रयास विफल हो जाते हैं।

जीवन में धैर्य का होना महत्त्वपूर्ण है।

मनुष्य के जीवन में कर्म महत्त्वपूर्ण है। अगर आपके कर्म अच्छे हुवे हैं तो उसके परिणाम भी अच्छे होंगे। हमें पुरी श्रद्धा एवम् धैर्य के साथ कर्म में प्रवृत रहना चाहिए। सतत् प्रयत्नशील रहना चाहिए। 

आज के समय में हमारे जीवनशैली में जो बदलाव हुवे हैं। इसके कारण हमारी जरुरतें बढ़ी हैं। और इन जरुरतों को पुरा करने के प्रयासों में भी वृद्धि हुवी है। परन्तु जीवन के इस आपाधापी में धैर्य रखने की प्रवृति में ह्रास होता जा रहा  है। आज के समय में धैर्य रखना कोई सरल कार्य नहीं रह गया है। और इसका प्रमुख कारण है जीवन में ध्यान का न होना। अगर सफलता के लिए धैर्य महत्त्वपूर्ण है, धैर्य पर विचार जरूरी है। तो मन की स्थिरता के लिए जीवन में ध्यान का होना भी जरूरी है। 

ध्यान के अभ्यास से मन शांत और स्थिर हो जाता है। और शांत एवम् स्थिर मन में धैर्य को धारण करना सरल हो जाता है। ध्यान और धैर्य जीवन रुपी नैया के दो पतवार हैं। नदी पार करते समय नाविक के दोनों हाथों में दो पतवार होते हैं। एक छोर से दूसरे छोर तक नाव को ले जाने के लिए वह दोनों हाथों से पतवारों को चलाता है।  केवल एक का प्रयोग करने से नाव आगे नहीं बढ़ती। ऐसे में नाव मझधार में ही फंस जायगा। 

मनुष्य के जीवन रुपी नाव के एक ध्यानरूपी और दुसरा धैर्यरूपी दो पतवार हैं। मनुष्य अगर केवल ध्यान करे और धैर्य न रखे तो कभी ध्यान हो नहीं सकता। प्रतीक्षा के बिना कर्म, कर्म नहीं होता। केवल कुछ पाने की शीघ्रता यानि बिना किये कुछ पाने की आकांक्षा व्यर्थ है। आज बिना किये कुछ मिल जाए, या थोड़ा प्रयास से अधिक पाने की इच्छा से सभी ग्रस्त हैं। यह अधीर होने कि परिणाम है।

उसी प्रकार केवल धैर्य रखने से, प्रतीक्षा करने से भी कुछ प्राप्त नहीं हो पाता। प्रतीक्षा के साथ साथ कार्य के प्रति लगन भी होना चाहिए। धैर्य विना ध्यान के व्यर्थ है, जबतक कार्य संपन्न न हो, लक्ष्य की प्राप्ति न हो, धेर्य के साथ ध्यान भी जरूरी है। और ध्यान के साथ साथ धैर्य रखना भी जरूरी है।

अगर मन स्थिर न हो तो किसी काम को ठीक प्रकार से नहीं किया जा सकता। और अगर धीरज न हो तो परिणाम में देरी मन को बैचेन कर देता है। जिसके जीवन में ध्यान और धैर्य दोनों का समावेश है, वह सबकुछ पा सकता है, जो वह चाहता है। अतः ध्यान के महत्व समझना जरूरी है। धैर्य के महत्व को समझना जरूरी है, धैर्य पर विचार जरूरी है।

प्रतिकुल समय में मन की शांति के लिए  योग एवम् ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। थोड़ा सा समय प्रार्थना के लिए निकालें तो और भी अच्छा होगा। अभ्यास से सब सरल हो जाता है। हर सफल व्यक्ति के दिनचर्या के कुछ लक्ष्य होते हैं जो उसके अभ्यास के कारण बनते हैं। 

15 thoughts on “धैर्य रखना जरूरी क्यों है —”

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  13. Koushal Malakar

    बहुत ही सही जीवन में यदि अंन्धकार हैं तो कुछ पल के लिए है हमें हमेशा धैर्य बनाये रखना चाहिए ¡

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