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जीवन यात्रा का अर्थ — Meaning of the Journey of Life

सामान्य शब्दों में जन्म से मृत्यु तक की यात्रा ही जीवन यात्रा है। हर कोई यात्रा में है, मनुष्य का जीवन ही जीवन से मृत्यु तक की यात्रा है। इस दरम्यान हर कोई खोज रहा है, कोई  विलासिता, मान-सम्मान, धन-संपत्ति में सुख खोज रहा है। कोई शांति के खोज में भटक रहा है। मन्दिर में, मस्जिद में, गुरद्वारे में, तीर्थ में,  हर जगह भीड़ लगी रहती है। हर कोई लगा हुवा है। परन्तु किसी के जीवन में सुख-शांति नहीं है। इसका कारण क्या है?जीवन यात्रा का वास्तविक तात्पर्य क्या है?

यात्रा यानि स्थान परिवर्तन की क्रिया। एक अवस्था से दुसरे अवस्था को प्राप्त करने की क्रिया। पिछले आलेख में हमनें स्वयं की समझ की यात्रा पर विचार किया। हमने पाया कि यात्रा स्थान परिवर्तन के लिए हो अथवा जीवन के अवस्था में बदलाव के लिए हो। बाह्य जगत की हो अथवा अन्तर्जगत की हो। स्थूल की हो अथवा सुक्ष्म को पाने की हो, प्रत्येक अपनी यात्रा स्वयं करना पड़ता है।

स्वयं की समझ की यात्रा : journey of self understanding ! के दो पहलू हैं। एक जो भौतिक है और दुसरा आध्यात्मिक है। पहला यह की स्थूल से स्थूल यानी शरीर और मन के प्रभाव में की जाने वाली यात्रा। अर्थात् यह मान लेना कि यह संसार ही सबकुछ है, और भौतिक संसाधनों का अर्जन और उपभोग करना ही जीवन है। और इसका दुसरा पहलू है, यह मानकर चलना कि इस संसार से परे भी कुछ है, जो इसे चला रहा है। यह खोजना कि जो इस संसार को चला रहा है, वह कौन है। हमारे शरीर के भीतर एक ऊर्जा है जिसके कारण इस शरीर का अस्तित्व है, इस ऊर्जा का स्रोत कहां से है। 

ज्ञानियों के कथनों से यही ज्ञात होता है कि अहंकार को मिटाकर आत्मज्ञान को प्राप्त करना ( journey from self to soal) ही वास्तविक जीवन-यात्रा है। ज्ञानी कहते हैं जीवन यात्रा का तात्पर्य स्थूल से सुक्ष्म को प्राप्त करना है। जीवन का उद्देश्य परमानंद की प्राप्ति है, मोक्ष की प्राप्ति है। परन्तु साधारण मनुष्य का जीवन भौतिक संसार में ही उलझकर रह जाता है। इसका कारण क्या है? 

ज्ञानियों ने जो कहा है सत्य कहा है, फिर संशय क्यों है? श्रीकृष्ण ने जो कहा है, बुद्ध ने जो कहा है उनकी कही बातें  क्या वास्तव में किसी के समझ में आती है? केवल शब्दों को दोहराया जा रहा है। यह संसार एक माया है, प्रेम ही ईश्वर है, ये बातें अक्सर लोगों के मुख से सुनने को मिलती है। पर क्या उन्हें इसका अनुभव भी है! अगर अनुभव है तो फिर वे मोह-माया के चक्कर में क्यों पड़े हुवे रहते हैं? और जो इन बातों को सत्य नहीं मानते, जो इस भौतिक संसार को ही सत्य मानते हैं! जो भौतिक वस्तुओं में ही सुख की तलाश करते हैं, उनके जीवन में भी सुख क्यों नहीं है? 

सुख सबको चाहिए, आनंद सबको चाहिए, हम आनंद की तलाश में भटक रहे हैं, पर मिलता क्यों नहीं है? इसका कारण है कि  हमें पता ही नहीं है कि आनंद क्या है? हम आनंद के विषय में सुनते हैं, जानते नहीं। और फ़िर हम उसे खोजना चाहते हैं, पर खोज नहीं पाते। 

वास्तव में यात्रा होता ही खोज के लिए है। परन्तु हम उस चीज को तब तक प्राप्त नहीं कर सकते, जब तक हम स्वयं को  उसे पाने योग्य नहीं बना लेते। जीवन यात्रा का यही तात्पर्य है। अब प्रश्न है कि वह कौन सा त्तत्व है, कौन सी वस्तु है, जिसे पा लेने पर स्थायी सुख यानि आनंद को प्राप्त किया जा सकता है?

प्रखर दार्शनिक आचार्य रजनीश ‘ओशो‘ कहते हैं : तुम सदा खोज रहे हो, प्रतिपल, सोते-जागते खोज में लगे हो। शायद ठीक पता नहीं क्या खोजते हो, यह भी पता नहीं क्या खो गया है, पर खोज तुम्हारी आंखों में है। खोज में पहले यह सुनिश्चित होना चाहिए, क्या मैं खोज रहा हूं? कहां खोया है? बीमारी का ठीक पता नहीं तुम औषधियों को कैसे खोजोगे? निदान मिल जाये तो औषधि खोजनी मुश्किल नहीं है।

लोगों ने ज्ञानियों के शब्दों को पकड़ लिया है। किसी और के अनुभव को हम कैसे महसूस कर सकते हैं? इसलिए ही सभी संशय में जी रहे हैं। हां उन बातों को आधार बनाकर, उनके बताए मार्ग पर चलकर अनुभव प्राप्त किया जा सकता है। 

शब्दों को पकड़कर रख लेने से कुछ भी हाथ नहीं लगता। वास्तव में ज्ञान तो अनुभव से आता है। उमर खय्याम ने कहा है कि जब मैं जवान था तो बहुत पंडितो के पास गया। वे सभी बड़े बड़े विद्वान थे। उन सबकी बड़ी बड़ी बाते मैंने सुनी। परन्तु कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका, खाली हाथ लौटा। 

चाहे आप जितने भी पवित्र शब्द पढ़ लें या बोल लें, ये शब्द आपका भला तब तक नहीं कर सकते, जब तक आप नहीं उपयोग में नहीं लाते। यह कथन स्वयं भगवान बुद्ध ने कही है।

ओशो कहते हैं; अक्सर ऐसा हो जाता है कि तुम शब्दों से प्रभावित होकर सोचने लगते हो कि शायद यही मैंने खोया है। परमात्मा को खो दिया है! सत्य को खो दिया है! मोक्ष को खो दिया है! फिर तुम खोज में निकल पड़ते हो, और खोज प्रारंभ में ही गलत हो जाती है। जैसे जैसे मैं तुम्हें देखता हूं, और जैसे जैसे-जैसे तुम्हारे हृदय में देखता हूं। वैसे-वैसे वहां लगता है, सिंहासन वहां खाली है। सिंहासन तो है, कोई जरूर वहां बैठा रहा होगा, किन्तु भाग गया है। तुम्हारा हृदय सिंहासन है, प्रेम का सम्राट वहां से भाग गया है!

मन की आंखे खोल! Open your eyes…

जीवन में दुख क्यों है? – वास्तव में अक्सर हम उन चीजों के लिए कार्य नहीं करते, जिन्हें हम चाहते हैं। हमें खुशी चाहिए! सुख-शांति चाहिए, परन्तु हमारे संस्कार ही हमारे समस्त दुखों का कारण बन जाता है!

श्री श्री रविशंकर के शब्दों में: अपने कार्यो के पीछे के उद्देश्य को देखें। अक्सर आप उन चीजों के लिए कार्य नहीं करते, जिन्हें आप वास्तव में चाहते हैं।

ओशो कहते हैं: हर बच्चा प्रेम लेकर पैदा होता है, तभी तो खोज हो सकती है। खोज के पहले खोना जरुरी होता है। हर बच्चा प्रेम को लेकर पैदा होता है, लेकिन बड़े होने के प्रक्रिया में प्रेम कहीं खो जाता है। और उस प्रेम के खो जाने के कारण ही तुम्हारे भीतर एक खालीपन है, अभाव है। और तुम उसी प्रेम को खोज रहे हो।  असली सवाल प्रेम को खोज लेने का है। तो पहले हम यह समझ लें कि प्रेम को कैसे खो दिया जाता है? क्योंकि खोने की प्रक्रिया को ही समझ लेने पर पाने की प्रक्रिया का पता चलेगा। क्योंकि जैसे हम खोते हैं, वही रास्ता पाने का भी है, सिर्फ उल्टे चलने की जरूरत है।

ओशो ने इसे एक उदाहरण से समझाया है:  वही सीढ़ी स्वर्ग ले जाती है, वही नरक। नीचे का छोर नरक में लिप्त रहता है, ऊपर का छोर स्वर्ग में। प्रेम जैसे-जैसे खोता जाता है, जीवन वैसे-वैसे पदार्थ से भर जाता है। वह नरक है, सीढ़ी का एक छोर पदार्थ पर टिका है। जैसे-तैसे प्रेम बढ़ता है,  वैसे-वैसे पदार्थ खो जाता है और परमात्मा प्रगट हो जाता है। वह दुसरा छोर है, सीढ़ी का दुसरा छोर वहां टिका है। और प्रेम सीढ़ी है! अगर तुम प्रेम को छोड़ते हो तो नीचे उतरते जाते हो। प्रेम के विना तुम कुछ भी खोजो! कुछ भी न पा सकोगे।

स्वामी विवेकानंद ने कहा है: प्रेम विस्तार है स्वार्थ संकुचन है!

जीसस ने कहा है: प्रेम ही परमात्मा है!

भगवान बुद्ध ने कहा है: सत्य के मार्ग पर चलते हुवे कोई दो गलतियां कर सकता है, एक पुरा रास्ता न तय कर पाना और दुसरा उसकी शुरुआत ही नहीं करना। अपनी मुक्ति के लिए काम करो!

अगर आपके मन में मोह है, अहंकार है, घृणा है तो आपकी जीवन यात्रा पतन के मार्ग पर हो रही हैl आपके जीवन में सुख-शांति नहीं आ सकती। यदि आपके हृदय में प्रेम है, आप संवेदनशील हैं, तो आपकी यात्रा उन्नति के मार्ग पर अग्रसर है, अर्थात् आपकी यात्रा में जीवन है।

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