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एक शिक्षक की संवेदना

मित्रों नमस्कार, इस आलेख में एक शिक्षक की संवेदना का उल्लेख किया जा रहा है। आज के समय में भी ऐसे शिक्षक हैं, जो संवेदनशील होते हैं। ऐसे ही एक शिक्षक हैं श्री भालचंद्र पाण्डेय, जो उत्तर प्रदेश के बलिया प्रक्षेत्र के रहनेवाले हैं। “पहले पेट भरना सीख लो, फिर जो चाहे करो”, विद्यार्थियों के लिए यह उनका मूलमंत्र रहा है। उनके इस कथन में आत्मनिर्भरता का अर्थ छिपा हुआ है।

हमारी सेवा से सेव्य किस हद तक संतुष्ट  होता है; इसको मापने के लिए कोई मापक निर्धारित नहीं है । लेकिन मेरे विचार से सेवा कार्य में सेवक के आनंद  की अनुभूति ही सेव्य की संतुष्टि को इंगित कर सकती है।

भालचंद्र पाण्डेय 

एक व्यवसायिक शिक्षक के रूप में उन्होंने तीस वर्षों तक अपनी सेवाएं प्रदान की हैं। सेवानिवृत्त होने के पश्चात आयोजित विदाई समारोह की घड़ी में, उन्होंने कहा था कि “हम अपने  जीवन काल में कभी भी सेवा से निवृत्त नहीं होते हैं।” इस अवसर पर प्रगट उनकी संवेदना का उल्लेख करने से पूर्व यह चर्चा करते हैं कि एक शिक्षक होने के मायने क्या हैं?

शिक्षक का अर्थ क्या है?

शिक्षक एक संस्कृत शब्द है, जो शिक्षा से आया है। ‘शिक्षा’ का सीख लेने अथवा देने से है, और “क” का अर्थ होता है करने वाला। इस प्रकार शिक्षक शब्द का अर्थ हुवा “शिक्षा देने वाला”। शिक्षक एक व्यक्ति होता है, जो सीख देता है‌। शिक्षक एक मार्गदर्शक, एक उपदेशक भी होता है। शिक्षक छात्रों को जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद करने का प्रयत्न करता है। वह छात्रों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो उन्हें सही दिशा प्रदान करते हैं।

शिक्षक एक जातिवाचक संज्ञा है। वे विभिन्न विषयों में अर्जित ज्ञान, कौशल एवम् अनुभव को छात्रों को प्रदान करते हैं। ताकि वे उन विषयों में अधिक समझदार और कुशल हो सकें। शिक्षक का काम छात्रों की मस्तिष्क में उभरने वाली किसी भी समस्या को हल करना होता है। और छात्रों को उनकी शिक्षा की व्यक्तिगत जरूरतों को समझना होता है।

शिक्षक न केवल छात्रों को शिक्षा देने में सक्षम होते हैं, बल्कि वो उन्हें उच्चतम मानकों तक पहुंचने में भी मदद करते हैं। वे छात्रों की रूचि, क्षमताओं और अभिरुचियों को समझते हैं और उन्हें उनके उद्देश्यों और लक्ष्यों तक पहुंचाने के लिए उन्हें मार्गदर्शन करते हैं।

शिक्षक छात्रों को संसाधनों और साधनों के बारे में भी जागरूक करते हैं, जो उन्हें उनकी शिक्षा में सहायता कर सकते हैं। वे छात्रों को सशक्त बनाते हैं, जो उन्हें खुद के विचारों और निर्णयों पर विचार करने के लिए सक्षम बनाते हैं। और उन्हें अपने जीवन में सफलता की दिशा में अग्रसर करते हैं।

शिक्षक छात्रों को समाज की उत्पत्ति, ऐतिहासिक घटनाओं और समस्याओं, विज्ञान, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों और आधुनिक दुनिया के उन्नयन से अवगत कराते हैं।

एक अच्छे शिक्षक के रूप में वे सभी छात्रों के लिए समान व्यवहार और समर्पण दिखाते हैं। वे छात्रों की अभिरुचियों, शैली और समझ में अंतर को समझते हैं, और उन्हें अपनी शिक्षा के द्वारा सक्षम बनाने के लिए उनके साथ काम करते हैं।

अब आइए अपने विषय पर लौटते हैं। बात एक शिक्षक की संवेदना की करते हैं। आज के समय में भी ऐसे शिक्षक हैं, जो कर्तव्यनिष्ठ हैं। अपनी सेवानिवृत्ति के अवसर उन्होंने अपने मन की संवेदना को व्यक्त किया था! उनके उस वक्त दिए गये अभिभाषण का अंश निम्नांकित है।

मन  अपने विषय में अविश्वासी होता है।

“मित्रों! तीन दशक (8 -3-1990 से 31-5-2021) की सेवा पूर्ण करने के बाद आज मैं औपचारिक रूप से सेवा निवृत्त हो गया । वैसे हम अपने  जीवन काल में कभी भी ” सेवा से निवृत्त ” नहीं होते  हैं । मानव सेवा और ईश्वर सेवा का स्थान हमारे  दैनिक कार्य सूची में सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित हैं।

 ‘सेवाधर्मः परम गहनो  योगिनामप्यगम्य।।‘ इस सूक्ति के अनुसार हमारी सेवा से सेव्य किस हद तक संतुष्ट  होता है; इसको मापने के लिए कोई मापक निर्धारित नहीं है । लेकिन मेरे विचार से सेवा कार्य में सेवक के आनंद  की अनुभूति ही सेव्य की संतुष्टि  को इंगित कर सकती है। 

मैं अपने इस कार्य काल में अपने सेव्य (विद्यार्थी) को किस स्तर तक संतुष्ट कर सका हूँ;  इसका आकलन स्वयं के द्वारा करना कठिन है; क्योकि ‘बलवदपि शिक्षितानामात्मन्यप्रत्ययं चेत:।।’अर्थात् मन  अपने विषय में अविश्वासी होता है। 

विगत वर्षों में हर क्षेत्र में काफी कुछ परिवर्तन देखने को मिला है। इसी तरह शिक्षण पद्धति में भी आमूल चूल परिवर्तन परिलक्षित हो रहा है । आमने सामने बैठ कर पढ़ने पढाने वाले ‘OFF’ कहलाने लगे  जब की ‘ON’ नामक दूरस्थ शिक्षण प्रणाली काफी लोकप्रिय हो रही है। ऐसी परिस्थिति में ‘OFF’ प्रणाली के हिमायती लोगों का हट जाना ‘शायद’ समीचीन होगा । इस दृष्टि से मेरी सेवा निवृत्ति समयोचित प्रतीत होती है। 

आज अपनी  सेवा  निवृत्ति  के  अवसर पर मैं  परमेश्वर   से  प्रार्थना  करता  हूँ  कि हे  भगवन्!  “मानुष हौं तो वही रसखानि” की तरह मुझे भी अगले जन्म में  इन्ही ग्रामीणों के बीच काल यापन का  सौभाग्य मिले।

मैं अपने सभी सहयोगियों शुभेच्छुओं तथा छात्र छात्राओं को यह संदेश देना चाहता हूँ कि अति तीव्र गति से परिवर्तित हो रहे इस काल खंड में आप लोग भी इस होने वाले परिवर्तन के साथ स्वयं में भी परिवर्तन की गति और क्षमता को विकसित करने का प्रयास करें। हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सबको नमस्कार _ ।”

लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है
जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है
तोड़ो बन्धन, रुके न चिंतन गति, जीवन का सत्य चिरन्तनधारा के शाश्वत प्रवाह में
इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है।

भालचन्द्र पाण्डेय

एक शिक्षक एक गुरु की भूमिका निभाता है जो छात्रों को ज्ञान, समझदारी, संवेदनशीलता, सजगता और स्वयं से संबंधित समस्याओं से निबटने के लिए सक्षम बनाने की कोशिश करता है। अंततः शिक्षक शब्द की व्याख्या तो संभव है, परन्तु इसकी महीमा का वर्णन करना कठिन है।

यों तो एक संवेदनशील शिक्षक पाण्डेय जी से अपने विद्यार्थी जीवन में मेंरा कोई सम्बंध नहीं रहा। मेंरे आदर्श परमपूज्य स्वामी तपेश्ववरानंद से मिलने यदा कदा वह आया करते थे। इसी क्रम में बाद के दिनों में उनसे जान-पहचान हुवी। उनकी सादगी एवम् उनमें निहित गुणों से मैं प्रभावित रहा हूं। उनके जैसे एक योग्य शिक्षक की संवेदना का हमें सम्मान करना चाहिए। और उनके विचारों को जीवन में अपनाने का प्रयास करना चाहिए। 

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