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श्री श्री रविशंकर के विचार — Thoughts of Sri Sri Ravishankar

मैं एक तनावमुक्त और हिंसामुक्त समाज चाहता हूं” यह कथन है एक मानवतावादी और आध्यात्मिक नेता का जो आज के समय में श्री श्री रविशंकर के नाम से जाने जाते हैं। 13 मई 1956 को भारत के तमिलनाडु प्रांत में एक विलक्षण गुणों से संपन्न शिशु का जन्म हुआ।  बाल्यपन से ही उसमें आध्यात्मिक प्रवृति दिखने लगी थी। चार साल के उम्र में ही वह बालक श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों का उच्चारण सरलता से कर लेता था। आदि शंकराचार्य से प्रेरित उसके पिता ने अपने विलक्षण पुत्र का नाम रविशंकर रखा। उसके पिता वेंकटरत्नम् जो एक भाषाविद् थे, उसके प्रतिभा को पहचान कर उसे आध्यात्मिक गुरु महेश योगी को सौंप दिया। रविशंकर अल्प समय में ही महेश योगी के प्रिय शिष्य बन गये। उन्होंने भौतिक विज्ञान एवम् वैदिक साहित्य दोनों का अध्ययन किया। रविशंकर का यह मानना है कि विज्ञान और आध्यात्म एक दुसरे के पुरक हैं। 

तनाव क्या है जानिए! Know what is stress

ध्यान क्या है जानिए ! Know what is meditation.

श्री श्री रविशंकर के द्वारा साल1982 में एक स्वयंसेवी संस्था आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन ( art of living) की स्थापना की गई। ‘संसार एक परिवार है’ इस उद्देश्य के साथ आज यह संस्था वैश्विक स्तर पर कार्यरत है। इस मानवतावादी संस्थान की शाखाएं विश्व के शताधिक देशों में स्थापित हैं। और संस्थापक के हिंसामुक्त, तनावमुक्त, वसुधैव कुटुंबकम् के दृष्टिकोण से प्रेरित होकर मानवता के कल्याण के लिए प्रयासरत है। संस्था का उद्देश्य व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय एवम् वैश्विक स्तर पर शांति स्थापित करना है। श्रीश्री रविशंकर का मानना है कि जब तक हमारा मन तनावग्रस्त रहेगा और समाज हिंसाग्रस्त रहेगा, हम विश्वशांति को प्राप्त नहीं कर सकते। आर्ट ऑफ लिविंग कई तरह से तनाव के निष्कासन एवम् आत्मविकास के लिए कार्ययोजना का क्रियान्वयन करता है, जो श्वासक्रिया योग एवम् ध्यान पर आधारित है। 

श्री श्री रविशंकर लोगों को सुदर्शन क्रिया का ज्ञान देते हैं। इस विषय पर उनका कहना है कि भद्रा नदी के तट पर अपने दस दिवसीय मौन प्रवास के समय लयबद्ध श्वास लेने की क्रिया के दौरान उन्हें इस क्रिया का अनुभव हुआ। उन्होंने इसे जाना और फिर दुसरों को देना प्रारंभ कर दिया। जो लोग सुदर्शन क्रिया जानना चाहते हैं, उन्हें एक शपथपत्र पर हस्ताक्षर करने होते हैं। शपथ यह लेना पड़ता है कि वे इस विद्या को किसी और को नहीं बतायेंगे। सुदर्शन क्रिया के संबंध में यह कहा जाता है कि यह शरीर, मन और भावनाओं को ऊर्जा से भर देती है। सुदर्शन क्रिया आर्ट ऑफ लिविंग के पाठ्यक्रम का आधार है, और इसे जिज्ञासुओं को सशुल्क प्रदान किया जाता है।

योग क्या है! जानिए : Know what is yoga !

श्री श्री के अनुसार मन हमेशा वहीं जाता है, जहां उसे कुछ सुख की आशा होती है। और सुख की आशा में मन वहां भी चला जाता है, जहां सुख है ही नहीं। मन आदतों का गुलाम हो जाता है, और इनसे कोई सुख नहीं मिलता, दुख ही मिलता है। जब मन जान जाता है कि वहां सुख है ही नहीं तो वह आसानी से उस आदत से बाहर निकल आता है। जब बुद्धि कहती हैं कि यह मेंरे लिए अच्छा नहीं है, फिर भी इसके लिए लालसा मिटती नहीं, तो जीत किसकी होनी चाहिए! बुद्धि की, मन की या भावनाओं की? जब किसी और कार्य में अधिक सुख मिलता है तो गलत आदतों से छुटकारा मिल जाता है। सुदर्शन क्रिया करने पर ऐसा ही होता है। इतना सुख प्राप्त होता है कि किसी भी प्रकार की गलत आदतों से छुटकारा मिल जाता है।

श्री श्री रविशंकर के अनुसार श्वास तन और मन के मध्य एक कड़ी है, जो दोनों को जोड़ती है। मन को शांत करने हेतु श्वास का उपयोग किया जा सकता है। श्रीश्री एक ऐसा संसार निर्मित करना चाहते हैं, जहां रहने वाले लोग ज्ञान से परिपूर्ण हों। श्रीश्री के कार्यों को देखते हुए देश-विदेश में उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। जिनमें से ऑर्डर पॉल अवार्ड ( मंगोलिया का सर्वश्रेष्ठ अवार्ड, 2006) नेशनल वेटरन्स फाउंडेशन अवार्ड (अमेरिका, 2007) प्रमुख हैं। भारत सरकार द्वारा साल 2016 में उन्हें ‘पद्म विभूषण’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। 

श्री श्री के महत्त्वपूर्ण कथन :

अपने हुनर को पहचानें और इसे सम्मान दें।

श्री श्री रविशंकर
  • क्रोध पर क्यों नियंत्रण नहीं कर सकते? क्योंकि हम पूर्णता से प्यार करते हैं। अपने जीवन में अपूर्णता के लिए भी एक छोटा सा कमरा बना लें।
  • हमेशा सहज रहने की चाहत में आप आलसी हो जाते हैं! हमेशा पूर्णता की चाहत में आप क्रोधी हो जाते हैं! हमेशा अमीर बनने की चाह में आप लालची हो जाते हैं। क्रोध में क्या करना चाहिए ! What to do in anger
  • वर्तमान ईश्वर का दिया हुआ एक उपहार है, इसलिए उसे ‘प्रेजेंट’ कहते हैं।
  • जब आप अपने दुख ( जीवन में दुख क्यों है? – Jeevan Me Dukh Kyun Hai?) को साझा करते हैं तो यह कभी कम नहीं होगा। जब आप अपनी खुशी को साझा करने में विफल रहते हैं, तो यह कम हो जाता है। अपनी समस्याओं को केवल दैविक के साथ साझा करें, किसी और के साथ नहीं, क्योंकि इससे केवल समस्याएं बढ़ेंगी। सभी के साथ आपनी खुशी साझा करें।
  • बुद्धिमान वही है जो दुसरों की गलतियों से सीखता है, कम बुद्धिमान वह है जो केवल अपनी गलतियों से सीखता है। मुर्ख बार बार वही गलतियां करता रहता है और उनसे कभी कोई सीख नहीं लेता। उन्नति क्या है जानिए ..!
  • ज्ञान एक बोझ है यदि यह आपकी सादगी छीन लेता है, ज्ञान पीड़ा है यदि आप इसे जीवन में नहीं उतारते हैं। ज्ञान बोझ है यदि यह आनंद नहीं लाता है, ज्ञान एक बोझ है यदि यह आपको मुक्त नहीं करता। ज्ञान एक बोझ है यदि यह आपको महसूस कराता है कि आप विशेष हैं। मुक्ति का अर्थ ! Meaning of freedom in hindi
  • अपने कार्यो के पीछे के उद्देश्य को देखें। अक्सर आप उन चीजों के लिए कार्य नहीं करते, जिन्हें आप वास्तव में चाहते हैं।
  • नये विचारों के लिए मस्तिष्क को खुला रखें, सफलता के विषय में ज्यादा चिंतित ना हों, अपना शत प्रतिशत दें और लक्ष्य पर फोकस करें। मन के मते न चलिये – Man Ke Mate mat Chaliye

श्री श्री रविशंकर के शब्दों में अज्ञात् का भय मनुष्य की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है। अधिकतर लोग इसी में व्यस्त रहते कि उनंकी दुनिया बिल्कुल वैसी हो, जैसी उन्होंने कल्पना की थी। लेकिन विकास की संभावना तब तक नहीं होती, जब तक अज्ञात को गले न लगाया जाए। जब हम जीवन से रहस्यमयी अथवा आश्चर्यजनक त्तत्वों को बाहर निकाल देते हैं, तब हम न केवल विकास को रोक देते हैं, बल्कि अनजाने में अपने जीवन को यांत्रिक बना देते हैं। जैसे उस खेल को देखने में कुछ आनंद नहीं आता, जिसका परिणाम हमें पहले से पता हो। इसी प्रकार जीवन में यदि सबकुछ निर्धारित हो तो वह नीरस और उबाऊ हो जायगा। 

डर के आगे जीत है : Victory is beyond fear.

जीवन ज्ञात और अज्ञात का मिश्रण है। यदि इन दोनों में से कोई एक भी कम हो जाय जीवन अधुरा रह जायेगा। सीमित धारणा के क्षेत्र में हमारे भीतर एक भाग है जो किसी मत के लिए निश्चित है। एक अलग भाग है जो हमें हमेशा अज्ञात का पता लगाने के लिए उकसाता रहता है। बुद्धिमान वही है जो अनिश्चितता का सामना करने और उसमें से उत्तम अवसर उत्पन्न करने की योग्यता विकसित कर लेता है। बुद्धिमान वे हैं जो अनिश्चितताओं को विस्मय के भाव से देखते हैं। विस्मय से नये ज्ञान का आरंभ होता है। सृजनशीलता आश्चर्यचकित हो जाने से उभरती है। यह रवैया कि ‘मुझे पता है’ व्यक्ति को संकुचित व बंद कर देता है। जब कोई इस विचार से चलता है कि ‘मुझे नहीं पता’  कई संभावनाओं को जन्म देता है। जब कोई इस विचार से चलता है कि ‘मुझे सब पता है’ वह एक निश्चित अवधारणा में उलझा रहता है। उपनिषद में बहुत सुंदर वाक्य कहा गया है; ‘जो यह कहता है कि मुझे नहीं पता’ वह जानता है, और जो कहता है कि ‘मुझे पता है’ उसे कुछ नहीं पता।

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